क्यों कहा जाता है राजपूतों को रांघड़

Gyan Darpan
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रांघड़ या रांघड़ा संबोधन पर ज्यादातर राजपूत युवा चिढ़ जाते हैं और उनके विरोधी भी चिढाने या उन्हें नीचा दिखाने के लिए उन्हें रांघड़ या रांघड़ा कह कर संबोधित करते हैं | पर मजे की बात है कि दोनों पक्षों को इस शब्द का अर्थ नहीं पता होता | दरअसल आजादी से पूर्व तक राजपूतों को रांघड़ या रांघड़ा कहा जाता रहा है | इन शब्दों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल चारण कवियों ने डिंगल साहित्य में किया है | जैसे एक कवि ने कहा – “जात सुभाव न जाय, रांघड़ के बोदो व्है | अहरण माच्यां आय, रीठ बजावै राजिया ||”

कवि कहता है कि रांघड़ का क्या कमजोर होना, उसकी तो जाति का ही स्वभाव है कि युद्ध शुरू होने पर वह तलवार बजायेगा ही | कवि का कहने का मतलब है कि युद्ध शुरू हो जाये तो कमजोर से कमजोर राजपूत भी तलवार बजायेगा यही उसकी जाति का स्वभाव है | एक अन्य कवि ने लिखा है – रण रंघड़ राजी रहै, बाळै मूंछा बट्ट। तरवारयां तेगा झडैं, जद मांचै गह गट्ट।। रण राचै जद रांघड़ा, कम्पै धरा कमठ्ठ। रथ रोकै बहता रवि , जद मांचै गह गट्ट।।

इसी तरह एक कहावत भी है कि- जंगल जाट न छेडिये , हाटां बीच किराड़ । रांघड कदे न छेड़ये, जद कद करे बिगाड़।। यानी – जाट को जंगल में नहीं छेडना चाहिए व बनिये को बाजार में। राजपूत को कंही भी नहीं छेड़ने चाहिये वह सब जगह आप को सबक सिखाने में समर्थ है।

रांघड़ या रांघड़ा शब्द है रण+घड़ यानी वह व्यक्ति जो युद्ध के लिए घड़ा गया हो | अत: चारण कवि यह शब्द योद्धा राजपूतों के लिए प्रयोग करते थे,चूँकि राजपूत सदा युद्धरत रहते थे अत: उन्हें रण के लिए घड़ा गया मानकर आम आदमी भी उन्हें रांघड़ या रांघड़ा कहता था | पर प्रचलन कम होने पर वर्तमान पीढ़ी इस शब्द का अर्थ नहीं जानती |

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