शक्ति और भक्ति के संगम हड़बूजी (नागौर) के महाराज सांखला के पुत्र और राव जोधाजी (1438-89 ई.) के समकालीन थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् ये फलौदी के गाँव हरभजमाल में रहने लगे जहाँ इन्होंने बालीनाथ जी से दीक्षा ली। लोक-देवता रामदेवजी हड़बूजी के मौसी के बेटे भाई थे। रामदेवजी ने जब समाधि ली तो उसके बाद सबसे पहला परचा उन्होंने हड़बूजी को ही दिया था जिसे लोक-गीतों में व भजनों में आज भी गाया जाता है। राव जोधा जब मंडोर को मेवाड़ के अधिकार से मुक्त करवाने के लिए प्रयास रत थे उसी दौरान राव जोधा हड़बूजी के पास सैनिक सहायतार्थ गए। हड़बूजी को राव जोधा के आगमन के पूर्व ही पता लग गया कि राव जोधा वहाँ आ रहे हैं। उन्होंने भोजन व्यवस्था करवा दी जब जोधा जी हड़बूजी के पास पहुँचे तो व्यवस्था देखकर चकित रह गये कि आपको मेरे आने का समाचार कहाँ से मिल गया, तो बताया कि हरभू पीर छे बड़ी कमाई रो धणी छे। यासू कोई बात छांनी नहीं छे। यानू अगम पिछम री खबर पड़े छे।”
राव जोधा को हड़बूजी ने विजयश्री प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और साथ में एक कटार भी दी। वह कटार बीकानेर राजघराने की पूजनीय वस्तुओं में से एक है।” राव जोधा जब मंडोर पर अधिकार करने में सफल हुए तो उन्होंने हड़बूजी को बेंगटी गांव (फलौदी) देकर अपना आभार प्रकट किया। हड़बूजी एक वीर योद्धा और विद्या में प्रवीण पुरुष दोनों ही थे। इन्हें बड़ा सुगनी, वचन सिद्ध और चमत्कारी महापुरुष माना जाता है।” हड़बूँजी का प्रमुख स्थान बेंगटी (फलौदी) में है। श्रद्धालुओं द्वारा मनायी गयी मनौती या कार्य सिद्ध होने पर गाँव बेंगटी में स्थापित हड़बूजी के मंदिर में हरभूजी की गाडी की पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।बेंगटी में बने मंदिर का निर्माण जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने सम्वत् 1778 (1721 ई.) में 7000 रुपयों की लागत से करवाया था।” हड़बूजी के मंदिर में पुजारी उन्हीं के वंशज सांखला राजपूत हैं। हड़बूजी ने बाबा बाळकनाथ से दीक्षा लेने के बाद भी इन्होंने लोक हित के लिए उपदेश और आशीर्वाद के साथ ही साथ नि:सहाय की भाले से रक्षा की थी।