Nagnechi Mata : राठौड़ वंश की कुलदेवी श्री नागणेचियां माता

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History of Nagnechi Mata Nagana | Rathore Kuldevi

कुलदेवी को वस्तुतः कुल की संरक्षिका, अभिभावक माना जाता रहा है। अतः इसे माता के नाम से संबोधित किया जाता है। प्राचीनकाल से ही यह मान्यता रही है कि कुलदेवी कुल की रक्षा करती है, कुल की वृद्धि करती है। यही कारण है कि भारत के सभी क्षत्रिय राजवंशों ने राज्य स्थापना के बाद अपनी कुलदेवी के मंदिर बनवाये और उसकी नित्य पूजा आराधना की व्यवस्था कायम की।

क्षत्रिय चिरकाल से ही शक्ति के उपासक रहे है। अतः शक्ति रूपा दुर्गा माता ही उनकी मुख्य आराधक देवी रही है। अलग-अलग स्थानों व अलग अलग नामों से अलग अलग क्षत्रिय कुलों ने देवी को अपनी कुलदेवी माना और उसकी आराधना की।  

देश के मध्यकालीन इतिहास में राजपूतों की बड़ी भूमिका रही है। जिनमें राठौड़ों को न्यारा ही गौरव प्राप्त है। शूरवीरता के उन्होंने जो आयाम प्रस्तुत किये, वे देश में ही नहीं दुनिया भर में मिसाल बने। इसीलिए उनका स्थायी विशेषण ‘‘रणबंका’’ बना। राठौड़ मारवाड़ में आने से पूर्व ‘‘राष्टकूट’’ रहे है। कन्नौज का राज्य अपने अधिकार से निकल जाने के बाद राव सीहा मारवाड़ की ओर आये और यहां अपना राज्य स्थापित किया। उन्होंने पाली पर अधिकार किया।  उनके पश्चात् उनके पुत्र राव आस्थान ने खेड़ विजित किया। 

आस्थान के धार्मिक प्रवृति के पुत्र राव धुहड़ ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी को प्रतिष्ठापित किया। आज बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील का यह स्थान धार्मिक आस्था के कारण प्रसिद्धि प्राप्त है। यहां प्राकृतिक मनमोहक स्वरुप की छठा देखते ही बनती है। पहाड़ों की ओट में मरुस्थल के अंचल में, सूखी झाड़ियों के मध्य स्थित राव धूहड़जी का बनाया हुआ माँ का यह मंदिर श्रद्धा का प्रमुख केन्द्र है।  यहां पर स्थापित माता की मूर्ति की आज तक राठौड़ वंश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा-अर्चना करता आया है। यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है तथा राठौड़ वंश के अतिरिक्त भी अन्य जातियों के श्रद्धालुओं का आस्था का भी केंद्र बना हुआ है। 

देवी का नाम नागणेची कैसे पड़ा व इससे पूर्व राठौड़ों के इस राजवंश की कुलदेवी का क्या नाम था? इसकी प्रतिमा कहाँ से लाई गई पर विभिन्न ख्यातों, इतिहास पुस्तक व लोक मान्यताओं के अनुसार विभिन्न कहानियां प्रचलित है। पर इतना तय है कि नागाणा गांव में प्रतिष्ठापित होने के कारण स्थानीय भाषा में रणबंका राठौड़ांे की कुलदेवी का नाम ‘‘नागणेची’’ पड़ा। देवी का ये ‘नागणेची’ स्वरुप लौकिक है। ‘नागाणा’ शब्द के साथ ‘ची’ प्रत्यय लगकर ‘नागणेची’ शब्द बनता है। किन्तु बोलने की सुविधा के कारण ‘नागणेची’ हो गया। ‘ची’ प्रत्यय ‘का’ का अर्थ देता है। अतः ‘नागणेची’ शब्द का अर्थ हुआ- ‘नागाणा की’। इस प्रकार राठौड़ों की इस कुलदेवी का नाम स्थान के साथ जुड़ा हुआ है। इसीलिए ‘नागणेची’ को ‘नागाणा री राय’ (नागाणा की अधिष्ठात्री देवी) भी कहते है। वैसे राठौड़ांे की कुलदेवी होने के कारण ‘नागणेची’ ‘राटेश्वरी’ भी कहलाती है। नागाणा एक गाँव है जो वर्तमान में राजस्थान प्रदेश के बाड़मेर जिले में आया हुआ है। एक कहावत प्रसिद्ध है ‘नागाणा री राय, करै बैल नै गाय।’ यह कहावत प्रसंग विशेष के कारण बनी। प्रसंग यह है कि एक चोर कहीं से बैल चुरा कर भागा। पता चलते ही लोग उसका पीछा करने लगे। भय के मारे वह चोर नागाणा के नागणेची मंदिर में जा पहुंचा और देवी से रक्षा की गुहार करने लगा कि वह कृपा करे, फिर कभी वह चोरी का कृत्य नहीं करेगा। अपनी शरण में आये उस चोर पर नागणेची ने कृपा की। जब पीछा करने वाले वहां पहुंचे तो उन्हें देवी-कृपा से बैलांे के स्थान पर गायें दिखी। उन्होंने सोचा कि चोर कहीं और भागा है और वे वहां से चले गए। इस प्रकार चोर की रक्षा हो गई। 

