Founder of Roopgarh Village & Fort : ठाकुर रूपसिंह खूड़

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Thakur Rup Singh of Khoor founder of Rupgarh (Roopgarh) village and fort : रूपसिंह मोहनसिंहोत खूड़ : 
ठा. मोहनसिंह जी की मृत्यु के उपरान्त उनके ज्येष्ठ पुत्र रूपसिंह जी खूड़ के स्वामी बने। वि.सं. 1788 में सीकर के राव शिवसिंह जी और झुंझुनूं के ठाकुर शार्दलसिंह जी ने अपने शेखावत भाई बन्धुओं के साथ फतहपुर के क्यायमखानी नवाब सरदार खाँ द्वितीय ( क्यामखांसानी ) पर चढाई की थी। इस युद्ध में खूड़ के ठाकुर रूपसिंह जी भी शेखावत सेना के साथ क्यामखानियों से लड़े थे। शिवसिंह जी के नेतृत्व में बने सैनिक डिवीजन में रूपसिंह जी खूड़ का नामोल्लेख हुआ है। "विल्स रिपोर्ट और उसका उत्तर।"

वि.सं. 1882 सन् 1725 ई. में मनोहरपुर, खण्डेला, रैवासा और कासली के परगनों के मामले Tribute का इजारे का अधिकार महाराजा सवाई जयसिंह जी ने मुगल अधिकारियों से प्राप्त कर लिया था। उसी समय से अन्य शेखावत सामन्तों की भांति खूड़ के शासक ठाकुर रूपसिंह जी भी जयपुर दरबार के करद (मालगुजार) सामन्त बन गये थे।

ठाकुर रूपसिंह जी ने अपने नाम पर रूपगढ़ ग्राम बसाया। ऊँची पहाड़ी पर एक दुर्ग का निर्माण कराया। रूपगढ़ खूड़ /ठिकाने की युद्ध कालीन राजधानी थी। पहाड़ी की तलहटी में जानाने तथा मर्दाने महल बनवाये। वहीं रघुनाथजी का मन्दिर बनवाया।

रूपसिंह जी के बड़े कंवर अजीतसिंह जी मल्हाराव होल्कर की सेना से लड़ते हुए अपने अनेक भाई-बन्धुओं तथा सैनिकों सहित मारे गये । अजीतसिंह जी के वीरगति प्राप्त करने पर उनकी कुंवरानी ने चिता में प्रवेश कर सहगमन किया । रूपगढ़ के कुए पर उन दोनों की स्मृति में दो छत्रियाँ बनी हुई हैं।

ठा. रूपसिंह के छः ठुकरानियाँ थी

1. चैनकंवर ईशरदासोत मेड़तिया शिवसिंह की पुत्री भीमसिंह की पोती। 

2. चांदावतजी ठा. रूपसिंह के राजकंवर दौलतसिंह की पुत्री थी।

3. जोधपुरी जी शिवदानसिंह पृथ्वीसिंहोत की पुत्री थी।

4. विजैकंवर दौतलसिंह बीदावत गाँव लेह की पुत्री थी।

5. उम्मेदकंवर सूरतसिंह शूरसिंहोत मेड़तिया ग्राम लूणवां की पुत्री थी। 

6. नाथूकंवर आनन्दसिंह अनोपसिंहोत जोधा ग्राम सेवा की पुत्री थी।

1. अजीतसिंहजी जो मल्हारराव होल्कर से युद्ध करते हुए निःसन्तान ही मारे गये। 

2. बखतसिंह जी खूड़ ठिकाने के स्वामी बने।

3. गुलाबसिंह जी ठुकरानी चैनकंवर ईसरदासोत मेड़तणी के पुत्र थे। मोहनपुरा गांव जागीर में दिया गया, पर आप वि.सं. 1815 में भगतपुरा नवल सिंह के पास  गए और ग्राम भगतपुरा को आधा आधा बाँट लिया इस तरह भगतपुरा में बड़ा और छोटा पाना यानि दो पाने बन गए, आज भी गांव वासी गुलाबसिंह जी के वंशजों को बड़ी कोटड़ी और नवल सिंह जी के वंशजों को छोटी कोटड़ी वाले कहते है। 

4. नवलसिंह जी को वि.सं. 1802 में ग्राम भगतपुरा जागीर के रूप में दिया गया। 

5. तारासिंह जी को ग्राम झुनकाबास आजीविका के रूप में मिला।

6. सुजाणसिंह जी को ग्राम बानूडा की जागीर मिली।

रूपसिंह मोहनसिंह का किशोरसिंह का पोता शेखावत कुहड़ का संवत 1800 मिती बैसाख सुदि 15 अजरूप महरवानगी सिरोपाव कीमती साविक 49 ) थान 3 वाक्यों जयपुर दरबार ।

सन्दर्भ पुस्तक : "गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद इतिहास"

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