नाग राजवंश का इतिहास History of Nag Rajvansh

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नाग राजवंश का इतिहास : नाग क्षत्रिय (तक्षक)

यह ऋषि वंश की प्रसिद्ध शाखा है। इस कुल के क्षत्रिय भारत के कोने-कोने में रहते हैं। आवागमन एवं रोज़गार के कारण विदेशों में भी पाये जाते है। इनके राज्यों की मान्यताओं से विकसित गोत्राचार निम्न प्रकार है जो इनकी सभी शाखाओं को भाईचारे में बाँध देता है। गोत्राचारः ऋषिवंश, कुली- तक्षक, गोत्र -कश्यप, प्रवर तीन- काश्यप, वत्सार, नैधुव, वेद- सामवेद, शाखा - कौथुमी, सूत्र - गोभिलगृह्य सूत्र, निशान-हरे झण्डे पर नाग का चिन्ह, शस्त्र-तलवार।

कई विद्वानों ने इस वंश को नागों (सर्पों) से उत्पन्न माना है जो कि असंभव है। यह सूर्यवंशी राजा शेषनाग का वंश है। इस वंश में गंगाधर, महिपाल, पुरन्दर, नागादेर, वेणुधर, योजनावीर्य, दामोदर, नागानन कार्तवर्थी आदि अनेक राजा हुए। वाल्मीकि रामायण में भी शेषनाग और वासुकि राजाओं का वर्णन आता है। महाभारत के आदिपर्व के तीसरे अध्याय में नागों का वर्णन है। महाभारत काल में ये गंगा-यमुना के बीच और कुरूक्षेत्र और दिल्ली के आसपास के खांडव वन में बसते थे। इस वंश के एक राजा के पास अट्ठाईस हजार आठ सौ सैनिकों का वर्णन आता है। जब अर्जुन ने खांडव वन को जला दिया तब से ये पांडवों के शत्रु बन गये थे। इन्होंने अर्जुन को मारने के लिए बड़े-बड़े यत्न किये किन्तु अर्जुन हर बार बचता ही रहा। महाभारत के में वर्णन आता है कि एक नाग राजकुमार कर्ण के सहायक युद्ध के रूप में युद्ध भूमि में सदा उसके साथ रहता था। वह बार-बार कर्ण से कहता कि इस जहरीले तीर से अर्जुन को मारो किन्तु कर्ण ने उसकी बात न मानी और नाग की इच्छा पूरी न हो सकी। नागों ने अर्जुन के पौत्र परीक्षित को मार कर अपना बदल लिया था। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नागों का दमन और अहिच्छत्रपुर, नागपुर, नागौर, नागदा, नागही, यज्ञपुर (जहाजपुर), सफीदों (हरियाणा) आदि इनके मुख्य केन्द्रों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। जिससे नाग सत्ताच्युत होकर इधर-उधर बिखर गये।

प्राचीन काल में नागवंशीय क्षत्रियों का राज्य मैक्सिको (अमेरिका) में भी था। यहाँ के नाग राजा की पुत्री उलूकी के साथ अर्जुन ने विवाह किया था। यहाँ से मिले प्रमाणों से यहाँ इस वंश का 684 वर्ष तक राज्य रहा। आज भी एक लोकोक्ति है कि पाताल का राजा शेषनाग सारी पृथ्वी को अपने फन पर उठाये हुए है। नागवंशियों के फीजी द्वीप पर भी शासन होने के प्रमाण मिले हैं।

भारत के इतिहास में इस वंश का शासनकाल सन् 150-284 ई. तक का माना जाता है। यह वंश हिन्दू साम्राज्य का पुर्नसंस्थापक था। इस युग में प्रारंभिक राजा का नाम भी शेषनाग था। इसकी वंशावली इस प्रकार है : शेषनाग, भोगिन्, रामचन्द्र, धर्मवर्म्मा, वंगर, भूतनंदी, शिशुनंदी, यशनंदी, पुरूषदात, कामदात, भावदात शिवनंदी ( या शिवदात) इनके प्रथम नौ राजाओं को नवनाग या भारशिव भी कहा जाता था। भारशिवों के कारण ही इनका राज्य प्रारंभि भरहुल (वर्तमान मिर्जापुर और इलाहाबाद के आस-पास) कहलाता था। इनकी पहली राजधानी पद्मावती (नरवर) और फिर क्रान्तिपुरी तथा मथुरा रही है। इनकी टकसाल कोशाम्बी में थी। इस वंश के अन्य राज्य चम्मा, श्रुधन (अम्बाला के आस-पास), इन्द्रपुर वर्तमान इंदौर खेड़ा, जिला बुलंदशहर थी। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने इन सभी को परास्त कर इनकी रियासतें अपने साम्राज्य में मिला लीं।

मथुरा, मारवाड़ और कश्मीर पर सातवीं से नौवीं शताब्दी तक, बस्तर पर नौंवी शताब्दी में, येलवर्गा भोगवती, वर्तमान निजाम राज्य पर दसवीं से बारहवीं शताब्दी तक इनका राज्य रहा। रियासतें और ठिकाने : छोटा नागपुर के आस-पास पालकोट ऋतुराज्य और पंचकोट के राज्य कालाहांडी । अब इस वंश के क्षत्रिय बिहार के रांची, हजारीबाग, मुजफ्फरपुर जिलों, बंगाल, आसाम, मध्य प्रदेश, कश्मीर और दक्षिणी भारत में बसते हैं।

शाखाएँ :

1. कर्कोटक- कर्कोटक नाग के वंशज कर्कोटक क्षत्रिय कहलाते हैं। इस शाखा का राज्य कश्मीर में था। कल्हण जो महाराज ललितादित्य मुक्तापीड़ का राजकवि था। जिसने इसे वंश का इतिहास अपने ग्रंथ राजतरंगणि में लिखा है। कर्कोटक वंशीय नरेश महाराजा ललितादित्य के पिता दुर्लभ वर्धन ने बुद्ध का पवित्र दांत कन्नौज भेजकर सम्राट हर्ष के साथ मित्रता की थी। इस की मृत्यु के बाद ललितादित्य मुक्तपीड़ राज्य का स्वामी बना। इसका शासनकाल सन् 724-76 था। इसके बाद जयपीड़ नियादित्य इस वंश के शासक हुए। इसके बाद कई दुर्बल शासक हुए जिनसे नौंवी शताब्दी में उत्पल्लों ने राज्य छीन लिया।

2. तक्षकवंश- यह वंश तक्षक नाग की सन्तान है। जिला मैनपुरी में मि लते हैं। इसे टक्क देश, (पंजाब) में रहने के कारण टांक वंश भी कहा जाता है। जनरल कनिंघम ने उनका मूल स्थान मध्य भारत में टक्करिका गांव माना है और इस समय उनकी आबादी मध्य प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश के अमरोहा, बिजनौर आदि जिलों में मिलते हैं। अमरोहा जनपद में साहूपुर जीरखी विद्यालय के प्रिंसिपल जयपाल सिंह नाग एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं।

3. पंचकर्पट- कर्पटी नाग के वंशज पंचकर्पटग नाग कहलाते हैं। इनकी किंचितमात्र जनसंख्या पंजाब व राजस्थान में है।

सन्दर्भ : "राजपूत वंशावली" - लेखक : ठाकुर ईश्वर सिंह मड़ाढ से साभार 

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