“महाप्रतापी राव शेखा के वंशज शूराग्रणी केसरीसिंह खण्डेला अजमेर के शाही सूबेदार से लड़ते हुए अगणित घावों से घायल हो, रणक्षेत्र में खून से लथपथ बेहोश पड़े थे। शरीर से रक्त धाराएँ फूट रही थी। काफी देर बाद जब उन्हें कुछ होश आया तो उन्होंने भूमि-माता को अपना रक्त-पिण्ड देने हेतु अपना हाथ बढ़ाया और युद्ध भूमि से कुछ मिट्टी ले उसमें अपना रक्त मिलाने के लिए अपने घावों को दबाया और रक्त निकालने की असफल चेष्टा करने लगे, किन्तु उनके घावों से पहले ही काफी रक्त बह चुका था, अब रक्त कहाँ था। तब तो वीर केसरीसिंह अपनी तलवार से शरीर के माँस-पिण्ड काटने लगे। परन्तु फिर भी रक्त नहीं निकला। यह देखकर उनके समीप ही घायल पड़े उनके चाचा अलोदा के ठाकुर मोहकमसिंह ने पूछा- आप यह क्या कर रहे हैं। अर्द्ध-मूर्च्छित दशा में उत्तर दिया- मैं धरती-माता को रक्तपिण्ड अर्पित करना चाहता हूँ, पर अब मेरे शरीर में रक्त नहीं रहा। यह सुनकर मोहकमसिंह ने कहा- “आपके शरीर में रक्त नहीं रहा तो क्या हुआ मेरे शरीर में तो है। आपकी और मेरी धमनियों में एक ही रक्त बह रहा है। लीजिए, यह कहते हुए उसने अपने शरीर से रक्त निकालकर उसमें मिला दिया, जिनके पिण्ड बनाते-बनाते ही केशरीसिंह ने दम तोड़ दिया।”
"आसन्न मृत्यु के क्षणों में भी जिस धरती के पुत्र माँ वसुन्धरा को अपना रक्त अर्घ्य भेंट करने की ऐसी उत्कट साध अपने मन में सजोए रखते हों, उस धरती-माता के एक-एक चप्पे के लिए यदि उन्होंने सौ-सौ सिर निछावर कर दिए हों तो इसमें क्या आश्चर्य है ? ( माण्डवा- युद्ध की भूमिका, पृष्ठ 2,3)
हरिपुरा के लोमहर्षक घमासान युद्ध में राजा केसरीसिंह के पीत ध्वज के नीचे युद्ध लड़ते हुए दो शत 200 से अधिक शूरमा योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की थी। प्रतापी राव शेखा के वंशजों की प्रायः सभी शाखा प्रशाखाओं के लड़ाकू योद्धाओं ने मुगल शाही सेना से युद्ध लड़ते हुए प्राणों की आहुतियाँ अर्पित की थी। केसरीसिंह समर खण्ड काव्य के अनुसार टकणेत, मिलकपुरिया, उग्रसेन का, गोपालका, लाडखानी, रावजी का, भोजराजजी का, हरिराम का, परसरामका आदि शेखा के वंशजों की सभी शाखाओं के वीर योद्धाओं ने हरिपुरा के युद्ध में भाग लिया था। राजा केसरीसिंह की ननसाल और सुसराल के सम्बन्ध से सरवाड़ (अजमेरा) और मारोठ के गौड़ों ने तथा बीदाद, बोरावड़ आदि के मेड़तिया सगे-सम्बन्धी शेखावतों के साथ उस भीषण युद्ध में भाग योद्धाओं के नामों का उल्लेख करना कष्ट साध्य कार्य है|
सन्दर्भ : ठाकुर सुरजन सिंह जी द्वारा लिखित पुस्तक -"गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद् इतिहास"