धोद : राजस्थान के शेखावाटी आँचल में सीकर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर धोद कस्बे में स्थित है यह किला | आज धोद पंचायत समिति व विधानसभा क्षेत्र है लेकिन यदि इसके अतीत में हम झांके तो धोद का यह किला सीकर रियासत का एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना था और सीकर रियासत के दो राजाओं के कार्यकाल में रियासत की राजनीति का यह किला प्रमुख केंद्र था| आज वीरान पड़ा यह किला अपने उद्दार की राह देख रहा है, इस किले के चारों और इसके स्वामित्व में काफी भूमि पड़ी है इतनी कि जिस पर एक कॉलोनी बसाई जा सकती है और किले को हैरिटेज होटल में तब्दील कर धन कमाया जा सकता है| सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह किला बिकाऊ भी है अंत: होटल व्यवसाय से जुड़े लोग इसे खरीदकर अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं |
किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सामने एक बड़ा हाल नजर आता है हाल के बाहर चद्दर लगाकर बरामद बनाया गया है जिसे देखकर लगता है कि यह आगुन्तकों के स्वागत के लिए बना है| इस हाल के ऊपर एक और हाल बना है जिसे शीश महल कहा जाता है, आज इसमें शीशे का काम तो कहीं नजर नहीं आता पर अन्दर से देखने पर सहज अंदाजा हो जाता है कि इस हाल में कभी महफ़िलें सजती और नर्तकियां नृत्य करती थी| मुख्य दरवाजे के पास से ही अन्दर की और एक और रास्ता है उसमें जाते ही घोड़ों की घुड़साल नजर आती है घुड़साल के सामने एक और दरवाजा नजर आता है जिसे देखकर लगता है कि कभी यह गढ़ यही तक सिमित था, उसके बाहर के निर्माण बाद में करवाये गए हैं|
इस दरवाजे के अन्दर जाते ही एक बड़ा कक्ष नजर आता है जहाँ कभी इस किले का शासक दरबार लगाता था| प्रांगन के एक कोने में एक छोटा द्वार नजर आता है जिसके आगे जनाना ड्योढ़ी है जिसमें किले के शासक की रानियाँ और महिलाऐं रहती थी, उनके अलग अलग कक्ष बने है| रखरखाव व देखरेख के अभाव में किले में कई जगह ऐसे स्थान भी नजर आते हैं जो देखने पर लगता है कि असामाजिक तत्वों ने गड़ा हुआ धन निकालने के लालच में यहाँ खुदाई की है|
कभी इस किले पर मुकन्द जी का शासन था | मुकन्द जी सीकर के राव राजा लक्ष्मण सिंह के अनौरस पुत्र थे| उन्हें सीकर के इतिहास नामक पुस्तक में पंडित झाबरमल शर्मा ने खवासवाल पुत्र लिखा है | पंडित झाबरमल शर्मा ने अपनी पुस्तक सीकर के इतिहास में लिखा है कि राव राजाजी ने सात रानियाँ ब्याह कर भी आठ दासियों को अपनी रक्षिता यानी पासवान बनाया | आपको बता दें राजस्थान में राजपूत राजा या ठाकुर जब किसी विजातीय महिला या दासी को पत्नी बनाते थे तब उसे पासवान व पड़दायत आदि पदवी दी जाती थी ये एक तरह से राजा की उपपत्नियाँ होती थी| राव राजा लक्ष्मण सिंह जी की विजातीय पत्नी से उत्पन्न संतान को पंडित झाबरमल शर्मा ने सीकर के इतिहास में व ठाकुर रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी ने अपनी पुस्तक शेखावाटी प्रदेश का इतिहास में खवास पुत्र लिखा है|
रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी ने लिखा है कि – किशोरी नामक पासवान से हुकम जी व मुकन्द जी दो पुत्र थे| धोद के इस किले पर मुकंद जी का शासन था| हालाँकि उन्हें धोद की जागीर कब दी गई, यह किला खुद मुकंद जी ने बनवाया या पहले से यहाँ छोटा मोटा किला मौजूद था, इसके बारे में हमारे पास उपलब्ध इतिहास की किताबों में जानकारी नहीं है | इतिहासकार व पुरातत्वविद गणेश बेरवाल जी ने हमें बताया कि किले के पास ही बनी छतरियों में एक छतरी मुकंद जी की है जहाँ उनका एक शिलालेख भी लगा है| चूँकि हम छतरियों में जा नहीं पाए थे अंत: शिलालेख इस वीडियो में शामिल नहीं कर सके|
बेशक इस किले को लेकर इतिहास मौन है पर इतिहास में इस किले के स्वामी रहे खवास मुकंद जी सीकर के दो राजाओं के प्रधानमंत्री रहे और सीकर की राजनीती व प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई| लेकिन इन्हीं मुकंद जी को सीकर के रावराजा रामप्रताप सिंह के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा था| दरअसल रावराजा लक्ष्मण सिंह ने अपने तीन खवास पुत्रों को फतहपुर, लक्ष्मणगढ़ और रामगढ के किलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी थी और वो वहां तैनात थे| रावराजा लक्ष्मण सिंह जी के निधन समय राम प्रतापसिंह जी की आयु महज पांच वर्ष थी| अंत: मौके का फायदा उठाते हुए इन खवासपुत्रों ने इन तीनों किलों को यह कहते हुए कब्ज़ा लिया कि यह किले उन्हें उनके पिता ने अधिकार में दिए है| आखिर मांजी राठौड़ जी ने किसी तरह इन खवास पुत्रों को सिंगारावट व नेछवा के परगने सहित 50 गांव देकर उक्त तीनों किले छुड़वाये | बाद में राव राजा रामप्रताप सिंह जी जब बालिग हुए और उन्होंने राजकार्य संभाला तब उन्होंने सिंगारावट किले पर सेना भेजकर खवास पुत्र मुकंद जी आदि पर सैन्य कार्यवाही की | सिंगारावट किले पर सीकर राजा के पक्ष में अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट था तो खवासवालों के पक्ष में शेखावाटी के प्रसिद्ध क्रान्तिवीर पटोदा के डूंगजी जवाहर जी यानि ठाकुर डूंगर सिंह जवाहर सिंह और लोठू जाट आदि अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी थे| सिंगारावट किले पर कार्यवाही के बाद सीकर की सेना ने बठोठ व पटोदा पर भी सैन्य कार्यवाही की थी| इस कड़े संघर्ष के बाद इन किलों पर सीकर का अधिपत्य हो गया | रघुनाथ सिंह काली पहाड़ी की पुस्तक शेखावत शेखावाटी प्रदेश का राजनैतिक इतिहास के अनुसार अलवर के राजा विनय सिंह की सलाह पर फिर खवासवालों को पांच हजार वार्षिक आय की जागीर दी गई| शायद यह जागीर धोद ही थी क्योंकि उसके बाद मुकंद जी धोद के इसी किले में रहे|
रामप्रताप सिंह के निधन बाद सीकर की गद्दी पर भैरूं सिंह बैठे और मुकंद जी का फिर भाग्य उदय हुआ | राव राजा भैरूं सिंह ने मुकंद जी को अपना मुसाहिब यानी प्रधान बनाया| भैरूं सिंह जी के बाद माधोसिंह जी सीकर की गद्दी पर बैठे| माधोसिंह जी भी नाबालिग थे और इस स्थिति में विद्रोहियों ने कई विद्रोह खड़े किये पर प्रधान मुकंद जी ने दबंगता के साथ उन विद्रोहों का दमन किया | 1868 में अकाल के समय भी मुकंद जी ने दीन दुखियों की सहातार्थ अच्छा काम किया | कुछ वर्ष बाद मुकंद जी जहाँ अपनी जमींदारी बढाने में लगे वहीं अपना वेतन बढाकर एक हजार रूपये मासिक करने की मांग करने लगे तब राजा माधोसिंह जी ने उन्हें प्रधान पद से हटाकर इलाहिबक्स को मुख्य अधिकारी बना दिया| इस तरह इस किले के स्वामी खवास मुकंद जी ने वर्षों सीकर रियासत की राजनीति व प्रशासनिक कार्यों में अपनी भूमिका निभाई|