Kela Mata | Kaila Mata | जादौन (यदुवंश) की कुलदेवी कैला माता

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 जादौन (यदुवंश) की कुलदेवी कैला माता  : सदियों से शक्ति के उपासक क्षत्रियों ने जहाँ जहाँ अपने राज्य स्थापित किये, शक्ति की प्रतीक देवी के विभिन्न नामों से मंदिर बनवाये और उसे अपनी कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित कर उपासना की। करौली के यदुवंशी जादौन क्षत्रियों ने भी करौली राज्य की स्थापना के समय अपनी कुलदेवी अंजनी माता का मंदिर बनवाया जो आजतक विद्यमान है और जन-आस्था के इस केंद्र पर लाखों लोग शीश नवाते है।

जादौन शासक अर्जुनदेव द्वारा करौली की स्थापना के समय अंजनी माता का मंदिर बनवाकर उसे कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया था। लेकिन यहाँ के बाद के शासकों ने अंजनी माता के साथ ही कैला देवी को भी अंजनी माता का रूप मानते हुए कुलदेवी व गोपालदास को कुलदेवता के रूप में स्वीकार किया। महाराजा गोपालदास ने श्री मदनमोहन प्रतिमा को जयपुर नरेश जगतसिंह से प्राप्त कर सन 1749 में अपनी राजधानी में प्रतिष्ठित कर उसे रियासत का सर्वेश्वर स्वीकारा। जिसे वर्तमान में श्रीजी के नाम पर सिद्धपीठ माना जा रहा है। महाराजा भंवरपाल ने खींची राजपूतों की कुलदेवी (कैला देवी) के प्रति अपनी अनन्य भक्ति समर्पित कर उसे स्वीकारा। इस प्रकार इष्टदेव के नाम पर यहाँ विभिन्न देवों की मान्यताएं पृथक-पृथक शासनकाल में स्वीकारी है।”1

करौली राज्य के दक्षिण-पश्चिम के बीच में 23 कि.मी. की दूरी पर चम्बल नदी के पास त्रिकूट पर्वत की मनोरम पहाड़ियों में सिद्दपीठ कैलादेवी जी का पावन धाम है। जिस स्थान पर माँ कैलादेवी जी का मंदिर बना है, वह स्थान खींची राजा मुकुन्ददास की रियासत के अधीन था। मुकुन्ददास ने बॉसीखेड़ा नामक स्थान पर चामुण्डा देवी की बीजक रूपी मूर्ति स्थापित करवाई थी और वो वहां अक्सर आराधना के लिये आते थे। एक बार खींची राजा मुकुन्ददास ने कैलादेवी जी की कीर्ति सुनी तो पत्नी सहित माता के दर्शनार्थ आये। माता के दर्शनार्थ पश्चात् उनके मन में माता के प्रति अगाध श्रृद्धा बढ़ी। राजा ने देवी का मंदिर बनवाने हेतु उसी दिन निर्माण शुरू करवा दिया। निर्माण पूर्ण होते ही कैलादेवी की प्रतिमा को विधि पूर्वक स्थापित करवाया।

कुछ समय बाद विक्रम संवत 1506 में यदुवंशी राजा चन्द्रसेन ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया तब उसी समय एक बार यदुवंशी महाराजा चन्द्रसेन के पुत्र गोपालदास दौलताबाद के युद्द में जाने से पूर्व कैला माता के दरबार में गये और प्रार्थना की कि अगर मेरी इस युद्ध में विजय हुई तो आपके दर्शन करने के लिये हम फिर आयेंगे। जब राजा गोपालदास दौलताबाद के युद्ध में फतह हासिल कर के लौटे तब माता जी के दरबार में सब परिवार सहित एकत्रित हुये।

