बखतसिंह रूपसिंहोत खूड़ The Battle of Khatu Shyamji: Thakur Bakht Singh Khud’s Supreme Sacrifice |
खूड़ के ठा. रूपसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र बखतसिंह खूड़ की गद्दी पर बिराजे । विक्रम संवत 1837 में मुगल सेनापति मुर्तजा अली भड़ेच ने दिल्ली से 50,000 पचास हजार सैनिकों के साथ प्रस्थान कर तोरावाटी से जयपुर क्षेत्र में प्रवेश किया । उसने थोई और श्रीमाधोपुर को लूटा तथा फौज खर्च की मांग की। उसने रींगस को भी लूटा और खाटूश्यामजी की तरफ आगे बढ़ा ।
सीकर के राव देवीसिंह के नेतृत्व में सूरजमल सादानी झुंझुनूं, ठा. अमानीसिंह दाँता, ठा. बखतसिंह खूड़, प्रभुदानसिंह खींवज आदि अपने भाई-बन्धुओं सहित मुर्तजा अली भड़ेच का मुकाबला करने खाटूश्याम जी में आ डटे । जयपुर की सेना भी चूहड़सिंह नाथावत डूंगरी, दलेलसिंह खंगारोत, महंत मंगलदास नागा जमान के नेतृत्व में शेखावतों की सहायता के लिये खाटूश्यामजी में पहुँच गई। इस सेना की संख्या 16 000 सोलह हजार थी ।
विक्रम संवत् 1837 के श्रावण मास की पूर्णिमा (रक्षा बन्धन) के दिन यह लोमहर्षक युद्ध लड़ा गया। दोनों सेनाओं के अनेक योद्धा मारे गये । मुगल सेना के मुहम्मद, अहमद, दाबदि के समान चौदह प्रमुख योद्धा तथा एक हजार आठ सौ सैनिक काम आये ।
शेखावतों की सेना के चूहड़सिंह नाथावत डूंगरी तथा उनके दो पुत्र सूरजमल व दलेलसिंह, महंत मंगलदास, सलेदीसिंह दूजोद, बाधसिंह टकणेत, उम्मेदसिंह पालड़ी, लाडाणी बुद्धसिंह सिंघासण, हणूतसिंह, प्रभुदानसिंह खींवज, बखतसिंह खूड़, हुकमसिंह सुरेरा आदि प्रमुख योद्धाओं के अतिरिक्त दो हजार 2000 वीर धराशायी हुए ।
खूड़ के ठाकुर बखतसिंह के साथ चाँदसिंह
मेदसिंहोत सांगलिया, तेजसिंह अमरसिंहोत के
पुत्र बुद्धसिंह के तृतीय पुत्र विजयसिंह भीराणा,
माधोसिंह
सवाईसिंहोत के चतुर्थ पुत्र हुकमसिंह सुरेरा आदि वीरगति को प्राप्त हुए ।
हिन्दूसिंह शूरसिंहोत गिरधरदासोत खाटू युद्ध में काम आये इस कारण ग्राम बीडोली में
सिर कटी के बदले पाँच सौ बीघा जमीन उनके वंशजों को दी गई । भौमसिंह गिरधर जी का
खाटू युद्ध में काम आये । इस युद्ध में गुलाबसिंह व नवलसिंह भगतपुरा घायल हुए ।
ठा. बखतसिंह मुगलों से भयंकर युद्ध करते हुए झूझार हो गये । इस भयंकर युद्ध में तोपों, तलवारों, भालों, बछियों के प्रहार से युद्ध क्षेत्र लाशों से पट गया। खाटू का खारड़ा मानव रक्त से लाल हो गया । शेखावत सेना के भयंकर आक्रमण से मुर्तजा अली भड़ेच पराजित होकर युद्ध क्षेत्र से पलायन कर गया । राजपूत सेना की विजय हुई |
ठा. बखतसिंह खूड़ के युद्ध का वर्णन देवगुण प्रकाश में इस प्रकार है :-
घमचाल बधै अण चाल घड़ीं । भड़ 'रूप' समौभ्रम रूप भड़ां ॥
हलियौ भार अरवन्त मही । जिण बार 'बखत' नरवन्त लही ॥
जजरांण सिली अर बाण जिलां । करतौ विहरांण अरांण किलां ॥
रथ रंभि अरक्क थरक्क पिया । किलमां विचि येमि गरक्क किया ॥
भावार्थ
बखतौ शेखो वीर वर, पांण गही चांडीस ।
जंग खाटू थल जूझियो, झड़िया गोलां सीस ॥
ठा. बखतसिंह के तीन ठुकरानियाँ थी
1. जैतकंवर जोधी भिणाय के ठा. जगरामसिंह जोधा की पुत्री बख्तसिंह जोधा की पोती ।
2. इन्द्रकंवर मेड़तणी जगतसिंह मेड़तिया की पुत्री भारतसिंह मेड़तिया की पोती ।
3. जैतकंवर अखैभाणोत इन्द्रसिंह की पुत्री सूरजमल की पोती ।
ठा. बखत सिंह के सात पुत्र तथा दो पुत्रियाँ हुई ।
पुत्र - 1. हणवन्तसिंह 2. फतहसिंह 3. मोतीसिंह 4. लालसिंह 5. सल्हदीसिंह 6. गोपालसिंह 7. देवीसिंह ।
पुत्रियाँ - 1. हुकमकंवर 2. चैनकंवर ।
संभवतः हणवन्तसिंह व फतहसिंह का बखतसिंह के जीवन काल में ही देहान्त हो गया हो । उनके तृतीय पुत्र मोतीसिंह खूड़ के स्वामी बने ।
लालसिंह, सल्हदीसिंह, गोपालसिंह व देवीसिंह को आजीविका के रूप में ग्राम माण्डोली की जागीर प्रदान की गई ।
बखतसंघ रूपसिंघ का वासी कुहड़ का सं. 1816 मिती पोस बुदि 7 ने बाबत मुसारव अल्ह के बाप की मातमी का सिरोपाव कीमती साविक रु. 28 ) थान तीन बकस्या।
संवत् 1824 मिती
मागश्र बुदि 4
ने बाबत अजरूप महरवानी तोसाखाना
के बक्स्यो सिरोपाव कीमती 3011 ) थान तीन ।
संवत् 1830 मिती द्रुतीक बैसाख बुदि 12 ने मुबाफिक फरद दसखती कै अजरूप महरवानी श्री जी ताजीम दफतर में दाखिल करो फरद करार मिती चैत बुदि 12 सं. 1830 |
साभार : गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद इतिहास
Heroism at Khatu: How the Shekhawats Defeated Mughal Commander Murtaza Ali Bhadech
Khatu’s Bloody Battlefield: The Martyrdom of Thakur Bakht Singh of Khud
When Rajput Valor Roared: The Historic Battle of Khatu Shyamji (V.S. 1837)
Bakht Singh Khud: The Rajput Warrior Who Fell Fighting the Mughals at Khatu
Khatu Shyamji War: The Day Rajput Courage Defeated Mughal Might
Unsung Heroes of Khatu: The Glorious Sacrifice of Shekhawat Warriors
From Khud to Khatu: The Saga of Thakur Bakht Singh’s Heroic Last Stand
The Forgotten Battle of Khatu: How Rajputs Turned the Tide Against the Mughals
Blood and Valor: The Epic Struggle of Shekhawats in the Khatu Battlefield