नाग राजवंश का इतिहास बहुत प्राचीन है | इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद जी ओझा ने अपनी पुस्तक “राजपूताने का इतिहास” में लिखा है कि “नागवंश का अस्तित्व महाभारत युद्ध के पहले से पाया जाता है | महाभारत के समय अनेक नागवंशी राजा विद्यमान थे | तक्षक नाग के द्वारा परीक्षित को काटा जाना और जनमेजय के सर्पसत्र में हजारों नागों की आहुति देना, एक रूपक माना जाय तो आशय यही निकलेगा कि परीक्षित नागवंशी तक्षक के हाथ से मारा गया, जिससे उसके पुत्र ने अपने पिता के बैर में हजारों नागवंशियों को मारा |
डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने अपनी पुस्तक "राजस्थान का इतिहास" में लिखा है नाग वंश का अधिकार प्राचीनकाल में राजस्थान में भी था | नागौर इनके अधिकार में रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं | कोटा जिले के शेरगढ़ के द्वार से 791 ई. के शिलालेख से नागवंशियों के चार नाम उपलब्ध होते हैं जो बिन्दुनाग, पद्मनाग, सर्वनाग और देवदत्त है | इसमें सर्वनाग की रानी का नाम श्री मिलता है | इसमें यह अंकित है कि देवदत्त ने 791 ई. में कौशवर्धन पर्वत के पूर्व में बौद्ध चैत्य का निर्माण कराया| इस लेख में देवदत्त को सामंत बताया है संभवतः ये कन्नौज के रघुवंशी प्रतिहारों के सामंत रहे हों| नागों की अलौकिक शक्ति के उदाहरण बौद्ध ग्रंथों तथा राजतरंगिणी आदि में मिलते हैं |
Nag Vansh Ka Sampurn Itihas |
कई विद्वानों ने इस वंश को नागों (सर्पों) से उत्पन्न माना है जो कि असंभव है। हाँ नागों से इनका कोई दूसरा सम्बन्ध हो सकता है जैसे "अनसंग हीरोज इंदु से सिन्धु तक" पुस्तक में लेखक देवेन्द्र सिकरवार ने "टोटम युग के यात्री" नामक पाठ में लिखा है कि "एक ऐसा जीव पदार्थ, जिससे कोई कबीला स्वयं की उत्पत्ति मानता है और उसके प्रतीक चिन्ह की पूजा करता है | टोटम विकास की इसी श्रृंखला में कई जंतुओं की तरह सरीसृप वर्ग से भी एक टोटम का विकास हुआ, जो एक ऐसा जीव था, जिसके प्रति रोंगटे खड़े करने वाला भय विश्वव्यापी था, इसलिए वही डर, उस टोटम काबिले के प्रति व्याप्त हो गया |"
देवेन्द्र सिकरवार लिखते हैं कि- उनके पास पलभर में जीवितों के प्राण हरने वाले विषों का ज्ञान भी था और मरते व्यक्तियों को जीवित कर देने वाले विष का भी ज्ञान था | वे कश्मीर से लंका और सिंध से लेकर पूर्वी एशिया तक फैले हुए थे | सिकरवार ने इनका मूल स्थान कश्मीर के "पहाड़" अर्थात "नग" माना है, इसीलिए इन्हें नाग कहा गया |
इसके इतर ईश्वर सिंह मड़ाढ अपनी पुस्तक "राजपूत वंशावली" में नाग वंश के बारे में लिखते हैं कि -" यह सूर्यवंशी राजा शेषनाग का वंश है। इस वंश में गंगाधर, महिपाल, पुरन्दर, नागादेर, वेणुधर, योजनावीर्य, दामोदर, नागानन कार्तवर्थी आदि अनेक राजा हुए। वाल्मीकि रामायण में भी शेषनाग और वासुकि राजाओं का वर्णन आता है। महाभारत के आदिपर्व के तीसरे अध्याय में नागों का वर्णन है। महाभारत काल में ये गंगा-यमुना के बीच और कुरूक्षेत्र और दिल्ली के आसपास के खांडव वन में बसते थे। इस वंश के एक राजा के पास अट्ठाईस हजार आठ सौ सैनिकों का वर्णन आता है। जब अर्जुन ने खांडव वन को जला दिया तब से ये पांडवों के शत्रु बन गये थे। इन्होंने अर्जुन को मारने के लिए बड़े-बड़े यत्न किये किन्तु अर्जुन हर बार बचता ही रहा। नागों ने अर्जुन के पौत्र परीक्षित को मार कर अपना बदल लिया था। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नागों का दमन और अहिच्छत्रपुर, नागपुर, नागौर, नागदा, नागही, यज्ञपुर (जहाजपुर), सफीदों (हरियाणा) आदि इनके मुख्य केन्द्रों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। जिससे नाग सत्ताच्युत होकर इधर-उधर बिखर गये।