तभी यदुवंशी महाराजा चन्द्रसेन ने कैला माता से प्रार्थना की कि हे कैला माँ आपकी कृपा से मेरे पुत्र गोपालदास को युद्ध में फतह हासिल हुई है। आज से सभी यदुवंशी राजपूत अंजनी माता के साथ साथ आपकी भी अपनी कुलदेवी (अधिष्ठात्री देवी के रूप में) पूजा किया करेंगे और आज से मैया का पूरा नाम श्री राजराजेश्वरी कैला महारानी जी होगा। तभी से करौली राजकुल का कोई भी राजा युद्ध में जाये या राजगद्दी पर बैठे अपनी कुलदेवी श्री कैलादेवी का आशीर्वाद लेने जरूर जाता है और तभी से राजराजेश्वरी कैलादेवी करौली राजकुल की कुलदेवी के रूप में पूजी जा रही है।

करौली के नजदीक कालीसिल नदी के किनारे निर्मित देवी के इस भव्य मंदिर के मुख्य कक्ष में कैला देवी व चामुण्डा माता की प्रतिमाएं स्थापित है। जिनमें कैला देवी की प्रतिमा का मुख कुछ टेढ़ा है। जिसके बारे में जनश्रुति है कि एक बार एक भक्त को बिना दर्शन किये ही मंदिर से लौटा दिया था, तब देवी ने अपने मूल स्वरूप से हटकर उस भक्त को जिस दिशा में वह गया था, निहारने लगी। अतः उस दिन से देवी का मुख कुछ टेढ़ा है।

इस मंदिर की स्थापना व यहाँ देवी के प्रकट होने के सम्बन्ध में एक और कहानी प्रचलित है। कालीसिल नदी के त्रिकुट पर्वत पर केदार गिरी नामक एक साधू रहता था। जिसने देवी को प्रसन्न कर उनके दर्शन करने हेतु बिहार के हिंगलाज पर्वत पर 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। जब देवी ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए तो तब साधू ने त्रिकुट पर्वत पर रहने वाले एक राक्षक का वध करने का अनुरोध किया। देवी ने साधू का अनुरोध स्वीकार करते हुए त्रिकुट पर्वत पर आकर राक्षक का वध कर दिया। कैला देवी मंदिर से आधा किलोमीटर पूर्व में नदी के किनारे एक चट्टान पर देवी के चरण चिन्ह आज तक बने हुए है। इस प्रकार ई. 1114 में केदार गिरी द्वारा देवी की एक मूर्ति यहाँ स्थापित की गई। बाद में खींची मुकंददास, यादव राजा गोपालसिंह, भंवरपालसिंह द्वारा इस मंदिर में अनेक भवनों का निर्माण करवाया गया।2 

अनूठी वास्तुकला के अनुपम उदाहरण के रूप में बनी छतरियों वाले संगमरमर से निर्मित इस मंदिर में भक्तगणों की भीड़ लगी रहती है। विशेष अवसरों पर इतनी भीड़ होती है कि यहाँ बनी धर्मशालाओं में पैर रखने की जगह तक उपलब्ध नहीं होती। आगरा संभाग में सभी जातियों के अलावा अग्रवाल वैश्य परिवार बड़ी संख्या में यहाँ नियमित दर्शनार्थ आते है। “सामान्यतया मूर्ति पूजा विरोधी होने के उपरांत भी फिरोजाबाद के मुस्लिम भक्त प्रतिवर्ष सैंकड़ों सहयोगियों को लेकर माँ के दर्शन करने आते है तथा छप्पन भोग से पूजा करते है, फूल बंगला से भवन की सजावट करते है और भंडारे का आयोजन करते है।”3 

इस तरह कैला देवी यदुवंशी जादौन राजपूत राजवंश के साथ क्षेत्र के सभी समुदायों की आस्था का केंद्र है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मांगलिक कार्य से पूर्व व विवाहोपरांत वर वधु व शिशु जन्म के बाद शिशु को लेकर माता कैला देवी के आशीर्वाद हेतु माता की दहलीज पर मत्था टेकने आते है।

1. करौली राज्य का इतिहासय पृ. 89, दामोदर लाल गर्ग

2. राजस्थान की कुलदेवियांय पृ. 51, लेखक, डा. विक्रमसिंह भाटी 

3. राजस्थान की कुलदेवियांय पृ. 52, लेखक, डा. विक्रमसिंह भाटी  


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