क्रांतिवीर डूंगजी जवाहरजी का भी सिंगरावट गढ़ से जुड़ा है इतिहास

Gyan Darpan
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सिंगरावट गढ़ : राजस्थान के शेखावत आँचल के सीकर जिला मुख्यालय से लगभग पचास किलोमीटर दूर ऐतिहासिक महत्त्व का यह गढ़ सिंगरावट कस्बे में स्थित है | सिंगरावट सीकर रियासत का गांव था, जहाँ सीकर के राजाओं ने चार बुर्जों का निर्माण करवाया था | जिसका उद्देश्य यहाँ कोई बड़ा गढ़ बनवाना था या फिर ये सुरक्षा के दृष्टि से किया गया, इसके बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है | इस गढ़ का निर्माण सीकर के रावराजा लक्ष्मणसिंहजी की पासवान यानी उपपत्नी से उत्पन्न पुत्र मुकंदजी ने करवाया था | मुकंदजी जो सीकर राजा के अनौरस पुत्र थे, सीकर रियासत की राजनीति व प्रशासन में काफी दखल रखते थे | ये वही मुकंदजी है जिन्होंने धोद में भी गढ़ बनवाया था |

मुकंदजी व उनके भाइयों ने रावराजा लक्ष्मणसिंहजी के निधन के बाद सीकर रियासत के फतेहपुर व लक्ष्मणगढ़ के किलों पर अधिकार कर लिया था | चूँकि उस वक्त सीकर की गद्दी पर बैठे रावराजा रामप्रतापसिंह जी नाबालिग था, अत: परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए मुकंदजी आदि ने राज्य का काफी हिस्सा दबा लिया| सीकर की राजमाता द्वारा बीच बचाव करने पर मुकंदजी व उनके भाइयों को काफी गांव दिए गये और उक्त किले छुड़वाए गये| लेकिन जब राजा बालिग़ हुए और प्रशासन हाथ में लिया तो उन्होंने मुकंदजी आदि को बेदखल करने के लिए सिंगरावट सेना भेजी | यह घटना वि.सं. 1903 सन 1846 की है |

चूँकि उस वक्त प्रसिद्ध क्रांतिवीर डूंगरसिंहजी शेखावत और जवाहरसिंहजी, जिन्हें राजस्थानी साहित्य में डूंगजी जवाहरजी के नाम से जाना जाता है, मुकंदजी के पक्ष में थे और ये सभी साथी सिंगरावट के इस गढ़ में मौजूद थे | अत: पॉलिटिकल एजेंट लुडलो भी सीकर की सेना के साथ मौजूद था | सीकर व अंग्रेजी सेना ने सिंगरावट गढ़ पर आक्रमण कर दिया, कहा जाता है कि यह युद्ध अट्ठारह दिन चला | स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार सीकर रियासत की भवानी तोप अपने निर्माण के बाद इस गढ़ पर पहली बार गरजी थी | अट्ठारह दिन तोपों की मार सहने के बाद मुकंदजी अपने साथियों डूंगजी जवाहरजी आदि के साथ गढ़ से निकल गये और यह गढ़ सीकर रियासत का अभिन्न अंग बन गया |

आजादी से पूर्व इस गढ़ में पुलिस थाना व तहसील आदि कार्यालय चलते थे| देश के पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंहजी भी सिंगरावट गढ़ में बने थाने के कई वर्ष थानेदार के पद पर तैनात रहे| इस तरह यह गढ़ स्व. भैरोंसिंहजी शेखावत की थानेदारी का भी साक्षी है | आजादी के बाद यह गढ़ सीकर के राजा कल्याणसिंहजी की सम्पत्ति था जिसे इसके वर्तमान मालिकों ने खरीद लिया और आज उनका परिवार इस गढ़ में निवास करता है |

चूँकि इस गढ़ के निर्माण के कुछ वर्ष बाद ही इसे आक्रमण का सामना करना पड़ा और इसके निर्माता को यहाँ से निष्कासित होना पड़ा, अत: इसका विकास यहीं रुक गया और यह भव्यता को प्राप्त नहीं कर सका | फिर भी सामरिक दृष्टि से मजबूत दीवारों, बुर्जों वाला यह गढ़ दर्शनीय है | गढ़ के चारों और बनी बुर्जों में दुश्मन पर बंदूक से आक्रमण करने के लिए हर दिशा में ये सुराख़ बने है जिनमें लम्बी नाल वाली बंदूकों से गोलीबारी की जाती थी | अन्य गढ़ों की तरह इसमें भी जनानी ड्योढ़ी अलग से बनी है जहाँ यहाँ रहने वाले शासकों की महिलाएं निवास करती थी | गढ़ के निर्माण में चुने व पत्थर का प्रयोग किया गया है, बाहरी दीवार कई फुट चौड़ी है | छत बनाने ढोला तकनीक का उपयोग किया गया, यानी छत पर पत्थर की पट्टियाँ नहीं लगी है | ढोला तकनीक में छत भरने के लिए लकड़ी का अड्डा बनाया जाता है जैसे आज लंटर डालने के सटरिंग की जाती है और उसी लकड़ी की सटरिंग पर ईंट व चुने आदि के मिश्रण से लंटर डाला जाता था, जो आज के सीमेंट सरियों के लंटर से कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं | इस गढ़ के भी सभी कमरों, बरामदों आदि की छत बनाने में ढोला ढाला गया है |

वर्तमान में यह मालिक कैप्टन प्रेमसिंहजी शेखावत व उनके भाइयों के स्वामित्व में है उनके परिवार इस गढ़ में निवास करते हैं | सिंगरावट सीकर जिले के लोसल कस्बे के पास सीकर डीडवाना सड़क मार्ग पर स्थित है, जहाँ अपने साधन के अलावा राजस्थान पथ परिवहन की बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है |

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