ईश्वर सिंह मड़ाढ के अनुसार "प्राचीन काल में नागवंशीय क्षत्रियों का राज्य मैक्सिको (अमेरिका) में भी था। यहाँ के नाग राजा की पुत्री उलूकी के साथ अर्जुन ने विवाह किया था। यहाँ से मिले प्रमाणों से यहाँ इस वंश का 684 वर्ष तक राज्य रहा। आज भी एक लोकोक्ति है कि पाताल का राजा शेषनाग सारी पृथ्वी को अपने फन पर उठाये हुए है। नागवंशियों के फीजी द्वीप पर भी शासन होने के प्रमाण मिले हैं।"
इनकी वंशावली इस प्रकार है : शेषनाग, भोगिन्, रामचन्द्र, धर्मवर्म्मा, वंगर, भूतनंदी, शिशुनंदी, यशनंदी, पुरूषदात, कामदात, भावदात शिवनंदी ( या शिवदात) इनके प्रथम नौ राजाओं को नवनाग या भारशिव भी कहा जाता था। भारशिवों के कारण ही इनका राज्य प्रारंभि भरहुल (वर्तमान मिर्जापुर और इलाहाबाद के आस-पास) कहलाता था। इनकी पहली राजधानी पद्मावती (नरवर) और फिर क्रान्तिपुरी तथा मथुरा रही है। इनकी टकसाल कोशाम्बी में थी। इस वंश के अन्य राज्य चम्मा, श्रुधन (अम्बाला के आस-पास), इन्द्रपुर वर्तमान इंदौर खेड़ा, जिला बुलंदशहर थी। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने इन सभी को परास्त कर इनकी रियासतें अपने साम्राज्य में मिला लीं।
मथुरा, मारवाड़ और कश्मीर पर सातवीं से नौवीं शताब्दी तक, बस्तर पर नौंवी शताब्दी में, येलवर्गा भोगवती, वर्तमान निजाम राज्य पर दसवीं से बारहवीं शताब्दी तक इनका राज्य रहा। रियासतें और ठिकाने : छोटा नागपुर के आस-पास पालकोट ऋतुराज्य और पंचकोट के राज्य कालाहांडी । अब इस वंश के क्षत्रिय बिहार के रांची, हजारीबाग, मुजफ्फरपुर जिलों, बंगाल, आसाम, मध्य प्रदेश, कश्मीर और दक्षिणी भारत में बसते हैं।
नागवंश की कई शाखाएँ है जिनमें पहली है -
1. कर्कोटक- कर्कोटक नाग के वंशज कर्कोटक क्षत्रिय कहलाते हैं। इस शाखा का राज्य कश्मीर में था। कल्हण जो महाराज ललितादित्य मुक्तापीड़ का राजकवि था। जिसने इसे वंश का इतिहास अपने ग्रंथ राजतरंगणि में लिखा है। कर्कोटक वंशीय नरेश महाराजा ललितादित्य के पिता दुर्लभ वर्धन ने बुद्ध का पवित्र दांत कन्नौज भेजकर सम्राट हर्ष के साथ मित्रता की थी। इस की मृत्यु के बाद ललितादित्य मुक्तपीड़ राज्य का स्वामी बना। इसका शासनकाल सन् 724-76 था। इसके बाद जयपीड़ नियादित्य इस वंश के शासक हुए। इसके बाद कई दुर्बल शासक हुए जिनसे नौंवी शताब्दी में उत्पल्लों ने राज्य छीन लिया।
3. पंचकर्पट- कर्पटी नाग के वंशज पंचकर्पटग नाग कहलाते हैं। इनकी किंचितमात्र जनसंख्या पंजाब व राजस्थान में है।
तक्षक वंश- यह वंश तक्षक नाग की सन्तान है। जिला मैनपुरी में मि लते हैं। इसे टक्क देश, (पंजाब) में रहने के कारण टांक वंश भी कहा जाता है। जनरल कनिंघम ने उनका मूल स्थान मध्य भारत में टक्करिका गांव माना है और इस समय उनकी आबादी मध्य प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश के अमरोहा, बिजनौर आदि जिलों में मिलते हैं।
