मयूरधुज गढ़ : मेहरानगढ़ जोधपुर

Gyan Darpan
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मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से..........
जोधपुर रौ किलौ मोरघुज (Mehrangarh) बाजै। मारवाड़ री ख्यातां में इण रौ जलम नांव गढ़ चिंतामणी मिलै। नगर, किला, कोट कमठाणां री नींव-सींव री थरपना चौखा समूरता सूं लागै। किलो, दुरंग नै जीवरखौ जंग-जुद्ध री बिखम बेळा में राजा-रेत रा जीव नै आसरौ देवै। जीव नै जोखा सूं ऊबारै। मोटी-पातळी किणी भांत री खैंखां नीं होण दै। इण वास्तै पैलड़ा जुगों में जीवरखां री घणी महता मानीजती। राजस्थान में आडावळां री छोटी-छोटी भाखर टूँका माथै, धरती माथै अणगत नान्हा-मोटा किलां री सांकळ-सी गूंथीजियोड़ी दीसीजै। जेक सूं दूजौ, दूजा सूं तीजो इण भांत लांबी कोसां तांई अणगिणत कतार-सी लखावै।

जोधपुर रौ किलौ मारवाड़ रै धणी प्रतापीक राव जोधै संवत् १५१५ रा जेठ सुद ११ सनीस्चरवार ९ दिन चित्रा नखतर में रांग भरा नै मंडायौ। अर मंडौर री अेवज में गढ़ रै हैटै अगूणी कांनी आप रै नांव सूं जोधपुर नगर बसायौ। जोधपुर मंडौर सूं तीन कोस दिखणाद में पडै़ है। मंडौर रौ भाखर भौगाीसैल नै नाग पा’ड़ कहीजै। कोई जमाना में अठै नाग खत्रिय राजावां रौ राज रेयौ तिण सूं नागां रा नांव सूं नागसैल नांव हुवौ। नागों में ताखौजी, बिंदौजी, पदमनाग आद घणा टाढ़ा राजा हुवा। नाग नै मोर रै आदकाळ सूं वैर गिणीजै। इण धर्म नै लोक भावना तूं पसीज नै राव जोधै जोधपुर गढ़ रौ नांव मोरधुज दिरायौ। मोर रै धकै नाग फीटौ पडै़। मारियौ जावै। कहणगत है कै मोरधुज की रांग रौ समूरतौ पांच पीर में ऊघड़ता हड़भूजी सांखला काढ़ मेलियौ हौ। आ बात भी चालै कै देसणोक रा देवी करणीजी उण मौके पधार नै जोधाजी नै आसीरवाद दियौ हौ। राव जोधाजी रा बखत में चौबुरज्यौ जीवरखौ नै जोधैजी रौ फळसौ इज वणियौ। बाकी री मैलायत, कमठांणां, पोळां दरवाजा नै नगर कोट पछै लारला राजावां बणाया।

जोधपुर धणी अभैसिंघजी रो राजकवि कवियौ करणीदानजी सूरजप्रकास ग्रन्थ में राव जोधाजी नै जोधपुर गढ़ री थरपना रौ बखाण करता थकां लिखियौ है-
सूत दियण नग सिरै, मिळै जोधौ भड़ मळां।
सुभ मुहरत सुभ सगुन, वणै चित्र सूं सुभवेळां।।
सास्त्र सिलप संजोय, सिलावट्टां स सधीरां।
सीस सीस असम संमेळ, नीम परठी मझि नीरां।।
पनरैसै संमत पनरोतड़ै, सुदि जेठ ग्यारस सनढ़।
आदगाट जोध रचियौ इसौ, गाढ़पूर जोधाणगढ़ ।।


मयूरधुजगढ़ नांव रौ कारण किला नै मोर री आक्रत रौ भी बतादै है पण औ किलौ नाग रै आकार रौ है। नाग-मोर सत्रुपणा रै कारण मोरधुजगढ़ नांव री सारथकता है।

