राजा केसरी सिंह खंडेला (चित्र प्रतीकात्मक है) |
Raja Kesari Singh Shekhawat of Khandela, History of Khandela खंडेला के राजा बहादुर सिंह जी शेखावत के दिवंगत होने के बाद उनके बड़े पुत्र केसरी सिंह जी विक्रम सं. 1740 के फाल्गुन माह में खंडेला की गद्दी पर बैठे | उस वक्त मुग़ल बादशाह औरंगजेब का दिल्ली पर राज था और औरंगजेब दक्षिण के अभियानों में काफी व्यस्त था | केसरी सिंह जी ने गद्दी पर बैठने के बाद आवश्यक कार्य निपटाये और दक्षिण में जाकर औरंगजेब से मिले | इससे पूर्व उनके पिता राजा बहादुर सिंह जी ने औरंगजेब से विद्रोह कर रखा था, पर औरंगजेब में उनके पिता के विद्रोहात्मक कार्यों को अनदेखा कर केसरी सिंह जी को ख़ासा खिल्लत, जड़ाऊ मुठ की तलवार और मनसब देकर उनकी राजा की पदवी को मान्यता प्रदान की |
कुछ समय राजा केसरीसिंह जी दक्षिण में बादशाह के युद्ध अभियान में लगे रहे पर बादशाह की धर्म विरोधी नीति को देखते हुए पिता की भांति विद्रोह कर बिना बादशाह को बताये खंडेला लौट आये| खंडेला आने के बाद उन्होंने अजमेर और नारनोल के मुग़ल अधिकारीयों की अवहेलना करना शुरू कर दिया और शाही खजाने में जो मामला उन्हें जमा कराना होता था, वह बंद कर दिया | इस वजह से नारनोल के मुग़ल फौजदार से उनका विवाद बढ़ गया | फौजदार ने मामला सुलझाने के लिए जयपुर महाराजा को भी मध्यस्थ बनाना चाहा पर बात बनी नहीं|
खंडेला के राजा केसरीसिंह जी से उस वक्त मनोहरपुर के राव जगतसिंह जी मन में ईर्ष्या रखते थे | उन्होंने केसरीसिंह जी द्वारा बादशाह से विद्रोह करने के अवसर का लाभ उठाने का मौका मिल गया | राव जगत सिंह जी ने केसरीसिंह जी के छोटे भाई फ़तेहसिंह जी को भी राज्य का बंटवारा कराने के लिए उकसा दिया | राज्य के बंटवारे की बात पर दोनों भाइयों में विवाद बढ़ गया, पर उनकी माता जी ने विवाद बढ़ता देख खंडेला राज्य के पांच हिस्से कर तीन हिस्से केसरीसिंह जी को एवं दो हिस्से फ़तेहसिंह जी को दे दिए| जो केसरीसिंह जी को पसंद नहीं आया | और उन्होंने एक दिन फतेहसिंह जी की हत्या करवा दी |
भाई की हत्या, मुग़ल थाने और मुग़ल शासित खालसा गांवों को लूटने का आरोप लगाकर मनोहरपुर राव जगतसिंह ने मुग़ल अधिकारीयों को खंडेला के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए फिर उकसाया | उस वक्त अब्दुल्ला खान अजमेर सूबे का सूबेदार था | केसरीसिंह जी द्वारा मामला जमा नहीं कराने और अन्य शिकायतें मिलने के बाद उन्हें दण्डित करने के लिए अब्दुल्ला खान एक बड़ी सेना के साथ रवाना हुआ | वह अपनी जागीरी टोडा से सांभर पहुंचा | उधर सूचना मिलने पर राजा केसरीसिंह जी ने भी अपने सभी शेखावत बंधुओ, सम्बन्धी गौड़ों और राठौड़ों को युद्ध में सहायता के लिए निमंत्रण भेजा और सेना एकत्र राजा कर शत्रु से सीधे मुकाबला करने के लिए कूच किया |
इस तरह दोनों सेनाओं के मध्य तत्कालीन अमरसर परगने के गांव देवली और हरिपुरा के बीच आश्विन शुक्ला १३ संवत 1754 के दिन भीषण युद्ध हुआ | इस युद्ध में राजा केसरीसिंह जी की सेना की हार हुई और लगभग 200 शेखावत योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी | उक्त युद्ध की धारा तीर्थ में रक्त स्नान करते अपने ज़माने के उदभट वीर योद्धा राजा केसरीसिंह जी सूर्यमंडल भेदकर परम ज्योति में विलीन हो गए|
इतिहास में यह युद्ध हरिपुरा युद्ध के नाम पर दर्ज हुआ | इस युद्ध में एक अनोखी घटना घटी, युद्ध में घायल, क्षत विक्षत हुए राजा केसरीसिंह जी मृत्यु से पूर्व धरती माता को रक्त पिंड अर्पित करना चाहते थे, पर मिटटी को रक्त से गिला करने के लिए घावों से उतना रक्त ही नहीं निकला, तभी उनके काका अलोदा के ठाकुर मोहकमसिंह जी ने यह दृश्य देखा तो वे राजा के पास आये यह कहते हुए कि मेरा और आपना रक्त ही है, अपने शरीर से रक्त निकालकर उसमें मिला दिया, जिसके पिंड बनाते बनाते राजा केसरीसिंह जी ने दम तोड़ दिया |
सन्दर्भ : पुस्तक - "गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद इतिहास एवं शेखावतों की वंशावली" लेखक - ठाकुर सुरजन सिंह शेखावत