जब एक राजकुमार के पजामें में घुस गया सांप

Gyan Darpan
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वि.सं. 1769 की बात है| दिल्ली में बादशाह के दरबार में एक खास सभा जुटी थी| राजा-महाराजा, राव-उमराव, नबाब आदि खास दरबारी सभा में बैठे थे| सभा में कोटा नरेश भीमसिंह, श्योपुर के राजा राजसिंह, महाराजा गोपालसिंह भदौरिया के साथ किशनगढ़ के 13 वर्षीय कुंवर सावंतसिंह अपने पिता सहित बैठे थे| कुंवर सावंतसिंह बड़े मनोयोग से राजा-महाराजाओं के मध्य हो रही बात तल्लीनता से सुन रहे थे|

तभी अचानक एक सांप आकर उनके पजामें में घुस गया| सांप का स्पर्श पाते ही कुंवर सावंतसिंह ने उसे पकड़ने की कोशिश की तब तक सांप उनके पजामें में घुस चुका थे| लेकिन सांप के काटने से पहले कुंवर ने सांप का फन पकड़ा और मसल दिया और चुपचाप उठकर बाहर आये और सांप को फैंक दिया| कुंवर ने यह काम इतनी तत्परता व चुपचाप किया कि पास बैठे लोगों को भी कानों-कान खबर नहीं लगी कि कुंवर सांप को मारकर फैंकने के लिए बाहर गए थे|

आपको बता दें इन्हीं कुंवर सावंतसिंह ने 13 वर्ष की अल्पायु में ही जहाँ शेर से निहत्थे द्वंद्व युद्ध कर उसे मार डाला था, ने बूंदी के जैतसिंह हाड़ा को मार डाला था| इतिहास में लिखा मिलता है कि 18 वर्ष की उम्र इसी कुंवर ने जाटों से थूण का किला बादशाह के लिए जीत लिया था| ज्ञात हो जाटों का थूण किला बड़े बड़े योद्धा नहीं जीत पाए थे, अंग्रेजों को भी यह किला जीतते समय पसीना आ गया था|

यही कुंवर आगे चलकर भक्त नागरीदास के नाम से राजस्थानी साहित्य में विख्यात हुए| किशनगढ़ चित्रशैली की नायिका बणी-ठणी आपकी ही प्रेमिका व पासवान थी|

ऐतिहासिक सन्दर्भ : डा. अविनाश पारीक द्वारा लिखित व राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित “किशनगढ़ का इतिहास”

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