‘सूरजप्रकास’ में इण री द्रढ़ता, बुरजां री मजबूती, नींव रो ऊंडापणौ, विखमता, सौवणापणौ नै बसीवानां री बैबूदगी बाबत फेर बरणियौ है-
नग सीसा गळ नीम, गरक असमां घूनागळ।
बींझाझळ सिर बणै, बिखम भुरजां बीझाझळ।।
कोट सेस आकार, वणै कांगुरा चहंुवळ।
वडी अंवारति वणै, जौख घण नौखछिलै जळ।।
स्त्रबलोक बसै धनवंत सुपह, सोहै रूप सुधार रौ।
गहतन्त विकट जोधांणगढ़, वणै मुकट वैराट रौ।।


इण भांत विंधाचळगिर रै बरौबर कवि इण नै द्रढ, अटल, अर ठाढ़ौ गिणायौ है। राव जोधाजी सूं लगाय महाराजा तखतसिंघजी तांई मोरघुजगढ़ जोधपुर राजवंश रा राजावां रा रैवास रो कोट रैयौ। पाछला राजा राईकाबाग नै उम्मेदभवन में रैवण लागा।

मयूरधुजगढ़ जिण भाखरी माथै है उण नै बोलीचाली में चिड़ियां टूंक भी कैवै है। राव जोधैजी जद इण कोट री रांग भराई तद अठै नाथपंथ रा सिद्ध चिड़ियानाथजी तापता हा। अबार तांई उणां रौ धुणौ झरणा नखै पूजीजै है।

मोरधुजगढ़ रै चारूंमेर चूनागळ पुखता भींत है जिकी बीस फुट संू लैय नै अेक सौ बीस फुट तांई डीधी है नै बारै सूं सित्तर फुट तांई चौड़ी है जिण पर मोटी-मोटी तोपां, बांणां नै जुजरबा धरियोड़ा है। औ किलौ चावड़-धावड़ पांच सौ गज लाम्बौ नै दोय सौ पच्चास गज चौड़ौ है। इण रै दोय खास मुंहारणा है। पैलौ लोहापोळ नै दूजौ जैपोळ। लोहापोळ आंथूण कांनी अर जैपोळ धुराऊ अगूण दिस में है। इणां रै अलावा धूपोळ, सूरजपोळ, भैरूपोळ आद बीजा दरवाजा भी है।

इण कोट में मारवाड़ रा राजावां रौ रैवास नै राजधानी रै कारण मारवाड़ रा घणखरा राजा कमठाणां, मैल, झरणा आद बणावता खिंणावत रैया। महाराजा सूरसिंघ रौ चुणायोड़ौ मोतीमहल, महाराजा अजीतसिंघ रौ बणायोड़ौ फतैमहल, महाराजा अभैसिंघ रौ फूलमहल अर महाराजा बखतसिंह रौ त्यार करायोड़ौ सिंणगारमहल घणौ सौवणौ, मोवणौ, सांतरौ, छिबतौ, फबतौ, ऊघड़तौ, औपतौ सरूप महल है। इणां री भीतां, आंगणां अर भीतरी छतां में सोने री बैल बूंठां फूल-पांखड़ियां नै बीजां रंग बिरंगा चित्राम सिलप नै चितराम कळावां रा नमूना कहीजै।

राव जोधैजी रै पछै राव सातळजी पच्चास हजार री लागत सूं कंवरपदा रौ महल अर कपड़ां रा कोठार कराया। राव सूजैजी हवामैल रै हेटै अैक मैल करायै नै लोहापोळ ढिग साळां चुंणवाई। राजलोकां तांई रावळा में जनानामहल बणवाया। कंवर बाधौजी अबार जठै नगारखानौ बाजै है उठै महल करवाया। राव गांगौजी वडौ उदार हुवौ। उणां गीतड़ां नै भींतड़ां में गीतड़ां ने घणा पसंद किया। कैवै है-

