पेली बरखारी सुगंध

Gyan Darpan
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आपणे राजस्थान री माटी री तो बात ही न्यारी है,

और जद ई माटी पर बरखा हुवे तो सोने में सुहागा वाळी बात हुवे ।

पण राजस्थान अर बरखा री नोक-झोंक तो सदा स्यूं चालती आई है,

और कई बार तो आ इतनी बढ़ जावे कि आ बरखा सालां तक

राजस्थान ने आपरो मुंडो तक कोणी दिखावे ।

राजस्थान री माटी जकी ईण गर्मी में सोने री ज्यूं चिलके है,

रारा धरा आकृति लू रोजीना बदले है।

कड़कड़ाती गर्मी में जद सगळा पंछी, जीनावर, मिनख इंद्र देवता

स्यूं बरखारी पुकार करे,

जद मोरया बाणी हू “पीहू पीहू" री जगह "महो- मेहो" री गुहार करे,

जद ई साल री तापयोडी, बैशाख-जैठ री तीसी धरती पर इंद्र देवता बरखा री मनवार करे।

जद पेली बरखा री छांटा धरती पर पड़े तो लागे, दुनियां री कोई सुगंध ईरी होड़ कोणी कर सके।

लागे जाणे दुनिया रा सगळा फुलां री सुगंध फीकी पड़गी।

जा धरती राजी हू देवता ने पाछो आभार कहवे है। हू

आ खाली सुगंध कोणी,

आ उम्मीद है- जावती गर्मी और आण वाळा सावण री,

आ उम्मीद है - किसानां रा चौमासे री, जिकां इने आंख्यां फाड़ियां साल सूं उडिके है।

आमाटी री सुगंध आपरे सागे लावे आपणो बाळपणो, गाँव, गळयां, गुवाडरी घणी सारी यादां ।

बरखा में राजी हुवेड़ा टाबर बिना परवाह भींजण लाग जावे,

पिंपळ और नीम रा पत्ता भी थरकण लाग जावे।

शहर रा मिनख तो छतरी सूं रोक लेवे बरखा रो पाणी,

पर गाँव रा टाबर तो आज भी पाणी में कूदता पूरे गाँव री गळयां नाप लेवे।

पेली छांट, पेली बरखा, महकती माटी - मन में बस जावे ।

और आपां ने सीख देवे की -

"जीवन ने महकावण खातर, थोड़ो तो भींजणो पड़सी ।"

लेखक : लक्ष्मी चारण

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