कृष्ण के वंशज यदुवंशी राजा ने बनाया था, रेत के अथाह समन्दर के बीच यह स्वप्नमहल

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रेगिस्तान के अथाह समन्दर के मध्य बलुए पत्थरों से निर्मित जैसलमेर का किला किसी तिलिस्म व स्वप्न महल से कम नहीं लगता| यही नहीं किले को देखने वाला पर्यटक अनायास ही सोच में पड़ जाता है कि इस वीराने रेगिस्तान में क्या सोचकर यह किला बनवाया था| आज हम बताते है आपको इस किले को यहाँ बनवाने के पीछे की कहानी-

जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों की यह राजधानी पहले लोद्रवा थी| उसे असुरक्षित समझ रावल जैसल ने  जैसलमेर से पश्चिम में सोहण में पहाड़ में गढ़ बनवाना निश्चय किया। ईसा (ईश्वर) नामी 140 वर्ष का एक वृद्ध ब्राह्मण था जिसके बेटे रावल की चाकरी करते थे। गढ़ के वास्ते सामान के गाड़े ब्राह्मण के घर के पास से निकलते थे। उनकी हाहू सुनकर ईसा ने अपने पुत्रों से पूछा कि यह (हल्ला गुल्ला) किसका होता है? उन्होंने उत्तर दिया कि रावल जैसल लुद्रवे से अप्रसन्न होकर सोहण के पहाड़ पर गढ़ बनवाता है। उसके दो बुर्ज बन चुके हैं।

तब ईसा ने पुत्रों से कहा कि रावल को मेरे पास बुला लाओ। मैं गढ़ के लिए स्थान जानता हूँ सो बतलाऊँगा। उन्होंने जाकर रावल से कहा और वह ईसा के पास आया। ईसा ने पूछा की आप गढ़ कहाँ बनवाते हैं? जैसल ने कहा सोहाण में। ईसा कहने लगा कि वहाँ मत बनवाइए, मेरा नाम भी रक्खो तो गढ़ की ठौड़ मैं बतलाऊँ, मैंने प्राचीन बात सुनी है। रावल ने ईसा का कथन स्वीकारा| तब उसने कहा कि मैंने ऐसा सुना है कि एक बार यहाँ श्रीकृष्णदेव किसी कार्यवश निकल आये, अर्जुन साथ में था, भगवान् ने अर्जुन से कहा कि ‘‘इस स्थान पर पीछे हमारी राजधानी होगी।’’ जहाँ जैसलमेर का गढ़ है और उसमें जैसल नाम का बड़ा कूप है – ‘‘यहाँ तलसेजेवाला बड़ा जलाशय है’’ ईसा बोला कि वहीं मेरी डोली (दान में दी हुई भूमि) कपूरदेसर ही पाल के नीचे है, उस सर में अमुक स्थान पर एक लंबी शिला है, आप वहाँ जाओ और उस शिला को उलटकर देखो, जो उसके पीछे लेख हो तदनुसार करना। वहाँ पर लंका के आकार का त्रिकोण गढ़ बनवाना, वह बड़ा बाँका दुर्ग होगा और बहुत पीढियों तक तुम्हारे अधिकार में रहेगा।

जैसल अपने अधिकारियों और कारीगरों को साथ लेकर वहाँ पहुँचा, ईसा की बताई हुई शिला को उलटकर देखा तो उस पर यह दोहा लिखा – ‘लुद्रवा हूंती ऊगमण पंचोकोसै माम, ऊपाडै ओमंड ज्यो तिण रह अम्मर नाम।’’ कपूरदेसर की पाल पर एक रड़ी (ऊँची जगत) साधा। वहाँ रावल जैसल ने सं. 1212 श्रावण बदि 12 आदित्यवार मूल नक्षत्र में ईसा के कहने पर जैसलमेर का बुनियादी पत्थर रक्खा। थोड़ा सा कोट और पश्चिम की पोल तैयार हुई थी कि पाँच वर्ष के पीछे रावल जैसल का देहांत हो गया और उसका पुत्र शालिवाहन पाट बैठा। जैसल ने 5 ही वर्ष राज्य किया।

इस तरह रेगिस्थान के अथाह समंदर के मध्य यदुवंशी राजा जैसल ने इस स्वप्नलोक सरीखे किले की नींव डाली थी| तिलिस्म व स्वप्नलोक के साथ यह किला भारत में आने विदेशी आक्रान्ताओं को सबसे रोकने वाले द्वार के रूप में भी मशहूर है इसलिए यहाँ के यदुवंशी भाटी राजपूतों को “उतरभड़ किंवाड़” के विरुद से जाना जाता है|

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