राजस्थान में किशनगढ़ के पास सलेमाबाद में एक प्रसिद्ध आचार्यपीठ है| तत्कालीन किशनगढ़ रियासत स्थित इस आचार्यपीठ के अधीन काफी बड़ा गोचर वन था, जो शायद आज भी है| यह वन पशुओं के चरने के लिए था, आचार्यपीठ की गायों के साथ, आस-पास के पशुपालकों की गायें व अन्य पशु यहाँ खुले विचरण करते थे| इस गोचर वन में शिकार आदि हिंसा कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध था| कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों ना हो, यहाँ उस शिकार की अनुमति नहीं थी, यहाँ तक कि रियासत के राजा भी इस नियम का सख्ती से पालन करते थे|
सलेमाबाद के पास स्थित पर्वतमाला की तलहटी में स्थित गोचर से से श्री परशुरामदेवजी की धुनी के लिए प्रतिदिन लकड़ियाँ लाई जाती थी| वि. सं. 1789 (1732 ई.) में एक दिन नवनीतपुरा गांव के पास गोचर वन में एक सिंह आ गया| इस सिंह ने गायों को मारकर खाना शुरू दिया| सिंह के हिंसक उपद्रव से आचार्यपीठ के प्रमुख श्रीवृन्दावन देवाचार्य जी सहित सभी लोग बड़े दुखी हुए| सिंह को मारने के अलावा कोई उपाय ना था, पर वन में हिंसा वर्जित थी, अत: देवाचार्य जी सिंह को मारने का आदेश भी नहीं दे सकते थे|
आखिर गायों के साथ सिंह की हिंसा रोकने के लिए देवाचार्य जी ने किशनगढ़ के राजकुमार सावन्तसिंह को बुलाया और आदेश दिया कि सिंह के साथ द्वंद्व-युद्ध कर उसे भगा दे| गुरुदेव की आज्ञा शिरोधार्य कर कुंवर सावंतसिंह ने बिना हथियार दुर्दांत सिंह से द्वंद्व-युद्ध किया और पछाड़ कर मार डाला| कुंवर के इस अदम्य साहस व पराक्रम को दर्शाने वाला चित्र आज भी मझेला पैलेस में लगा है|
इस तरह कुंवर सावंतसिंह ने सिंह को मार दिया और वन में शिकार नहीं करने के आदेश का भी पालन किया| आपको बता दें यही कुंवर सावंतसिंह आगे चलकर किशनगढ़ के राजा बने| वे उच्च कोटि के प्रख्यात साहित्यकार, चित्रकार व भक्त हुए है| किशनगढ़ की विश्व प्रसिद्ध चित्रशैली उन्हीं की देन है| इस चित्रशैली की नायिका राजस्थान की मोनालिसा के नाम से मशहूर “बणी ठणी” आपकी ही सेविका व प्रेमिका थी|