राव शेखाजी व गौड़ों के मध्य घाटवा युद्ध : कारण और रणनीति

Gyan Darpan
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झूंथर सोलहवीं शताब्दी में गौड़ राजपूतों का एक शक्तिशाली केंद्र था | उस वक्त कोलराज गौड़ वहां का शासक था | जो स्वभाव से घमंडी, उदण्ड अव अभद्र प्रवृति का व्यक्ति था | वह अपनी स्मृति चिरस्थाई करने के लिए एक कोलोलाव नाम से एक तालाब बनवा रहा था | उसने नियम बना रखा था कि उधर से जो भी राहगीर गुजरेगा उसे एक टोकरी मिटटी खोदकर निकालनी होगी | जो राहगीर इस नियम का पालन नहीं करते, उनसे उसके सैनिक बलपूर्वक पालन करवाते थे|

एक दिन एक कच्छवाह राजपूत अपनी धर्म पत्नी के साथ उधर से गुजरा | गौड़ सैनिकों ने उसे रोका और नियम बताया | उस राजपूत ने नियमानुसार श्रमदान कर दिया | उसकी पत्नी बहली में बैठी रही | बहली दो घोड़ों द्वारा खेंची जाने वाली गाड़ी होती थी | गौड़ सैनिकों ने महिला से भी श्रमदान कराने का जोर डाला| उक्त राजपूत ने अपनी धर्मपत्नी के बदले खुद ज्यादा श्रमदान करने कहा पर सैनिक महिला से ही श्रमदान कराने पर अड़े रहे व अपने सरदार के हुक्म से महिला को जबरन बहली से उतारने लगे | इसी विवाद में महिला के पति व सैनिकों के मध्य झगड़ा हुआ, जिसमें महिला का पति मारा गया | महिला ने रास्ते में ही अपने का दाह संस्कार किया और उक्त तालाब से मिटटी निकालकर अपने पल्लू से बाँध कर शेखाजी के दरबार में उपस्थित हुई | शेखाजी को पूरी घटना बताने बाद उनसे अपने अपमान का बदला लेने के लिए निवेदन किया |

राव शेखाजी स्वयं अपने कुछ सैनिकों के साथ झूंथर गए और कोलराज का सिर काट लाये | कटे सिर को उन्होंने अपने गढ़ के दरवाजे पर लटका दिया ताकि लोगों में सन्देश जाए कि महिला का अपमान करने वालों के साथ शेखाजी यह व्यवहार करते हैं | शेखाजी की यह कार्यवाही गौड़ों को उकसाने के लिए काफी थी | गौड़ शेखाजी से भी ज्यादा शक्तिशाली थे | इस बात को लेकर शेखाजी व गौड़ों के मध्य ग्यारह वर्ष तक संघर्ष चला | दस युद्ध हो चुके थे, पर गौड़ शेखाजी की हत्या कर बदला लेना चाहते थे | मारोठ के शासक राव रिडमल जी गौड़ों के मुखिया थे | आखिर गौड़ों ने अपने मुखिया के नेतृत्त्व में एकत्र होकर घाटवा नामक स्थान पर राव शेखाजी को युद्ध का निमंत्रण भेजा-

