राजा हनुवंतसिंह बिसेन, कालाकांकर

Gyan Darpan
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Freedom fighter Raja Hanuwant Singh Bisen of Kalakankar


अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने में कालाकांकर रियासत का भी अपना एक इतिहास है। अवध (जिला प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश) स्थित इसी रियासत में महात्मा गाँधी ने खुद विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों तक क्रांति की आवाज पहुंचाने के लिए हिन्दी अखबार ‘हिन्दोस्थान’ कालाकांकर से ही निकाला गया था। इसमें आजादी की लड़ाई और अंग्रेजों के अत्याचार से संबंधित खबरों को प्रकाशित कर लोगों को जगाने का काम शुरू हुआ। इस तरह यहां की धरती ने स्वतंत्रता की लड़ाई में पत्रकारिता के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा। अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल यहाँ के राजा हनवंतसिंह बिसेन ने बजाया था।

राजा हनवंतसिंह राजा बैरिसाल की विधवा रानी द्वारा गोद लेने के बाद 1826 में कालाकांकर रियासत की गद्दी पर बैठे। राजा हनवंतसिंह ने 1844 में गंगा के किनारे किला बनवाया। 1853 में अंग्रेजों ने धारुपुर और कालाकांकर के किलों को जब्त कर उनकी रियासत के कई क्षेत्र छीनकर सीधे अपने नियंत्रण में ले लिये। लेकिन 1857 में राजा हनवंतसिंह कालाकांकर किला व अन्य संपत्तियां वापस लेने में सफल रहे। 1849 में अवध के राजा वाजिद अली शाह ने राजा हनवंतसिंह को राजा का खिताब प्रदान किया था। सन 1857 में राजा हनवंतसिंह ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करने के लिए अपने बड़े पुत्र राजकुमार लाल साहब प्रताप सिंह के नेतृत्व में 1000 सैनिकों की एक बटालियन बनाई और इसी बटालियन का नेतृत्व करते 19 फरवरी 1858 को इतिहास प्रसिद्ध चांदा के युद्ध में कॉलिन कैम्पबेल के नेतृत्व वाली अंग्रेजी फौजों से लोहा लेते हुए राजकुमार प्रताप सिंह शहीद हो गये।

शरण में आये अंग्रेजों की सहायता
राजा हनवंतसिंह के कई क्षेत्र अंग्रेजों ने छीन लिए थे। वे अंग्रेजों से दो दो हाथ को करने के लिए सैन्य तैयारी भी कर रहे थे। तभी 1857 की क्रांति के चलते कानपुर, लखनऊ, झाँसी और इलाहाबाद आदि स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झन्डा बुलन्द हो चुका था। जगह जगह अंग्रेज अधिकारी क्रांतिकारियों के निशाने पर थे। अतः उस क्षेत्र के कुछ अंग्रेज अधिकारी अपने परिवारों सहित राजा हनुवंतसिंह की शरण में आये। राजा ने अतिथि धर्म का निर्वाह करते हुए उन्हें शरण दी, रहने खाने व सुरक्षा का इंतजाम किया। कुछ दिन बाद जब माहौल जब कुछ शांत हुआ तब अंग्रेज अधिकारीयों ने उन्हें इलाहाबाद तक पहुँचाने की व्यवस्था करने का आग्रह किया। राजा ने उनके लिए नावों का इंतजाम किया। नाव चलने से पहले एक अंग्रेज अधिकारी ने राजा का आभार व्यक्त करते हुए बगावत को कुचलने में सहायता की अपील की। बस फिर क्या था। राजा हनवंतसिंह को गुस्सा आ गया और वे तनकर खड़े हो बोलने लगे- ‘‘तुम लोगों ने मुसीबत में मेरे यहाँ शरण मांगी। मैंने अतिथि धर्म व शरणागत की रक्षा को क्षात्र धर्म समझते हुए तुम्हें शरण दी, तुम्हारी सुरक्षा की। यदि मैं ऐसा नहीं करता तो मेरे क्षत्रित्व पर दाग लगता। पर याद रखो ! तुम लोगों ने मेरा राज्य छीना है, मेरे देश के नागरिकों को गुलाम बनाने की कोशिश की है। तुम इलाहाबाद पहुँचो, मैं भी अपनी सेना लेकर तुमसे रणभूमि में दो दो हाथ करने को पहुँचता हूँ. यही मेरा राजपूती धर्म है। उनके वचन सुन अंग्रेज अधिकारी हतप्रद रह गये। तभी गंगा मैया की जय बोलते हुए नाविकों ने नाव इलाहाबाद की ओर रवाना कर दी। इस प्रकार राजा हनवंतसिंह ने अंग्रेज अधिकारीयों को उच्च क्षत्रिय आदर्शों के दर्शन करवा कर उनकी आत्मा को भी शर्मिंदा कर दिया था।

राजा हनवंतसिंह ने अंग्रेजों के साथ संघर्ष जारी रखा। इस संघर्ष में उनके बड़े पुत्र के साथ उनके भाई ने भी मातृभूमि की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। ‘‘स्वतंत्रता समर के क्रांतिकारी यौद्धा’’ पुस्तक के अनुसार- ‘‘अंग्रेजों ने इनके ठिकाने को जब्त कर लिया। बाद में हनवंतसिंह सुल्तानपुर के चांदा की लड़ाई में कर्नल राबर्टसन से घमासान युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।’’ 30 जून 1881 को मातृभूमि के लिए शहीद होने के बाद राजकुमार प्रताप सिंह के पुत्र राजा रामपालसिंह कालाकांकर की गद्दी पर विराजे।

राजा हनवंतसिंह द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ शुरू की मुहीम को उनके वंशजों ने जारी रखा। आजादी के लिए जनजागरण हेतु राजा रामपाल सिंह ने ‘हिन्दोस्थान’ नामक हिन्दी अखबार निकाला। 14 नवम्बर 1929 को महात्मा गांधी कालाकांकर आये थे और उन्होंने कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के साथ विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। विदेशी कपड़ों की होली जलाने के दूसरे दिन गांधीजी ने राजभवन पर तिरंगा फहराया था। उस स्थल पर आज भी 14 नवम्बर को मेला लगता है। राजा अवधेशसिंह के बाद राजा दिनेश सिंह ने भी आजादी के पहले व बाद में देश के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई हेतु राजा दिनेशसिंह ने ‘‘राउंड द टेबल’’ नामक अंग्रेजी अखबार निकाला था व आजादी के बाद केंद्र सरकार के कई महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में मंत्री रहे।

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3टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर जानवर्धन किया आपने. आभार
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  2. बहुत अच्छी प्रेरक ऐतिहासिक प्रस्तुति
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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