भींतड़ां ढह जाय धरती भिलै, गीतड़ा नह जाय कहै राव गांगौ।

इण भांत कोरती रा आधार भींतड़ां नै गीतड़ा गिणीजै है। राव गांगौ भींतड़ां में इण कोट माथै जठै दौलतखानौ है उण रै हेटै महल करवाया नै जिण ठौड़ भैरवजी रौ थान है बौ तळखानौ चुंणवायौ।

मोरधुजगढ़ रै भाटै राव मालदेजी ठाढ़ौ प्रतापीक तपियौ। घणा खळखेटा नै धमजग्गर मांडिया। घणी नुंवी धरती खाटी। मोरधुजगढ़ हेटै सिवाणौ, जाळौर, नागौर मेड़तौ, अजमेर आद टणका गढ़ लगाया। घणा बीजा कोट, परकोट जीतिया, ढहाया नै चुणाया। मोरघुजगढ़ नै घणौ संवरायौ, सजायौ, नावांजादीक बणायौ। गढ़ में झरणा दोळी तुंवौ कोट चुणायौ। चौकेळाव तळाव दोळौ कोट करवायौ। राणीसर दोळै कोट बणवायौ। राणीसर नै लोहापोळ बीचळौ कोट करवायौ। लिखमणपोळ अर इम्रतपोळ करवायी।

राव मालदेजी रै उमराव ऊहड़ राठौड़ गोपाल गोपाळपोळ करवाई। राव मालदेजी रै समै में इज औ कोट तुरकाणी भी भोगी। दिल्ली रा पातसाह सेरसाह धकै मालदेजी पग नीं मांड सकिया। कोट नै ऊभौ मेल नाठा। सेरसाह रौ अेक बरस कोट माथै हांमपाव रैयौ। उण बखत तुरका कोट में मैजीत चुणाई। पछै पाछौ मालदेजी रौ कब्जौ हुवौ। हिंदुवाणी हुई। पछै राव मालदेजी रौ पौतौ राजा सूरसिंघजी गढ़ माथै सूरजपोळ, जटै हमैं चित्र सेवा है उटै जनानी ड्यौढी, आटै री सिंणगार चौकी. अबै दफ्तर कहीजै उठै सभा मण्डप रौ महल, बाड़ी रा महल, मोतीमहल, कपड़ा रौ तोसाखानौ, बागां रौ कोठार, ढोलियां रौ कोठार, घोड़ा री जूंनी पायगां में जरजरखांनी बणायौ नै थिर कियौ।
महाराजा गजसिंघ कंवरपदा रै महल ऊपर आणंदघणजी रौ मिंदर करायौ, तोरणपोळ, दीवानखानौ नै तळेटी रौ महल बणवायौ। ठौड़-ठौड़ पातसाही में विजै पाय नै जोधांणकोट नै कीरतमान कियौ।

महाराजा जसवंतसिंघजी बादसाह साहजहां रा घणा मानैता हुवा। सिरी हींगळाज माता नै महादेव पारबतीजी रा देवालय करवाया अर आगरणी रौ महल बणवायौ। घणा कवियां माथै रीझ नै धवळ मंगळ गवाया। लाख पसाव नै करोड़ पसाव जैड़ा दान इण किला माथै दिया।

महाराजा जसवंतसिंघजी पुछै तीजी बार मारवाड़ में राजदुराजी व्ही। पातसाह औरंगजेब किला पर आप रौ कब्जौ मेलियौ। घणा धळ धौंकळ हुवा। संवत् १७३५ सूं संवत् १७७३ में औरंगजेब रै भिस्त पूगां पछै चमोतरै पाछै किला माथै घ्रत रा दीप जूपा। नौपतां री गड़गड़ी हुई। महाराजा अजीतसिंघ रौ दखल हुवौ। अजीतसिंघजी गोपाळपोळ सूं फतैपोळ सूधौ काम करायौ। अजीतविलास महल करवायौ। दौलतखाना ऊपर बीचलौ महल, आगरणी रा महल रै पिछोकडै भोजनसाळ अर रावळा में रंगसाळ कराई।