कुलदेवी ‘नागणेची’ का पूर्व नाम ‘चक्रेश्वरी‘ रहा है। राठौड़ भी मारवाड़ में आने से पूर्व ‘राष्टकूट’ रहे है। पोकरण का इतिहास व मूंदियाड़ री ख्यात नामक पुस्तक के अनुसार राव धुहड़ ने कल्याण कटक (कन्नौज) से अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी माता की मूर्ति लाकर नागाणा में स्थापित की। राठौड़ वंश री विगत एवं राठौड़ों री वंशावली में वर्णित जानकारी के अनुसार राव धुहड़ ने मंडोर के थिरपाल प्रतिहार को परास्त कर उनसे देवी की प्रतिमा प्राप्त की, जिसे नागाणा में स्थापित किया गया और कालांतर में देवी का नाम नागणेची पड़ा। राठौड़ों की ख्यात ने राव धुहड़ द्वारा चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा कर्णाटक से लाना लिखा है, जिसे नागाणा में स्थापित करने के कारण नागणेची नाम पड़ा। उदयभाण चांपावत री ख्यात के पृ. 47-48 पर इस सम्बन्ध में जो लिखा है, उसके अनुसार राव धुहड़ ने कर्णाटक की यात्रा कर वहां प्रतिष्ठापित चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति, जो कि सोने की थी, उसे लेकर नागाणा गांव में स्थापित की, लेकिन मंदिर के आगे अपवित्रता होने से देवी ने अपना मूल स्वरूप बदल दिया और प्रतिमा सोने से पत्थर में बदल गई।

डा. विक्रमसिंह भाटी ने अपनी पुस्तक “राजस्थान की कुलदेवियां” में ‘‘आस्था रो उजास’’ नामक ग्रन्थ का हवाला देते हुए एक लोक मान्यता का विवरण दिया है-“नागाणा गांव में नागणेचियां देवी शिला रूप में स्वतः प्रकट हुई थी। इस सन्दर्भ में ग्रन्थ लिखता है कि “राव धुहड़ अपनी श्रद्धानुसार शक्ति रूपा देवी की पूजा कर रहे थे। एक दिन वहां शिला प्रकट होने लगी। वह दृश्य देखकर वहां उपस्थित लोग स्तब्ध रह गये। देवी ने प्रकट होने से पूर्व कहा था कि “हंकारो (ध्वनि) मत करना। परन्तु पास में ही चर रहा पशुधन जब इधर उधर होने लगा तब किसी ने व्यक्ति ने टिचकारा (पशु रोकने की विशेष ध्वनि) कर दिया, इसलिए देवी लगभग 2 फुट शिला रूप में प्रकट होकर रह गई।

हालाँकि लोक मान्यताओं व उपलब्ध स्थानीय ख्यातों में देवी के प्रकट होने को लेकर विरोधाभास है, पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि नागाणा गांव में स्थित माता का मंदिर ही राठौड़ राजवंश की कुलदेवी नागणेचियां माता का प्रथम धाम माना गया है और राठौड़ राजवंश नागणेचियां देवी की अपनी कुलदेवी के रूप में सदियों से उपासना करता आया है। मारवाड़ राज्य के निशान में श्येन (बाज, चील) पक्षी की उपस्थिति पर प्रकाश डालते हुए डा. विक्रमसिंह भाटी “राजस्थान की कुलदेवियाँ” ग्रन्थ में लिखते है-“ नागणेचियां देवी का दूसरा रूप श्येन पक्षी है। श्येन पक्षी का रूप धारण कर माता राज्य की रक्षा करती है। इसी कारण राठौड़ों द्वारा राजकीय ध्वजा पर इसी पक्षी का चिन्ह अंकित किया गया है। मारवाड़ में सफेद रंग के श्येन पक्षी को देवी का रूप माना गया है। कई शताब्दियों पूर्व नागणेचियां देवी अलग अलग रूप में भक्तों द्वारा पूजित होती आ रही है जैसे कि सतयुग में मंछादेवी, त्रेतायुग में राठेश्वरी, द्वापर में पंखणी देवी और द्वापर में नागणेचियां देवी-

सर्वमंगल मांगल्यै शिवे सर्वार्थ साधि के।

शरण्यै त्रयम्बके गौरी चक्रेश्वरी नमोस्तुते।।”

माता द्वारा श्येन पक्षी का रूप धारण कर राज्य की रक्षा करने के उदाहरण की अक्सर जोधपुर में चर्चा सुनी है कि- भारत-पाक युद्ध में जोधपुर पाकिस्तानी वायु सेना के महत्त्वपूर्ण निशाने पर था। पाक वायुसेना ने जोधपुर पर बम वर्षा की थी। तब देवी माँ श्येन पक्षी के रूप में जोधपुर के आकाश में रक्षा के लिए तैनात रही और उसकी कृपा से एक भी बम फटा नहीं। इस घटना के बाद युद्ध खत्म होते ही स्थानीय निवासियों ने माता की पूजा अर्चना के लिए कई कार्यक्रम आयोजित कर माता को धन्यवाद ज्ञापित किया। आज भी नागणेचियां माता की पूजा का उत्सव मारवाड़ में बड़े चाव व धूमधाम से मनाया जाता है। प्रसाद में सभी लापसी बाँटने की परम्परा है। सूत के सात धागों में सात गांठे लगाकर बांह पर देवी के नाम से रक्षा सूत्र भी बाँधा जाता है जिसे देवी का कड़ा कहा जाता है।

नागाणा के अतिरिक्त नागणेचियां देवी का जोधपुर के किले व बीकानेर शहर में भी मंदिर अवस्थित है। जहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी आस्था प्रकट करते हुए पूजा अर्चना को उपस्थित होते है।  

मंदिर के प्रबंध हेतु प्रबंध समिति व ट्रस्ट बना है। मंदिर में सन 2005 से ही पशुबलि पर प्रतिबंध है। श्रद्धालुओं के रहने आदि की भी सुविधाएँ मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है।


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