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मंगलसिंह उदयसिंहोत खूड़ |
ठा. उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके इकलौते पुत्र मंगलसिंह खूड़ केस्वामी बने । ठा. मंगलसिंह का पहला विवाह श्यामकंवर करणोत सोढा नटवाड़ा के समदर करण की बेटी इन्द्रकरण की पोती के साथ हुआ था ।
ठा. मंगलसिंह अपने समय के विशेष गुणों वाले सरदार थे । ठा. मंगलसिंह स्वतन्त्रताप्रेमी, समाज सुधारक, राष्ट्रभक्त, गौसेवक, शिक्षा-प्रेमी, गाँधीजी के खादी ग्रामोद्योग कार्यक्रम के समर्थक एवं उच्च विचारों के तपस्वी पुरुष थे । उनके जीवन में सादा जीवन उच्च विचार का दर्शन होता था । उन्होंने अपने अधिनस्थ ग्रामों में कई पाठशालायें खोली । रूपगढ़ में उन्होंने श्री रामप्रताप ग्राम सुधार आवासीय हाई स्कूल की स्थापना की, जिसमें अपने ठिकाने के ग्रामों के अतिरिक्त उदयपुरवाटी, सीकरवाटी, नागौर पट्टी और दाँता रामगढ़ परगने के छात्र भी विद्या अध्ययन करते थे ।
उन्होंने जयपुर रियासत की नौकरी छोड़कर ग्राम सुधार और क्षत्रिय जाति के संगठन एवं उत्थान के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने राजपूतों से खेती करने, पशुपालन करने, अच्छी नश्ल की गायें पालने व बच्चों को शिक्षा दिलाने की शिक्षा दी । राजस्थान स्वयं सैनिक समाज, राम राज्य सभा आदि संस्थाओं के वे प्रमुख संस्थापकों में थे । रूपगढ़ के हाई स्कूल को इन्होंने लोहर्गल में स्थानान्तरित कर दिया था अंत में इसी आवासीय हाई स्कूल के छात्रों को भवानी निकेतन हाई स्कूल जयपुर पश्चिम स्थानान्तरित कर यहाँ विद्यालय चालू कराया जो आज भी उनकी याद दिलाता है।
ठा. मंगलसिंह का देशभक्त जमनालाल बजाज, पं. हीरालाल शास्त्री, रावल नरेन्द्रसिंह जोबनेर, महाराव उम्मेदसिंह कोटा, महाराजा उम्मेदसिंह जोधपुर, योगि राज अरविन्द, स्वामी करपात्रीजी, सदाशिव माधवराव गोलवलकर, महाराजा रामसिंह सीतामऊ महाराजा राणा भवानीसिंह दाँता भवानगढ़, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आदि से अत्यन्त ही आत्मीय स्नेह का सम्बन्ध था ।
सन् 1938 में जयपुर राज्य के पुलिस इन्स्पेक्टर जनरल यंग ने जयपुर के सैनिक दस्तों के साथ आकर सीकर कस्बे को घेर लिया था । वह जयपुर महाराजा मानसिंह के आदेश से सीकर के राव राजा कल्याणसिंह को नजरबन्द ( कैदी) बनाकर ले जाना चाहा था । जयपुर की इस अनुचित कार्यवाही का सशस्त्र प्रतिरोध करने शेखावाटी के शेखावतों ने सीकर दुर्ग मं रण सज्जा से सजकर डेरे डाल दिये थे । कुछ राजपूत सरदार जयपुर से शीघ्र लड़ने की बात कह रहे थे उनका कहना था - "हमें तलवार का एक टका रोजाना के हिसाब से किराया देना होगा अतः युद्ध शीघ्र किया जाये ।"
