जब एक राजा के आगे नम्रता से झुका था वनराज सिंह

Gyan Darpan
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वह दिन बादशाह के शिकार अभियान का बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन था, क्योंकि उस दिन बादशाह के शिकारी दल ने एक जिन्दा शेर को पकड़ने में कामयाबी हासिल की थी| शेर को पकड़कर पिंजरे में बंद कर दिया गया था| जिन्दा शेर के पकड़े जाने पर शिकारी दल में मौजूद लोगों में चर्चा हो रही थी कि राजपूत बिना हथियार शेर से लड़ जाने के लिए जाने जाते है| बादशाह ने भी यह बात सुन रखी थी| सो आज बादशाह के मन में आया कि क्यों नहीं इस शेर के साथ किसी राजपूत की प्रत्यक्ष लड़ाई देखकर मनोरंजन के साथ राजपूती वीरता की भी परीक्षा ले ली जाय| ऐसा विचार कर बादशाह ने वहां उपस्थित राजपूतों को उस शेर से लड़ने की चुनौती दी| बादशाह की बात चुनकर उपस्थित लोग एक दूसरे का मूंह देखने लगे कि कौन इस चुनौती को स्वीकार करता है| लेकिन उसी वक्त एक व्यक्ति जो वहां उपस्थित खण्डेला के राजा द्वारकादास से मन मन ही द्वेष रखता था, ने राजा द्वारकादास को शेर से लड़वाकर उन्हें शेर का शिकार बनवाने का षड्यंत्र रचते हुए बादशाह से कहा-

हुजुर ! यहाँ तो एक ही व्यक्ति सक्षम है जो इस शेर से निहत्था लड़ सकता है| वो है दलथंभन के विरुद से विभूषित खण्डेला के राजा द्वारकादास|
इतना सुनते ही बादशाह सहित उपस्थित सभी की निगाहें राजा द्वारकादास पर टिक गई| राजा द्वारकादास ने अपने ही उस निकट सम्बन्धी के षड्यंत्र को समझते हुए प्रसन्नतापूर्वक यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया|
राजा द्वारकादास नरसिंह अवतार के उपासक थे अत: उन्हें अपने ईष्ट पर भरोसा था कि सिंह उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| अत: उन्होंने स्नान-पूजा कर पीतल के एक थाल में पूजा की सामग्री लेकर उसे भगवान का अवतार नरसिंह समझकर पूजा हेतु आगे बढे और सिंह (शेर) के पास गए| उनके सिंह के पास पहुँचते ही वहां उपस्थित सभी दरबारियों व सैनिकों ने बादशाह के साथ एक चमत्कार देखा कि- खण्डेला प्रमुख राजा द्वारकादास सिंह के कपाल पर तिलक रहे है| तिलक के बाद सिंह के गले में माला पहना रहे है और सिंह ने बड़ी विनम्रता के साथ उनके सामने खड़े रहकर तिलक लगवाया और माला पहनी| यही नहीं इसके बाद सिंह नम्रता से राजा की ओर बढ़ा और राजा का मुख चाटने लगा|

इस घटना का वर्णन करते हुए इतिहासकार कर्नल टॉड "राजस्थान का पुरातत्व व इतिहास" भाग-3 के पृष्ठ स. 107 में लिखता है- "उसने (सिंह ने) राजा पर बिल्कुल क्रोध नहीं किया| बादशाह ने निश्चय किया कि राजा में जादुई शक्ति थी| उसने खण्डेला प्रमुख से कहा "वह उससे कुछ भी मांगे|" राजा ने उत्तर में हल्की से झिड़की देते हुए माँगा कि बादशाह भविष्य में किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी विपत्ति में न डाले जिससे वे बच कर निकल चुके थे|"
इस तरह नरसिंह अवतार के भक्त खण्डेला राजा द्वारकादास ने अपनी भक्ति, शक्ति और आत्मविश्वास का परिचय दिया और बादशाह के सामने यह प्रमाणित कर दिया कि राजपूत जंगल के राजा सिंह से कभी भय नहीं खाते|

नोट : कर्नल टॉड ने बादशाह का नाम नहीं लिखा, राजा द्वारकादास बादशाह जहाँगीर व शाहजहाँ दोनों के समय शाही मनसबदार थे अत: यह घटना इन्हीं दोनों बादशाहों के सामने हुई है, जिनमें ज्यादा सम्भावना जहाँगीर के समय की है|

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