महाराजा अभैसिंघजी कोट री बुरज्या नै आखा गढ़ री निपाई कराई। टूट-फूट सुधराई। भाखर में सुरंगां सूं खोद नै चोकैळाव बैरौ खिंणायौ। फतैमहल ऊपर फूलमहल, सभामंडप ऊपर कछवाहीजी सा रौ महल, लोहापोळ हेटै गोळ री घाटी नखै तीन बुरजां बणवाई। अैमदाबाद नै जीत अठां रा किंवाड़ लाय लोहापोळ रै वढ़ाया। आणंदघणजी रा मिंदर में स्फटिक री पांच प्रतिमावां थरपी।

महाराजा बखतसिंघजी मरदानी ड्योढ़ी सांमी जनानी ड्योढ़ी नै सिंणगार महल चुणायौ। महाराजा बिजैसिंघजी मुरळीमनोरजी बिराजै जिकौ महल, पांणी रौ टांकौ नै आपरा गरू आतमारामजी री समाधी चुणवाई।

महाराजा मानसिंघजी आपरा गुरु आयस देवनाथजी माथै समाध नै उण कनै टांकौ सुधरायौ। लोहापोळ आगै भरत कराय पाकौ पट्टी करायौ। जैपोळ नुंवी कराय लिखमणपोळ तांई कोट करायौ। भैंरूपोळ कराई। सेवा रै महल चित्र सेवा ऊपर सिरीनाथजी रौ मिंदर बणवायौ।

महाराजा तखतेस खाबगारा महल, ऊपड़वाय उठै नुंवा मैल कराया। फूलमहल रौ लदाव नुंवौ करवायौ। मोतीमहल रै जूनां पाट कढ़ाय नुंवा घलाया। उण में सोने री कारीगरी रौ काम करायौ। तखतविलास महल चुणवायौ। माता चावंडाजी, काळकाजी रा मिंदर, फतैपोळ आगली साळ, फतैपोळ ऊपरली छतरियां रा कांगरा तुंवा कराया। चोकैळाव में महलकराया। जनाना में राणावतजी सा रा महल कराया। राणीसर माथै अरट मंडायौ।

गढ़मोरधुज माथै घणा सूरमा-सपूतां रा जस गीत गरणायाइजिया। आगरा रा दरबार में सलाबतखान नै पूगणिया राव अमरसिंघजी अठै रमिया। मुगलाई रा थांभा सूरसिंघजी, गजसिंघजी, अभैसिंघजी इण कोट में जळमिया। मुगलाई रा खौगाळराव मालदे, राव चन्द्रसैण, महाराजा जसवंतसिंघ मोरधुजगढ़ रा रायांगण में रमिया। अंगरेजां री आंख में खैर रौ कांटौ जैड़ा सालणा महाराजा मानसिंघ री थाहर औ इज कोट रैयौ।

घणा प्रवाड़ां रौ लोभी औ कोट धन्न है। इण रौ जस अमर है। औ चीतौड़गढ़ नै आबूगढ़ रै जोड़ गिणीजै।
गढ़ ऊंचौ चित्तौड़, आबू सुं बातां करै।
मोरधज्ज री मौड़, किण सूं कमती किसनिया।।


मोरधुज किला नै ‘महरानगढ़’ कैवणौ सही नीं है। ‘गढ बणियौ महरांण’ रौ अरथ गढ री विसालता इज दरसावै। महरांण रौ अरथ दरियाव हुवै है। दरियाव जैड़ौ फैलियोड़ौ गढ़।


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  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और कमलेश्वर में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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