इस नाजुक घड़ी में ठा. मंगलसिंह ने विवेक से काम लिया । सेठ जमनालाल बजाज के माध्यम से जयपुर से बातचीत के द्वारा समझौते का रास्ता निकाला जिससे भयंकर रक्त पात होने से बचाव हो गया ।
समझौता कर सेठ नै, रोकी रण की राह ।
सुभटां न सुख सुरग रो, लेवण दियो न लाह ॥
सन् 1942 में जयपुर ने उदयपुरवाटी के भोमियों के आबकारी अधिकार समाप्त करने हेतु जयपुर से घुड़सवार सेना का एक दस्ता उनके केन्द्र स्थान गुढा गौड़जी भेजा था । खूड़ के ठा. मंगलसिंह जो उस समय शेखावतों के प्रभावी और प्रमुख नेता के रूप में उभर रहे थे गुढा पहुँच कर अपने भाइयों का साथ देने को सनद्ध हो गये । असलीसर के वयोवृद्ध ठा. चन्द्रसिंह, गांगियासर के ठा. हरिसिंह, दीपपुरा के ठा. भोपालसिंह जैसे लड़ाकू प्रकृति के सरदार उस विद्रोह में शामिल हो गये । जयपुर राज्य की तरफ से भेजे गये अधिकारियों को भगा दिया गया तथा जयपुर के विरूद्ध विद्रोह खड़ा हो गया । जयपुर की तरफ से ओर घुड़सवार दस्ते भेजे गये । ऐसे समय में ठा. मंगलसिंह ने नवलगढ़ के रावल मदनसिंह एवं पंचपाना के अन्य सरदारों की मध्यस्थता से समझौता कराकर व्यर्थ के भयंकर संघर्ष को टाला था देश की स्वतन्त्रता के समय अंग्रेजों ने रियासतों को अधिकार दिया था कि वे चाहें तो भारत संघ में सम्मिलित हों, चाहें तो पाकिस्तान संघ में सम्मिलित हों ओर चाहें तो अपना अलग संघ बना सकते हैं ।
उस समय ठा. मंगलसिंह ने राजपूताना के अनेक राजाओं से मिलकर भारत संघ में सम्मिलित होने के लिये प्रेरित कर राष्ट्र प्रेम व देश भक्ति का अनूठा उदाहरण पेश किया था । रियासतों के भारत संघ में विलम के पश्चात भारत के नेताओं ने राजाओं के साथ द्वेष की भावना रखी तथा उन्हें अकारण ही बदनाम कर उनके अधिकारों को समाप्त कर दिया । वहीं से राजनीति का नैतिक पतन शुरू हुआ था जो आज चरम सीमा पर पहुँच गया है । आज का राजनेता भ्रष्टाचार का पर्याप्त बन गया है । ठा. मंगलसिंह अरविन्द के शिष्य बन गये थे । जागीर उन्मूलन के पश्चात् अपने ठिकाने के घोड़े और गायें भी तदाकत आश्रम पटना बिहार, वनस्थली विद्यापीठ निवाई जयपुर, चौपासनी विद्यालय जोधपुर तथा अपने अधिनस्थ ग्रामवासियों को प्रदानकर अपनी उदारता और समाज हितैषिता का परिचय दिया था । वे कवियों का आदर करते थे ।
ठा. मंगलसिंह अपने काश्तकारों के लिये अच्छी किस्म के बीज मंगाकर उन्हें बांटते थे। सांचोरी गायें मंगाकर उन्हें पालने की प्रेरणा देते थे । उनकी पहली ठुकरानी का देहावसान हो चुका था । उनके कोई सन्तान नहीं हुई । उनके शुभ चिन्तकों ने दिनांक 12.12.1964 को पुष्कर राज में उनका दूसरा विवाह रतनकंवर साखू (बीकानेर) के साथ करवाया था। ग्राम साखू पुत्री है । परन्तु इस ठुकरानी के भी कोई सन्तान नहीं हुई ।
दिनांक 4-2-1976 को ठा. मंगलसिंह का देहान्त हो गया ।
साभार पुस्तक : "गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद् इतिहास"