नमस्ते दोस्तों, स्वागत है एक ऐसी यात्रा में, जो आपको ले जाएगी भारत के सबसे रहस्यमयी और पवित्र जगह पर, एक ऐसे तीर्थस्थल पर जो तंत्र, मंत्र और प्राचीन रहस्यों का खजाना है।
तो आइये चलते हैं इस रोमांचक सैर के लिए, जहां हम खोलेंगे इस शक्तिपीठ के इतिहास, कथाओं और अनसुने रहस्यों के पन्ने?
दोस्तों मैं हूँ रतन सिंह शेखावत और इस यात्रा में मेरे साथ है गुवाहाटी के प्रख्यात समाजसेवी और व्यवसायी नारायण सिंह जी नरुका लोसल. इनके साथ आज मैं आपको लिए चलता हूँ, उस रहस्यमय स्थान पर बिना देर किए, divine journey में डुबकी लगाने
इस रहस्यमय स्थान का नाम है —कामाख्या मंदिर!
गुवाहाटी की नीलाचल पहाड़ी पर बसा यह शक्तिपीठ माता सती का तीर्थ नहीं, बल्कि यह स्थान है शक्ति की अधिष्ठात्री और रहस्यों की देवी का । जहाँ आस्था और तंत्र का संगम होता है… जहाँ देवी स्वयं प्रकृति के रूप में पूजित हैं।”
"कल्पना कीजिए—एक ऐसा समय जब भगवान शिव का तांडव पूरे ब्रह्मांड को हिला रहा था। माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया। क्रोध और दुख में डूबे शिव उनके शरीर को लेकर नाचने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया। और ठीक यहीं, नीलाचल पहाड़ी पर, गिरा सती का योनि भाग। यही वो पल था, जब कामाख्या बना शक्ति का सर्वोच्च केंद्र!"
लेकिन रुकिए, एक और कहानी है! कामदेव, प्रेम के देवता, जिन्हें शिव ने भस्म कर दिया था, ने यहीं तपस्या की और अपनी शक्ति वापस पाई। इसीलिए इस जगह का नाम पड़ा कामाख्या—कामनाओं को सिद्ध करने वाली शक्ति! और सबसे हैरान करने वाली बात? इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं! बस एक चट्टान, जिसमें योनि-आकृति का गड्ढा है, जो रहस्यमयी तरीके से हमेशा पानी से नम रहता है। क्या यह चमत्कार नहीं?"
"अब चलते हैं इतिहास के उन पन्नों पर, जो कामाख्या को और भी रोमांचक बनाते हैं! कहा जाता है कि यह मंदिर 2000 साल से भी पुराना है। कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में इसका ज़िक्र है। लेकिन मध्यकाल में, जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तहस-नहस कर दिया, तब कामाख्या की कहानी लगभग खो सी गई थी।"
"लेकिन फिर आए कोच राजवंश के सुपरहीरो—नरनारायण और उनके भाई विश्व महावीर चिलाराय! 1565 में इन दोनों ने मिलकर मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार किया। चिलाराय, जिनका मूल नाम है शुक्लध्वज, शुक्लध्वज एक ऐसे योद्धा थे, जिनके नाम से दुश्मन कांपते थे। इन भाइयों ने न केवल मंदिर को नया जीवन दिया, बल्कि इसे तांत्रिक और वैष्णव परंपराओं का मज़बूत केंद्र बनाया।"
अब बात करते हैं कामाख्या की उस वास्तुकला की, जो इसे बनाती है अनोखा! मंदिर नगारा शैली में बना है—वो शैली जिसमें गुंबदनुमा शिखर और बारीक नक्काशी होती है। लेकिन असली जादू है इसका गर्भगृह, जो ज़मीन के नीचे है। यहाँ वो चट्टान है, जो हमेशा नम रहती है। वैज्ञानिक भी इस रहस्य को सुलझा नहीं पाए!
मंदिर परिसर में चार मुख्य मंदिर हैं—मुख्य कामाख्या मंदिर और दस महाविद्याओं को समर्पित छोटे मंदिर। काली, तारा, भुवनेश्वरी—ये सभी यहाँ विराजमान हैं। हर कोना अपनी कहानी कहता है, और हर नक्काशी एक रहस्य छिपाए है।"
कामाख्या सिर्फ़ एक मंदिर नहीं, तंत्र और मंत्र का पावरहाउस है! यहाँ वाममार्गी और दक्षिणमार्गी तांत्रिक अपनी साधना करते हैं। पशुबलि की प्रथा, जिसमें भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है, आज भी यहाँ जीवित है। यह सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन यह इस मंदिर की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा है।
और अब बात करते हैं अंबुबाची मेला की, जो इस मंदिर का दिल है! हर साल जून में, जब माना जाता है कि माता रजस्वला होती हैं, मंदिर चार दिन के लिए बंद हो जाता है। इस मेले में लाखों भक्त, साधु, और तांत्रिक यहाँ जुटते हैं। माहौल ऐसा होता है, मानो पूरी नीलाचल पहाड़ी शक्ति से थरथरा रही हो!
आज कामाख्या मंदिर सिर्फ़ तीर्थ नहीं, बल्कि एक ग्लोबल टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से बस 7 किलोमीटर दूर, यह मंदिर हवाई, रेल, और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। आसपास की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण इसे और भी खास बनाते हैं।
कहा जाता है कि यहाँ मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। लेकिन हाँ, यहाँ की तांत्रिक प्रथाएं और पशुबलि को लेकर कुछ विवाद भी हैं। फिर भी, यह मंदिर अपनी प्राचीन परंपराओं को गर्व से संजोए हुए है।
चलते-चलते कुछ मज़ेदार तथ्य:
कामाख्या में कोई मूर्ति नहीं, सिर्फ़ एक चट्टान है, जो हमेशा गीली रहती है।
यहाँ दस महाविद्याएं एक साथ विराजमान हैं—यह दुनिया में कहीं और नहीं!
अंबुबाची मेला तांत्रिकों और भक्तों का अनोखा संगम है।
तो दोस्तों, कामाख्या मंदिर वो जगह है जहां आस्था, रहस्य और इतिहास एक साथ नाचते हैं। अगर आप यहाँ गए हैं, तो कमेंट में अपने अनुभव ज़रूर बताएं। हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक करें, और बेल आइकन दबाएं, ताकि आप ऐसे ही रोमांचक सफर का हिस्सा बनें।

