Veersingh Deo Tomar वीरसिंह देव तोमर

Gyan Darpan
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दिल्ली पर मुसलमानों की सत्ता सथापित हो जाने पर तोमर राजवंश का उत्तराधिकारी अचलब्रह्म अजमेर के राजा हरिराज चौहान के पास गया । कुछ समय तक वह नया राज्य बसाने के लिए प्रयास करते हुए चंबल नदी के किनारे एसाह नामक स्थान पर रहने लगा । आगे के वर्तान्त पर इतिहास में कुछ भी निश्चित नहीं है। पर अनुमान है कि आगे चल कर कमल सिंह तोमर ने 1342 ई. में ग्वालियर लेने के लिये अहमद शेरखां से युद्ध में प्राण गवाएँ । पर उनके पुत्र देववर्मा के पुत्र वीरसिंह देव 1375 ई. में एसाह की गद्दी पर बैठे । उन्होंने दिल्ली सुल्तान मुहम्मदशाह की अधीनता स्वीकार की । 
1391-92 ई. में वीरसिंह देव तोमर ने चम्बल व दोआब के चौहान राजूपतों की अगवाई में हिन्दू संगठन बनाया और मुसलमान सुल्तान से विद्रोह किया । वीरसिंह देव, सुमेर सिंह चौहान, अधरन चौहान और भोगांव के वीरभान ने नेतृत्व किया और एटा बिलग्राम बलाराम कस्बे का विनाश, मुसलमानों की हत्या और उन्हें बन्दी बनाया । सुल्तान ने इस्लाम खां के साथ उनके विरूद्ध सेना भेजी जिसका सामना वीरसिंहदेव ने किया पर वह हार गया पर बच निकला । आगे उसने इस्लाम खां से संधी की और तब उसे दिल्ली ले जाया गया सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक की मृत्यु के बाद वीरसिंहदेव अपने ठिकाने एसाह चला गया और वहां के आस-पास के क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने लगा । 
इससे वहां के मुसलमान अधिकारियों ने दिल्ली शिकायतें भेजी तो सुल्तान अल्लाउदीन तुगलक ने नुसरत खां को उसके विरूद्ध भेजा। नुसरत खां वीरसिंहदेव को राजी करके अपने साथ दिल्ली ले गया । वहां सुल्तान ने उसको सम्मानित कर खिलअत दी और ग्वालियर का परवाना दे दिया । वीरसिंह देव जब ग्वालियर पहुंचा तो वहां के मुस्लिम किलेदार ने उस परवाने पर दुर्ग का कब्जा देने से मना कर दिया। अब वीरसिंहदेव ने दुर्ग के पास शिविर लगाया और किलेदार से मित्रता की और इसी प्रयास में होली के दिन उसे भोज पर बुलाया जहां उन्होंने उस मुसलमान किलेदार की हत्या कर दी । उसके बाद वीरसिंह देव ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया । 
यद्यपि मुसलमानों से उनकी लड़ना पड़ा पर वे सफल हुए । मार्च 1394 ई. से 4 जून, 1394 ई. के मध्य वीरसिंह देव ने ग्वालियर लिया । इस कार्य में उनके पुत्र उद्धरणदेव ने भी भाग लिया था। इसके बाद दिल्ली सुल्तान की ओर से (1401 ई. से 1423 ई.) इकबाल खां ने ग्वालियर पर 1402 ई. में चढ़ाई की परन्तु वइ अपनी सफलता में संदेह जान वापिस लौट गया । 1403 ई. में इकबाल खां ने फिर से ग्वालियर पर चढ़ाई की जिसका वीरमदेव तोमर ने आगे बढ कर धौलपुर के पास सामना किया पर वह मुसलमानों से हार गए और रात के समय धौलपुर दुर्ग छोड़ ग्वालियर चले गए| इक़बाल खां ने उसका वहां पीछा किया परन्तु उस क्षेत्र में लूटमार कर दिल्ली लौट गया| 
लेखक : राजेन्द्र सिंह राठौड़, बिदासर
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