ठाकुर के कुएं के साथ कभी ठाकुर की व्यथा पर ध्यान दिया है ?

Gyan Darpan
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वीडियो में जो ये दृश्य देख रहे हैं यह राजस्थान के एक गांव का दृश्य है, | आज इस गांव में हर घर में पक्के मकान बने है, पीने के पानी के लिए हर घर में नल लगे है, बच्चों के खेलने के लिए खेल का मैदान है तो पढाई के लिए सरकारी विद्यालय है | कभी इस गांव में रात्री में किसी दिए, लालटेन या डिबिया की बनी छोटी सी चिमनी की कहीं कहीं रौशनी दिखाई देती थी, पर आज यह गांव बिजली की रौशनी से जगमग है |

हर किसी को लगता है हमारा गांव एक विकसित गांव है जिसमें हर सुविधा है | लेकिन इस गांव को बसाने वाले ठाकुर की व्यथा पर किसी का ध्यान नहीं जाता और ना ही कोई इससे वास्ता रखता है | हाँ गांव बसाने वाले उस ठाकुर ने कैसे गांव बसाया, कितना संघर्ष किया, अपनी निजी भूमि का कैसे और कितना त्याग किया, जिनको दूर दूर से लाकर बसाया उनकी सुरक्षा, चोरों से उनके गृहस्थी के सामान के साथ उनके पशुओं की सुरक्षा के लिए कैसे अपनी नींद ख़राब की, उसकी याद उनके वंशज ही नहीं करते तो उस ठाकुर से भूमि पाकर बसने वाले उसे क्यों याद करे|

इस गांव को बसाने वाले ठाकुर के पिता क्षेत्र के जागीरदार थे, उनके रहने और प्रशासन चलाने के लिए ये गढ़, किले और महल थे | इन्हीं गढ़, किलों में इस गांव को बसाने वाले ठाकुर का बचपन बीता , एक राजकुमार की तरह, एक खास आदमी की तरह, जिसके आगे पीछे सेवा के लिए नौकरों की फौज लगी रहती थी | इन गढ़ और महलों में कितना सुखमय बचपन और युवावस्था बीती होगी ठाकुर की |

पिता के निधन के बाद इस गांव को बसाने वाले ठाकुर के बड़े भाई क्षेत्र के जागीरदार बन गए, यानी क्षेत्र के शासक और ये किले, महल उनकी जायदाद में शामिल हो गए| छोटे भाईयों को गुजारा करने के लिए अलग अलग जगह कुछ भूमि दी गई | ये भूमि देते समय भी बड़े भाई ने ध्यान रखा कि उपजाऊ भूमि खालसा रहे, यानी जागीर के अधीन रहे ताकि जागीर की आय में कोई कमी नहीं पड़े, और अनुपजाऊ भूमि छोटे भाइयों को जीवन यापन के लिए दे दी गई |

इस गांव को बसाने वाले ठाकुर को भी आज से लगभग तीन सौ वर्ष पहले यहाँ छ: हजार बीघा भूमि दी गई थी | साथ ही ये जिम्मेदारी भी कि जब भी युद्ध होगा तुझे मातृभूमि और प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना है | उक्त जिम्मेदारी लेकर ठाकुर ने किले महल छोड़े और उसे मिली भूमि में एक ऊँचा टीला देख वहां एक झोपड़ा बनाया और यहीं से शुरू होती है उस ठाकुर व्यथा कथा |

कभी महल और किले में रहने वाला ठाकुर आज वीराने में एक झोपड़े में  निवास कर रहा है | उसकी ठकुराइन जो कभी उक्त गढ़ के महलों में दासियों से घिरी रहती थी आज वो सब वैभव छोड़ झोंपड़े में रहने चल पड़ी है | सोचो उस वक्त उस ठाकुर के मन में कैसे कैसे विचार उमड़ रहे होंगे, उसकी मनोदशा क्या रही होगी ? आज वो खास से आम हो गया, पर कोई बात नहीं, ख़ुशी ख़ुशी ठाकुर ने यह सब स्वीकार कर लिया और जुट गया अपनी अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए | उसके लिए ठाकुर ऊंट या घोड़े पर बैठ अपनी रिश्तेदारी में गया, विभिन्न जगहों से किसान परिवारों को लाकर अपने झोपड़े के आस-पास बसाया, उनको रहने के लिए, पशु रखने के लिए निशुल्क जगह दी | खेती के लिए बंटाई पर अपने खेत दिए | अब किसानों को औजार बनाने, बाल काटने, सिलाई करने वाले, सफाई करने वालों की जरुरत हुई तो ठाकुर फिर अपने ऊंट या घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा और अलग अलग काम करने वाली जातियों को लाकर अपने झोपड़े के पास उन्हें भी बसने के लिए जगह दी |

