1952 के पहले चुनावों में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने राजाओं की लोकप्रियता से कांग्रेसी उम्मीदवारों की चुनावी हार के डर से राजाओं को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखने के लिए स्पष्ट चेतावनी वाला व्यक्तव्य दिया कि – यदि राजा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए तो उन्हें अपने प्रिवीपर्स (हाथखर्च) और विशेषाधिकारों से हाथ धोना पड़ेगा|
नेहरु के उक्त धमकी भरे वक्तव्य के जबाब में जोधपुर महाराजा हनुवन्तसिंह जी के 7 दिसंबर,1951 के अंग्रेजी दैनिक “हिंदुस्तान-टाइम्स” में छपे जबाब की कुछ पंक्तियाँ इस तरह थी- "लेकिन सत्य वास्तव में यही है कि क्या पुराने युग में और क्या वर्तमान जनतंत्र के युग में, सत्ता और शक्ति का आधार जनसाधारण ही रहा है|"
महाराजा के इस वक्तव्य में साफ़ है कि शासन व्यवस्था कैसी भी रही हो राज उसी ने किया है जिसे जनता ने चाहा है| आज लोकतंत्र में जनता जिसे चाहती है शासन सौंप देती है| राजतन्त्र में चूँकि चुनावी प्रक्रिया नहीं थी, फिर भी सत्ता में वही रहा बना रहता था, जो प्रजा पालक होता था, प्रजा का भला चाहने वाला होता था, जो प्रजा प्रिय होता था, जिसके पीछे प्रजा की ताकत होती थी| बेशक उस काल में चुनावी प्रक्रिया नहीं थी फिर भी प्रजा का शोषण करने वाला राजा कभी भी लंबे समय तक शासन नहीं कर पाया| ऐसे इतिहास में चंद्रगुप्त-चाणक्य द्वारा आततायी नंदवंश का राज्य उखाड़ फैंकने के अलावा कई उदाहरण भरे पड़े है|
नेहरु के उक्त धमकी भरे वक्तव्य के जबाब में जोधपुर महाराजा हनुवन्तसिंह जी के 7 दिसंबर,1951 के अंग्रेजी दैनिक “हिंदुस्तान-टाइम्स” में छपे जबाब की कुछ पंक्तियाँ इस तरह थी- "लेकिन सत्य वास्तव में यही है कि क्या पुराने युग में और क्या वर्तमान जनतंत्र के युग में, सत्ता और शक्ति का आधार जनसाधारण ही रहा है|"
महाराजा के इस वक्तव्य में साफ़ है कि शासन व्यवस्था कैसी भी रही हो राज उसी ने किया है जिसे जनता ने चाहा है| आज लोकतंत्र में जनता जिसे चाहती है शासन सौंप देती है| राजतन्त्र में चूँकि चुनावी प्रक्रिया नहीं थी, फिर भी सत्ता में वही रहा बना रहता था, जो प्रजा पालक होता था, प्रजा का भला चाहने वाला होता था, जो प्रजा प्रिय होता था, जिसके पीछे प्रजा की ताकत होती थी| बेशक उस काल में चुनावी प्रक्रिया नहीं थी फिर भी प्रजा का शोषण करने वाला राजा कभी भी लंबे समय तक शासन नहीं कर पाया| ऐसे इतिहास में चंद्रगुप्त-चाणक्य द्वारा आततायी नंदवंश का राज्य उखाड़ फैंकने के अलावा कई उदाहरण भरे पड़े है|
ऐसा ही राजस्थान के इतिहास में एक मीणा राजा का उदाहरण दर्ज है| नैण (नैण का राजा भारमल ने लोहवन नामकरण कर दिया) के मीणा राजा ने भूसे (चारे) का हिस्सा लेना शुरू कर दिया था| उसका भूसे में हिस्सा लेना साफ़ करता है कि वह राजा प्रजा पोषक नहीं शोषक था और उसकी प्रजा उससे असंतुष्ट थी| प्रजा के असंतोष का फायदा उठाते हुए आमेर के राजा भारमल ने उक्त शक्तिशाली मीणा शासक के राज्य का अंत कर दिया| नैण पर राजा भारमल द्वारा कब्ज़ा करने का कारण भले ही अपने राज्य का विस्तार करना हो, पर उस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं में उसके राज्य जाने का कारण भूसे में हिस्सा दर्ज किया|
कर्नल टॉड को नैण के मीणा राजा की शक्ति व भूसे में हिस्सा लेने का बखान करने वाला एक ऐतिहासिक लोकपद मिला जो इस प्रकार है-
बावन कोट छप्पन दरवाजा, मीणा मर्द नैण का राजा|
वडो राज नैण को भागो, जब भुस ही में वामतो मागो|
अर्थात् बावन किलों और छप्पन दरवाजों का मालिक नैण का मीणा राजा था जब उसने भूसे का भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया तब उसका राज समाप्त हो गया|
कर्नल टॉड ने ढूंढार क्षेत्र में मीणों उपस्थिति पर लिखा है- "ढूंढार में कछवाहों के उदय के साथ मीणों का पराभव भी एक ऐसा ही इतिहास है| ढूंढार की प्राचीन और शुद्ध मीणा जाति का नाम पचवाड़ा था और पांच जातियों में विभाजित था| उनका मूल स्थान कालीकोह नामक पर्वत श्रृंखला के ऊपर था जो आमेर से यमुना पास तक विस्तारित था| यहाँ उन्होंने अम्बा माता के कारण पवित्र आमेर की स्थापना की| मीणा इसी देवी को घाट की देवी कहते थे| इसी श्रृंखला के नीचे खोगांव, मुच्छ और कई दूसरे प्रान्त बसे हुए थे जो मीणों के मुख्य निवास स्थान थे| बाबर और हुमायूं के समकालीन राजा भारमल कछवाहा के समय तक मीणे शक्तिशाली थे और राजपूत उनसे स्पर्धा करते थे| मीणों की स्वतंत्र जाति ही नैण नामक नगर में बसी हुई थी, जिसे भारमल ने नष्ट कर दिया|
कर्नल टॉड को नैण के मीणा राजा की शक्ति व भूसे में हिस्सा लेने का बखान करने वाला एक ऐतिहासिक लोकपद मिला जो इस प्रकार है-
वडो राज नैण को भागो, जब भुस ही में वामतो मागो|
कर्नल टॉड ने ढूंढार क्षेत्र में मीणों उपस्थिति पर लिखा है- "ढूंढार में कछवाहों के उदय के साथ मीणों का पराभव भी एक ऐसा ही इतिहास है| ढूंढार की प्राचीन और शुद्ध मीणा जाति का नाम पचवाड़ा था और पांच जातियों में विभाजित था| उनका मूल स्थान कालीकोह नामक पर्वत श्रृंखला के ऊपर था जो आमेर से यमुना पास तक विस्तारित था| यहाँ उन्होंने अम्बा माता के कारण पवित्र आमेर की स्थापना की| मीणा इसी देवी को घाट की देवी कहते थे| इसी श्रृंखला के नीचे खोगांव, मुच्छ और कई दूसरे प्रान्त बसे हुए थे जो मीणों के मुख्य निवास स्थान थे| बाबर और हुमायूं के समकालीन राजा भारमल कछवाहा के समय तक मीणे शक्तिशाली थे और राजपूत उनसे स्पर्धा करते थे| मीणों की स्वतंत्र जाति ही नैण नामक नगर में बसी हुई थी, जिसे भारमल ने नष्ट कर दिया|
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