तोप के गोले भी नहीं तोड़ पाए थे लकड़ी के इन किंवाड़ों को

Gyan Darpan
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किसी भी घर, दफ्तर या ईमारत की सुरक्षा के लिए दरवाजों का सबसे बड़ा महत्त्व है | प्राचीन काल से ही आम व्यक्ति से लेकर राजा-महाराजा तक सुरक्षा के लिए अपने मकानों, महलों, किलों के दरवाजों की मजबूती का विशेष ध्यान रखते थे | आप किसी भी किले के दरवाजों की मजबूती देखकर उनकी महत्ता का अनुमान लगा सकते हैं| आपने देखा होगा किलों के दरवाजों पर बड़ी बड़ी नुकीली कीलें लगी होती है, ये कीलें हाथियों से दरवाजों के किंवाडो को बचाने के लिए लगाईं जाती थी | दरअसल शत्रु सेना आक्रमण के समय किले में घुसने के लिए हाथियों से टक्कर दिलवाकर दरवाजों के किंवाड़ तोड़ा करती थी अत: नुकीली कीलें हाथियों से दरवाजों की सुरक्षा करती थी |

कई किलों में सुरक्षा के लिए दरवाजे लकड़ी के बजाय धातु से बनाये जाते थे | लेकिन हम आज आपको एक साधारण से लकड़ी के बने दरवाजे की कहानी बताने जा रहे है जिस पर जयपुर की सेना ने तोपों से गोले दागे, पर साधारण से दिखने वाले लकड़ी के दरवाजे टूटे नहीं और आज भी उस दरवाजे के वही किंवाड़ जिन्होंने तोपों के गोलों की मार सही थी, किले की सुरक्षा कर रहे हैं |

जी हाँ ! हम बात कर रहे हैं दांता के गढ़ में लगे साधारण से दिखने वाले लकड़ी के दरवाजों की, जिन पर जयपुर की सेना ने गोले बरसाए थे, कई गोले दरवाजे को भेद कर अन्दर चले गए पर लकड़ी के ये साधारण से दिखने वाले किंवाड़ नहीं टूटे| दांता गढ़ पर जयपुर हमले व दरवाजे की लकड़ी की मजबूती के बारे में पोस्ट में ऊपर दिए वीडियो में जानिए दांता के ठाकुर करणसिंह जी की जुबानी |

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