इस तरह जैसे जैसे जिन लोगों की जरुरत समझी गई ठाकुर लाता गया और बसाता गया | इतने लोगों की धार्मिक आस्था के लिए ठाकुर ने एक मंदिर बनवाया और उसमें पूजा पाठ के लिए पंडित लाया, उसे गुजारे के लिए भूमि दी, दूकान की जरुरत हुई तो , बसने और दूकान  के लिए भूमि देने का वचन देकर ठाकुर वैश्य परिवार को भी लाया | देखते ही देखते कुछ वर्षों में ठाकुर की उस निजी भूमि पर एक छोटा सा गांव बस गया | गांव के लोगों के लिए वो आम ठाकुर ही खास था क्योंकि उनकी और उनके पशुओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो ठाकुर की ही थी | किसी का किसान का पशु चोरी हो जाता तो ठाकुर उसे अपनी मूंछ का सवाल समझता कि उसके रहते उसके किसान के यहाँ किसी ने चोरी करने की हिम्मत कैसे कर ली और यही सोचकर वह उनकी सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहता और जरुरत पड़ती तो अपने प्राणों की बाजी लगा देता |

अपने गांव के किसानों के पशुधन के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले ठाकुरों की देवलियां आज भी गांव गांव में देखी जा सकती है, कई गांवों में आज भी उन ठाकुरों के देवालय बने है जिन्होंने किसानों के पशुधन को डाकुओं से बचाने के लिए सिर कटने के बाद भी संघर्ष किया | ऐसे ठाकुरों की आज भी ग्रामीणों झुझार जी महाराज के नाम से पूजा अर्चना करते हैं |

धीरे धीरे समय बीतता गया | ठाकुर के खुद के वंशज भी बढे,  ठाकुर ने जिन परिवारों को लाकर बसाया उनके वंशज भी बढे और गांव का विस्तार होता गया | गांव बसाने के सदियों बाद देश में सत्ता परिवर्तन हुआ, नयी सरकार बनी, लोकतंत्र में सत्ता पाने के लिए वोट बैंक चाहिए था, सो सत्ता में आये दल ने ठाकुर के वंशजों की वह भूमि जो किसान जोतता था, वो छीन कर किसान को दे गई | किसान पुत्रों ने भी अब उस पर अपना हक़ समझा और ठाकुर के वंशजों ने अपना हक़ | एक तरफ ठाकुर के वंशजों की रोजी रोटी छिनी जा जा रही थी जो उन्हें सैनिक सेवा देने के बदले मिली थी, रियासती काल में ठाकुर के वंशजों को सैनिक सेवा के बदले वेतन नहीं मिलता था, उन्हें भूमि ही मिलती थी, जिस पर किसानों से बंटाई पर खेती कराकर अपना गुजारा करो और बदले में सैनिक सेवा दो |

देश में सत्ता परिवर्तन के साथ ठाकुर के वंशजों के पास ना तो सैनिक सेवा रही, ना परिवार का पालन के लिए नयी सरकार ने कृषि भूमि छोड़ी | और तो और सरकार ने जिन लोगों को ठाकुर के वंशजों की जमीन दी, उनसे ठाकुर के वंशजों का छुटपुट संघर्ष भी चला और उन जातियों और ठाकुर के वंशजों के सम्बन्ध के बीच एक एक खाई खुद गई | हालाँकि ठाकुर वंशजों ने जमीन छीनने की घटना को एक बुरा स्वप्न समझ कर भुला दिया, पर राजनैतिक दलों ने ठाकुर के खिलाफ वोट बैंक बनाने के लिए जमकर दुष्प्रचार किया | नेताओं ने अपने भाषणों में, लेखकों ने अपनी किताबों और लेखों में, फिल्मकारों ने अपनी फिल्म में ठाकुर को क्रूर, अत्याचारी, व्याभिचारी और हर बुराई की जड़ प्रचारित किया, नतीजा यह हुआ कि जिन जातियों, जिन परिवारों को ठाकुर लेकर आया, बसने के लिए अपनी जमीन दी, रोजगार उपलब्ध कराया, सुरक्षा दी, उनकी सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ी अपने प्राण न्योछावर किये आज उक्त दुष्प्रचार के चलते इन्हीं जातियों और परिवारों के वंशज ठाकुर के वंशजों को अपना दुश्मन समझते हैं और उन्हें हर तरह से क्षीण करने की मन में हसरत रखते हैं |

गांव बसाने वाले ठाकुर की आत्मा ऊपर से यह सब देख क्या सोचती होगी ? शायद ठाकुर की आत्मा आज भी उसी रतः व्यथित होगी जब  गढ़, महल छोड़ते समय व्यथित हुई थी|       

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