गौड़ बुलावै घाटवै, चढ़ आवो शेखा |

लश्कर थारा मारणा, देखण रा अभिलेखा ||

गौड़ सरदार राव रिडमल जी रण में कौशल और अनुभवी व्यक्ति थे | उन्होंने राव शेखाजी व उनकी सेना का सर्वनाश करने के उद्देश्य से “कोटबद्ध व्यूह रचना” रची | इस रचना में शत्रु सेना को चारो तरफ से घेरकर युद्ध में समूल नष्ट कर दिया जाता है | “अदम्य योद्धा महाराव शेखाजी” नामक पुस्तक में कर्नल नाथूसिंह जी ने इस युद्ध व इसमें दोनों पक्षों द्वारा रची जाने वाली युद्ध रचनाओं व घटनाओं पर विस्तार से लिखा है | हमने भी यह जानकारी साभार उसी पुस्तक से ली है | कर्नल नाथूसिंह जी के अनुसार इस व्यू रचना के लिए काफी संख्या में सैनिकों की आवश्यकता होती | इस युद्ध के लिए बाईस हजार गौड़ योद्धा एकत्र हो चुके थे अंत: इस रचना के लिए संख्या पर्याप्त थी | गौड़ सरदार ने घाटवा गांव में एक सैन्य टुकड़ी रिजर्व रखी और बाकी सेना लेकर कोटबद्ध व्यूह रचना की | उन्होंने मुख्य  युद्ध स्थल तीन किलोमीटर पहले तीन चरणों में अपनी सेना को तैनात किया ताकि शेखाजी की सेना को फंसाया जा सके | प्रथम चरण में खुंटिया तालाब के पास सौ ढेढ़ सौ गौड़ योद्धाओं ने शेखाजी की सेना का थाह लिया और तीव्रता से वापस लौटते हुए द्वितीय चरण में शामिल हो गए | जहाँ शेखाजी पर तीरों से प्रहार कर प्रतीकात्मक आक्रमण करना था | ताकि शेखाजी उन सैनिकों का पीछा करते हुए मुख्य युद्ध स्थल तक आ जाए जहाँ उन्हें घेर कर समूल समाप्त किया जा सके| लेकिन शेखाजी ऐसी विकट परिस्थितियों का सामना करने में निपुण थे | शेखाजी ने कोटबद्ध व्यूह रचना को भेदने के लिए मकर व्यूह रचना युद्ध प्रणाली अपनाई | मकर व्यूह रचना में मुख्य तत्व अपनी वास्तविक सैन्य शक्ति को छिपा कर रखते हुए निर्धारित एवं पूर्व नियोजित समय पर सम्पूर्ण शक्ति से अचानक तड़ित प्रहार करना ही विजय श्री प्रदान कराता है |

राव शेखाजी ने अपनी व्यूह रचना पर रात्री में ही अपने सभी सेना नायकों से विचार विमर्श किया और उन्हें इस प्रणाली के रहस्यों, आक्रमण करने के क्रम तथा मुख्य आक्रमण में दरी करने के कारणों से भेद से अवगत करा दिया था | चूँकि गौड़ सेना शेखाजी की सेना से तीन गुना बड़ी थी अंत: यह युद्ध चुनौती पूर्ण था जिसे किसी खास रणनीति से ही जीता जा सकता था |

शेखाजी ने अपने दो पुत्रों दुर्गाजी व रत्नाजी के नेतृत्त्व में 240 – 240 घुड़सवारों के दो दल बनाये जिन्हें अग्र चलना था | उसके पीछे 120 घुड़सवार योद्धाओं के साथ शेखाजी खुद चले | शेखाजी के दल के बाएं, दायें 120-120 पठानों के दल शेखाजी के अंगरक्षक के रूप में थे | उनके पीछे गाड़ियों में ध्वज, वाद्य यंत्र व औषधालय का वाहन था | इस छोटी सी संख्या को शेखाजी ने इस फैलाव कर प्रदर्शित किया ताकि शत्रु को बहुत बड़ी सेना नजर आये | शेखाजी ने लगभग 2400-2400 सैनिकों के दो दल और बनाये | बायें भाग वाले दल का नेतृत्व उनके पुत्र आभाजी, अचलाजी व त्रिलोक जी कर रहे थे| दाहिने वाले दल का नेतृत्व उनके अन्य पुत्र कुम्भाजी, भारमलजी, रिडमलजी, भरतजी व प्रताप जी कर रहे थे| ये दोनों दल शेखाजी के मुख्य दल से दो किलोमीटर दूरी रखते हुए जंगल में छिपाव हासिल करते हुए चल रहे थे| दाहिने दल के साथ 900 पठान घुड़सवार थे| शेखाजी ने एक दल अपने 19 वर्षीय पुत्र पूर्णजी के नेतृत्व में लगभग 300 घुड़सवारों का दल ब्रह्ममुहूर्त में ही रवाना कर दिया था, जिसकी जिम्मेदारी थी लगभग 15 किलोमीटर का चक्कर लगाकर घाटवा गांव में आरक्षित गौड़ सेना पर आक्रमण कर घाटवा गांव को जलाना|

