Anjani Mata History : जादौन (यदुवंश) की कुलदेवी अंजनी माता

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जादौन (यदुवंश) की कुलदेवी अंजनी माता : राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि के पूर्वी भाग जिसे वर्तमान में करौली के नाम से जाना जाता है, में भगवान कृष्ण की वंश परम्परा के यदुवंशी क्षत्रिय वीरों का शासन रहा है। करौली के यदुवंशी शासक जादौन (जाधव) राजपूत राजवंश के नाम से प्रसिद्ध है। भरतपुर के जाट शासक भी अपने आप को करौली के जादौन राजवंश से निकला हुआ मानते है। जब यदुवंशी महाराजा अर्जुन देव ने 1348 ई. में करौली राज्य की स्थापना की, तभी उन्होंने करौली से उत्तरी दिशा में 3 कि.मी. की दूरी पर पांचना नदी के किनारे पहाड़ी पर, अंजनी माता का मंदिर बनवा कर अपनी कुलदेवी के रूप में पूजने लगे और अंजनी माता जादौन राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजित हुई। हालाँकि यदुवंशी क्षत्रिय अंजनी माता के साथ कैला देवी को भी कुलदेवी के रूप में मानते है। वस्तुतः कैला देवी को राम सेवक हनुमान की माता अंजनी का ही रूप माना जाता है। 

इसी क्षेत्र के तिमनगढ़ में यदुवंशी शासन का पतन होने के बाद कुंवरपाल अंधेर कोटला (रीवा के पास) चले गये थे। जिसका रीवा महाराज ने अच्छा आदर सत्कार किया। कुंवरपाल के उतराधिकारी रीवा क्षेत्र से अपने पैतृक राज्य तिमनगढ़ के उद्धार की कोशिश करते रहे। इसी कड़ी में अंधेर कोटला (रीवा क्षेत्र) में इसी यदुवंश में अर्जुनदेव ने अपने पुरखों का राज्य वापस लेने के लिए प्रयास किये और इस क्षेत्र के मंडरायल किले पर जो कभी उसके पुरखों के अधीन था, सन 1327 में आक्रमण कर मोहम्मद तुगलक के दुर्गरक्षक को युद्ध में परास्त कर जीत लिया एवं वहां से 5 किलोमीटर दूर नीदर गांव में एक गढ़ी का निर्माण कराया। सुरक्षित निवास व सैनिक छावनी के साथ ही अर्जुनदेव ने अपनी आराध्य देवी अंजनी माता की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करवा कर मंदिर बनवाया। इस तरह “अर्जुनदेव जिनके अथक प्रयासों से तिमनगढ़ में डूबा यदुवंशी सूर्य 1327 में पुनः इस क्षेत्र में चमका।” 1  अनंतर अर्जुनदेव ने नीदर गांव की गढ़ी में रहते हुए पंवार राजपूत एवं मीणों के सहयोग से अपने राज्य का विस्तार किया। उन्होंने नीदर गांव से 40 किलोमीटर की दूरी पर तिमनगढ़ किले के आस-पास के क्षेत्र में नियंत्रण रखने के लिए “वीरवास” नामक सैनिक छावनी की स्थापना (1345 ई.) में की। तत्पश्चात यहाँ पर 1348 ई. में करौली की स्थापना की गई। साथ ही अंजनी माता का मंदिर पहाड़ी पर बनवाया गया।”2 

“स्थानीय ख्यातों के अनुसार महाराजा अर्जुनदेव ने इस नगर की आधारशिला रखने से पूर्व सन 1345 में कुलदेवी के रूप में अंजनी माता के मंदिर का निर्माण कराया। जहाँ वर्तमान में भी नवम्बर के महीने में प्रतिवर्ष मेला जुड़ता है। उपरांत गोपालदासजी की प्रतिमा को कुलदेव के रूप में पूजा जाता रहा जिसे महाराजा गोपालदास अपनी दक्षिण विजय से प्राप्त कर लाये।3 

इस तरह यदुवंशी जादौन राजवंश की कुलदेवी के रूप में करौली में अंजनी माता के मंदिर की स्थापना हुई। देवी मंदिर स्थापना के साथ पहाड़ी के नीचे हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई, जहाँ आज भी श्रद्धालु भक्तगण अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु मंगलवार व शनिवार को आते है और हनुमान जी के आगे नतमस्तक होते है। देवउठनी एकादशी के दिन अंजनी माता मंदिर के पास मेला जुड़ता है और पांचना नदी में इस दिन स्नान करने पर असाध्य रोगों के दूर होने की लोकमान्यता के चलते भक्तगण नदी में स्नान कर देवी के दर्शन करते है। चैत्र व आसोज मास में नवरात्रा के दिन भी यहाँ श्रद्धालुओं द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, उपासना की जाती है। अंजनी माता का यह मंदिर आज भी करौली क्षेत्र के लोगों की आस्था स्थल है। जहाँ आस-पास के लोग अपने परिवार के विशेष मांगलिक कार्य करने से पुर्व माता अंजनी का आशीर्वाद लेने माता की दहलीज पर शीश नवाने आते है।


1. करौली राज्य का इतिहासय पृ. 90, दामोदर लाल गर्ग 

2. राजस्थान की कुल्देवियांय पृ. 50, डा. विक्रमसिंह भाटी

3. करौली राज्य का इतिहासय पृ. 89, दामोदर लाल गर्ग


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