परमार राजवंश और उसकी शाखाएँ : भाग-2

Gyan Darpan
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भाग-1 से आगे .............. राजस्थान का प्रथम परमार वंश - राजस्थान में ई 400 के करीब राजस्थान के नागवंशों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार कर लिया था। इन नाग वंशों के पतन पर आसिया चारण पालपोत ने लिखा है-

परमारा रुंधाविधा नाग गया पाताळ।
हमै बिचारा आसिया, किणरी झुमै चाळ।।

मालवा के परमार- मालव भू-भाग पर परमार वंश का शासन काफी समय तक रहा है। भोज के पूर्वजों में पहला राजा उपेन्द्र का नाम मिलता है जिसे कृष्णराज भी कहते हैं। इसने अपने बाहुबल से एक बड़े स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। इनके बाद बैरीसिंह मालवा के शासक बने। बैरीसिंह का दूसरा पुत्र अबरसिंह था जिसने डूंगरपुर-बांसवाडा को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया। इसी वंश में बैरीसिंह द्वितीय हुआ जिसने गौड़ प्रदेश में बगावत के समय हूणों से मुकाबला किया और विजय प्राप्त की। इसी वंश में जन्में इतिहास प्रसिद्ध राजा भोज विद्यानुरागी व विद्वान राजा थे।

अजमेर में प्रवेश- मालवा पर मुसलमानों का अधिकार होने के बाद परमारों की एक शाखा अजमेर सीमा में प्रवेश कर गई। पीसांगन से प्राप्त 1475 ईस्वी के लेख से इसका पता चलता है। राघव की राणी के इस लेख में क्रमशः हमीर हरपाल व राघव का नाम आता है। महिपाल मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की सेवा में था।

आबू के परमार- आबू के परमारों की राजधानी चन्द्रावती थी जो एक समृद्ध नगरी थी। इस वंश के अधीन सिरोही के आस-पास के इलाके पालनपुर मारवाड़ दांता राज्यों के इलाके थे। आबू के परमारों के शिलालेख से व ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि इनके मूल पुरुष का नाम धोमराज या धूम्रराज था। संवत 1218 के किराडू से प्राप्त शिलालेख में आरम्भ सिन्धुराज से है। आबू का सिन्धुराज मालवे के सिन्धुराज से अलग था। यह प्रतापी राजा था जो मारवाड़ में हुआ था। सिन्धुराज का पुत्र उत्पलराज किराडू छोड़कर ओसियां नामक गांव में जा बसा जहाँ सचियाय माता उस पर प्रसन्न हुई। उत्पलराज ने ओसियां माता का मंदिर बनवाया।

जालोर के परमार- राजस्थान के गुजरात से सटे जिले जालोर में ग्यारहवीं-बारहवीं सदी में परमारों का राज्य था। परमारों ने ही जालोर के प्रसिद्ध किलों का निर्माण कराया था। जालोर के परमार संभवतः आबू के परमारों की ही शाखा थे। एक शिलालेख के अनुसार जालोर में वंश वाक्यतिराज से प्रारम्भ हुआ है। जिसका काल 950 ई. के करीब था।

किराडू के परमार- किराडू के परमार वंशीय आज भी यहाँ राजस्थान के बाड़मेर संभाग में स्थित है। परमारों का वहां ग्यारहवीं तथा बारहवीं सदी से राज्य था। ई. 1080 के करीब सोछराज को कृष्णराज द्वितीय का पुत्र था ने यहाँ अपना राज्य स्थापित किया। यह दानी था और गुजरात के शासक सिन्धुराज जयसिंह का सामंत था। इसके पुत्र सोमेश्वर ने वि. 1218 में राजा जज्जक को परास्त परास्त कर जैसलमेर के तनोट और जोधपुर के नोसर किलों पर अधिकार प्राप्त किया।

दांता के परमार- ये अपने को मालवा के परमार राजा उद्यातिराज के पुत्र जगदेव के वंशज मानते है।
लेखक : Kunwar Devisingh, Mandawa

क्रमशः.............

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