अजमेर के संस्थापक चौहान राजा अजयपाल का मंदिर

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Raja Ajaypal Mandir, Chauhan Raja Ajaypal Temple


अजमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की सुरम्य घाटी में अजयसर गांव के पास "अजोगंध महादेव मंदिर" नामक प्राचीन मंदिर स्थित है| ऐतिहासिक अजयमेरु नगर (अजमेर) के संस्थापक चौहान राजा अजयपाल का स्मृति रूपी यह प्राचीन मंदिर जो अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, जन-आस्था व पुरातात्विक महत्व की अनूठी विरासत है| मनमोहक प्राकृतिक छठा के मध्य यहाँ बने शिव मंदिर का वास्तु शिल्प सातवीं सदी का प्रतीत होता है, जो राजा अजयपाल का समकालीन है|

अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाने जाने वाले इस मंदिर को स्थानीय लोग राजा अजयपाल का मंदिर भी कहते है है, पर वह पश्चिम मुखी शिव मंदिर ही है जिसकी पुष्टि उसके प्राचीन नाम अजोगंध महादेव मंदिर से हो जाती है| मंदिर गर्भग्रह के सिलदर पर शिव के लकुलिस अवतार की प्रतिमा स्थापित है| द्वार के दोनों और कीर्ति मुख भी खुदे है| मंदिर का वस्तु शिल्प देखने के बाद पुरातत्वविद ललित शर्मा ने बताया कि "इस शिव मंदिर में शैव सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा तांत्रिक क्रियाएँ संपन्न की जाती थी|" इसी मंदिर के उत्तरी, दक्षिणी तथा पूर्वी दिशाओं में मूर्तियाँ स्थापित थी| वर्तमान में पूर्वी दिशा में राजा अजयपाल की पूजा होती है| वर्तमान में मंदिर का मुख्य द्वार भी पूर्व दिशा में खुलता है जिस पर "श्री अजयपाल जी महाराज का मंदिर" नाम अंकित है|

इस मंदिर के पीछे एक प्राकृतिक जल स्त्रोत बना है जिसमें उतरने के लिए सीढियाँ बनी है, जिनका वास्तु शिल्प देखने के बाद लगता है कि उनका निर्माण बाद के किसी समय में किया गया है| इस निर्माण में वहां के ध्वस्त मंदिरों की मूर्तियाँ, कलश आदि का उपयोग भी किया गया है|
अजयपाल मंदिर के नजदीक ही एक और मंदिर बना है जिसका बाद के किसी समय में पुनरुद्धार किया प्रतीत होता है| उसी मंदिर के पास एक अन्य ध्वस्त मंदिर के अवशेष नजर आते है| इस ध्वस्त मंदिर की पीठिका में पनाली आदि देखने के बाद यह शिव मंदिर प्रतीत होता है| मंदिर का मुख पूर्व दिशा में होना इसे सात्विक मंदिर सिद्ध करता है| इस मंदिर के पास ही दक्षिण दिशा में एक कुआ नजर आता है|
अजयपाल मंदिर के पास ही एक नाले के पास पत्थर की बनी एक घानी (तेल निकालने का कोल्हू) नजर आती है| इस घानी के बारे में "अजमेर का वृहद् इतिहास" पुस्तक में डा. मोहनलाल गुप्ता लिखते है- "जब कोई विधर्मी किसी हिन्दू की पूजा-प्रार्थना में विध्न डालता था, तो राजा अजयपाल उसे इस घानी में पिसवा देता था|"
प्राचीन काल से ही क्षत्रिय सन्यास लेने के बाद भी हथियार व सवारी (घोड़ा आदि) का त्याग नहीं करते थे| साथ ही उनके आप-पास रहने वाले साधू, चरवाह आदि अपनी सुरक्षा व अन्य समस्याओं के लिए भी उन्हीं पर निर्भर रहते थे| ऐसे में हो सकता है पुष्कर के आस-पास रहने वाले साधुओं को मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तंग करने व पशु पालकों का पशुधन लूटने वालों को राजा अजयपाल सन्यासी होने के बावजूद वहां दण्ड देते रहे हों|
डा. मोहनलाल गुप्ता ने अपनी इतिहास पुस्तक में यहाँ राजा अजयपाल द्वारा शिव की तपस्या करने का उल्लेख किया है| अन्य इतिहासकारों के मतानुसार उम्र के आखिरी पड़ाव में राजा अजयपाल ने संन्यास धारण कर लिया और वहीं पर रहे।

क्षत्रिय चिन्तक और लेखक श्री देवीसिंह जी महार के अनुसार- राजा अजयपाल अपने पुत्र को राज्य सौपने के बाद यहाँ तपस्या करने के लिए आ गए| उनके यहाँ आने से यहाँ एक छोटा सा गांव बस गया| पुष्कर के नजदीक होने के कारण इस क्षेत्र में बहुत से साधू तपस्या करने हेतु रहते थे| एक बार बहुत से मुस्लिम डकैत पशुपालकों का पशुधन लूटने को आ धमके| ऐसे में पशुपालक व चरवाहे सन्यास ग्रहण कर चुके राजा अजयपाल के पास सुरक्षा की गुहार लेकर पहुंचे| राजा अजयपाल ने देखा कि विधर्मी आक्रान्ताओं की संख्या बहुत ज्यादा है और उनके साथ युद्ध में बचना असंभव है| चूँकि राजा अजयपाल विधर्मियों के हाथों मरना नहीं चाहते थे| अत: उन्होंने स्वयं अपना सिर काट कर वहां रख दिया और बिना सिर के वे घोड़े पर सवार होकर विधर्मी लुटेरों पर टूट पड़े और उन्हें गुजरात में कच्छ तक खदेड़ दिया| लुटेरों को खदेड़ने के बाद राजा अजयपाल का धड़ कच्छ के अंजार में गिरा, जहाँ आज भी उनकी याद मंदिर बना है| इस तरह राजा अजयपाल का सिर अजयपाल गांव में रहा और धड़ कच्छ जिले के अंजार नामक स्थान में|



वर्तमान में यह स्थान पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है| पिछले कुछ समय से एक होमगार्ड का जवान भी इस स्थान की सुरक्षा हेतु तैनात है| ध्वस्त मंदिरों की मूर्तियाँ आदि कई पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुएं बिखरी पड़ी है, जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है| प्राकृतिक रूप से मनमोहक व एकान्त में होने चलते यह स्थान सैलानियों, मनचलों व शराबियों की पसंद भी है अत: यहाँ होमगार्ड की तैनाती के साथ ही समुचित सुरक्षा व्यवस्था हेतु पुलिस गश्त की भी आवश्यकता है|


यहाँ अजमेर, पुष्कर आदि स्थानों से आसानी से पहुंचा जा सकता है|

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