टांक वंश के बारे में “राव शेखा” पुस्तक में फूटनोट में लेखक सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ लिखते हैं कि प्राचीन काल में नागौर, मंडोवर और पुष्कर तक नागों का राज्य होने के प्रमाण मिलते हैं | मंडोर की नागाद्री नदी, जोधपुर का भोगिशैली पहाड़, पुष्कर का नाग पहाड़ और नागौर नगर इसी तथ्य की ओर इंगित करते हैं | नागौर पर राज्य करने वाली नागों की शाखा का नाम तक्षक था, जिसका बिगड़ा शब्द टांक है | चौहानों का प्रभाव स्थापित होने के बाद भी नागौर के आस-पास टांकों के कई ठिकाने थे| गुजरात पर शासन करने वाले (सं. 1455 वि. से 1592 वि. तक) मुस्लमान शासक डीडवाना के पास रहने वाले टांक राजपूत ही थे, जो उस काल मुसलमान बन चुके थे | गुजरात पर राज्य करने वाले उन टांक मुसलमान शासकों ने नागौर को सदैव अपना पैतृक स्थान माना और सं. 1592 वि. तक नागौर उन्हीं के भाई-भतीजों के अधिकार में बना रहा |
इसी प्रकार बैराठ के आस-पास भी पंद्रहवीं शताब्दी में टांकों के छोटे छोटे कई ठिकाने विद्यमान थे | ओझाजी का मत है कि चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में टांकों का एक छोटा राज्य यमुना के तट पर काष्टा या काठानगर था | पर कहा नहीं जा सकता कि बैराठ के पास राज्य करने वाले टांक नगौर के टांकों के भाई-बंधू थे अथवा काठानगर वाले टांको के |
शेखावाटी राज्य के संस्थापक राव शेखाजी की एक रानी गंगा कुंवरी टांक थी, जो नगरगढ़ के ठाकुर किल्हण टांक की पुत्री थी | शेखाजी की इसी रानी से उनके पुत्र दुर्गाजी का जन्म हुआ था, दुर्गाजी घाटवा युद्ध में शहीद हो गए थे, अत: दुर्गाजी के पुत्र का इसी रानी ने पालन पोषण किया | किल्हण टांक के शायद कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उनका ठिकाना शेखाजी के पुत्र दुर्गाजी के वंशजों की जागीर में रहा और दुर्गाजी के वंशज उनकी टांक माता के नाम से टकनेत कहे जाने लगे |
गिरधर वंश प्रकाश खंडेला का वृहद् इतिहास पुस्तक में इतिहासकार ठाकुर सौभाग्यसिंह शेखावत खूड़ ठिकाने के इतिहास में लिखते है कि –“उस काल में यहाँ के अधिकांश गांवों पर टांक राजपूतों का अधिकार था, जिनको निकालकर श्यामसिंह ने इन ग्रामों को अपनी जागीर में मिला लिया |” श्यामसिंह जी शेखावत खंडेला के राजा वरसिंहदेव के पुत्र थे और उन्हें आजीविका के रूप में वि.सं. 1709 में सूजावास की जागीर मिली थी | लेकिन तत्कालीन अव्यवस्था और अराजकता का फायदा उठाते हुए श्यामसिंह जी शेखावत ने खूड़, बानूड़ा आदि गांवों पर अपना अधिकार कर लिया और खूड़ में अपना ठिकाना कायम किया |
श्यामसिंह जी शेखावत द्वारा टांकों से खूड़ व आस-पास के गांव वि.सं. 1709 में या उसके बाद छीने जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में टांक राजपूतों के छोटे छोटे ठिकाने मौजूद थे | पर आज इस क्षेत्र में टांक राजपूत नगण्य है | हाँ कायमखानी मुसलमानों में टांक सरनेम लगाने वाले आज भी डीडवाना के आस-पास के गांवों में मिल जायेंगे|
नाग वंश के गोत्राचार है :- ऋषिवंश, कुली- तक्षक, गोत्र -कश्यप, प्रवर तीन- काश्यप, वत्सार, नैधुव, वेद- सामवेद, शाखा - कौथुमी, सूत्र - गोभिलगृह्य सूत्र, निशान-हरे झण्डे पर नाग का चिन्ह, शस्त्र-तलवार।