राव शेखाजी ने सुबह अपने शिविर से निकल कर युद्ध मैदान में प्रवेश किया, उन्हें पता था कि हर गौड़ सैनिक के मन में उनके प्रति शत्रु भाव है और हर गौड़ योद्धा का लक्ष्य था राव शेखाजी की हत्या | अंत: शेखाजी ने भी सभी गौड़ योद्धाओं का अपनी ओर ध्यान केन्द्रित करने की योजना बना रखी थी, हालाँकि ये आत्मघाती था, पर राव शेखाजी जैसे अद्वितीय योद्धा के लिए यह मुस्किल भी ना था |

शेखाजी को देखते ही गौड़ योद्धाओं ने प्रचंड वेग से उन पर आक्रमण किया | कोलराज गौड़ के पुत्र मूलराज ने क्रुद्ध होकर इतने वेग से आक्रमण किया कि दुर्गाजी व रत्नाजी भी उसे रोक नहीं सके और सीधा शेखाजी तक पहुँच गया| आवेश में मूलराज अपने मुखिया के दिए निर्देश भी भूल गया और कोटबद्ध व्यूह रचना तोड़कर शेखाजी से भीड़ गया और उनसे युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ | इसी वक्त शेखाजी के पुत्र दुर्गाजी भी युद्ध में रणखेत रहे | शेखाजी के अन्य दल भी युद्ध में कूद पड़े और घमासान युद्ध हुआ | मूलराज के वीरगति प्राप्त करते ही गौड़ सेना का मनोबल टूट गया और वे बिखरने लगे | गौड़ मुखिया राव रिडमल ने भी शेखाजी से प्रत्यक्ष युद्ध किया, अश्व पर आरुढ़ होकर उन्होंने शेखाजी पर तीरों की वर्षा की | शेखाजी ने गौड़ सरदार के  अंगरक्षकों का घेरा भेद कर युद्ध के लिए ललकारा और उनके अश्व को मार गिराया और उन्हें भी गंभीर रूप से घायल कर दिया | घायल सरदार को गौड़ योद्धाओं ने जैसे तैसे कर बचाया और सुरक्षित किया | उधर शेखाजी के पुत्र पूर्णजी ने घाटवा में आरक्षित गौड़ सेना पर आक्रमण करते हुए घाटवा गांव में आग लगा दी| जिसकी लपटें देखकर गौड़ सेना का रहा सहा साहस भी जाता रहा और गौड़ मैदान छोड़ पहाड़ों में भाग खड़े हुए |

युद्ध में शेखाजी के तीरों से कुछ घाव लगे | युद्ध जीतने के बाद राव शेखाजी रलावता गांव में अपने सैन्य शिविर में लौट आये. उसी वक्त उनके छोटे पुत्र रायमल जी भी और सेना एकत्र कर सहायता के लिए पहुंचे | चूँकि दिनभर चले युद्ध में शेखाजी के शरीर पर 16 घाव लगे थे, तीन तीरों ने उनके पेट में गहरे घाव कर दिए थे | अंत: शेखाजी को आभास हो गया कि उनका अंतिम समय निकट है सो उन्होंने अपने सरदारों को एकत्र कर अपने सबसे छोटे पुत्र रायमल जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और बैसाख शुक्ला तृतीया वि.सं. 1545 यानी 15 अप्रैल 1489 लगभग शाम 7.30 बजे नश्वर शरीर त्याग दिया | वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहाँ उनकी स्मारक रूपी छतरी बनाई गई | स्मारक के प्रांगण में ही उनकी घोड़े पर विशाल प्रतिमा बनाई गई है जिसका अनावरण उन्हीं की कुलवधू तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने किया था |

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