सिरैगढ़ जैसलमेर

Gyan Darpan
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मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से........
इतिहास में साढी तीन साकां री ख्यात वाळी, भड़ किंवाड़ उतराध रा बिड़दाव वाळी, राग रागण्या री महाराणी मांड राग री जळम भौम माडदेश आजकलै जैसाण जैसलमेर Jaisalmer रै नांव सूं ओळखीजै। जैसलमेर रा खांतीला माणस जठै जुगजुगां तांई प्रकृति रा रूठपणां सूं जूंझता रैया उठै भारत देस नै पैमाळ करण री नीतवाळां परदेसी, देसी दुसमणा सूं भी बरौबर मींढा भेटी लेवता रैया। काळी कोसां तांई उजाड़, सूयाड़, बालू री भरां, रड़ां, निरजळां रोही रा भड़ां री भाटभड़ां री घणी ओपती करणी राजस्थान री ख्यातां में रमै। निरजळां भूमिभाग रा सजळा सपूत पूतां री मरदांनगी री मोवणी कांणियां राजस्थान री सोवणी भासा में मिळै। धरती में पांणी पताळां तांई नीं, पण मिनखां में अप्रमाण आब रैयी।

जैसाण रा अडै़ता, लडै़ता भड़ भाटी सदा भारत री उतराधी कांकड़ सीव रा रुखाळा निरवाळा जोधार गिणीजिया। भाटीपा रा सूरा पूरा कई राजथान थरपता, छोड़ता, बैरीड़ा नै मसळता मरोड़ता कोई नौवां सईका में अठै आया । उण समै माड रौ पुराणौ राजथान ‘प्रथीतणा पंवार’ बिड़द रा उजाळबाळा पंवारां रै कब्जै हुंतौ। भाटी भड़ देवराज पंवारां नै तलवार री धारां सूं धपाय आप रौ हांमपाव कियौ। कैयौ है-

कर लसकर कीधा कतल, पळ पखै परमार।
दूठी रूठे देवरज, धारा काळीधार ।।


रतननाथ नांव रा सिद्धराज जोगेसुर रौ वरदान पाय भाटी देवराज माड धरा जीती अर उठै आप रा नांव पर देरावर ठौड़ री थरपना करी। रतननाथ रा वरदान सुं जैसलमेर रा धणी रावळ कहिजिया। जोगेसरां देवराज नै मंदरा, चोळौ, आसौ अर खड़ाऊ दी जिकी धारण कर देवराज दान पुन्न कर आयसजी रै मठ भेंट कीनी। आ, परम्परा सुतंतरता पैली तांई जैसलमेर घराणा में चालती रैयी। भाटियां पंवारां रा नवकोट जीतिया तिण सूं नवगढ़ धणी कहाया। देरावर रै पछै लुद्रवौ बसाय देवराज घणौ दान, पुन्न पोखण रौ काम कियौ। देवराज री उदारता माथै कैयौ है-

क्रोड़ इग्यारै अरब हिक, पैंसठ लाख पसाव।
दीधा सिध देवराज धन, रीझे भाटीराव।।


रावळ देवराज प्रतापीक हुवौ। तीनूं सिंध, जाळौर, मंडौर, पूंगळ आद री धरती में घणा रगड़ा-झगड़ा किया।
देवराज रै पछै जैसाणधरा में रावळ भोजराज आखाड़सिध मांटी पणां रौ आंक हुवौ। गैलै जावता काळ सूं बाथैड़ा करण में तीखौ, रजवटपणां में नीकौ भोजराज आपरी प्रजा नै पोखण में दीखौ पुरस हुवौ। वैरियां नै घाव नै हेताळवां नै धन द्राव देय जस पायौ। जवनां सूं घणां रटाका लिया। पातसाह साहाबुदीन सूं लोह झड़ खेलियौ। ख्यातां बोलै है-

गौरी साहबदीन, भिड़ियौ रावळ भोजदे।
नांब अमर जसलीन, बारैसै नव लुद्रपुर।।


भोजदेव अजै भी जूंझार रूप में पूजीजै है। सरधाळवां री पीड़ मेटै।
लुद्रवा रै पछै भाटीपा री नवमी राजधानी जैसलमेर कहिजै। पुराणी कहणगत है कै जदुनाथ सिरीक्रिसण माड धरा सूं मथरा, द्वारका आवता-जावता जैसलमेर री ठौड़ देख नै कैयौ हौ-

जैसल नावां भूपती, जदुवंसी हिक थाय।
कोयक काळ रै आंतरै, अेथ रहेसी आय।।


पुछै रावळ दुसाझ रौ बेटौ रावळ जैसल बारैसी बारै रै सईका में लुद्रवा रै पाखती अगूंण दिस गवरहर भाखर माथै गढ़ मांडियौ। गवरहर तीन खूंणौ भाखर तिण सूं जैसलमेर रौ दुरंग तिखूणकोट त्रिकुटाचलकोट नै त्रिकुटगढ़ कहिजै। जैसलमेर रौ ठणकीलौ गढ़ चौफेर एक कम एक सौ बुरजां सूं बीटिजियौड़ौ दुरंग है। पातसाही काळ में जैसलमेर रै कंवर मनोरदास घणा तीख चौख रा काम कर जैसलमेर नै उजाळियौ। कवियां मनोरदास सारखौ कंवर अर जैसाण तोल दुरंग जुग जुगां में अजोड़ कथियौ है। गढ़ अर कुंवर री रजवट री टणकाई बखाणतां कैयौ है-

संसार कहै पतसाह सांभळो, समर पाकडै़ नकौ समसेर।
अजब बणै दु नियाण ऊपरै, मानकं, वर नै जैसलमे र।।१।।
कंदरागुर बडगात कलावत, जगपुड़ नयण पतीजण जोय।
गौरहरा सारीख नकौ गढ़, न्रप मनहर सारीख न कोय ।।२।।
बांह प्रळंब जोध अतुळीबळ, मोज समंद जादम मनमोट।
मान मछर सिरहर मं डळीकां, कोटां सिरै तिकूणौ कोट।।३।।
खाग त्यााग मीेंढता नवखंड, जादम सारीखौ जैसाण।
मृनहर तणा भ ुजाडं ड मोटा, मोटा बु रजां तणा मंडाण।।४।।


नीन्याणवै बुरजां रा मंडाण रौ, फूटरा पीला पाखांण रौ, जोधारां जूझारां री रैठांण रौ, जौहर साकां री अगवांण रौ, च्यारकूटां रौ चावौ, भाटीपा रौ मन भावौ जैसाण रौ दुरग संसार में साढी तीन साका रौ कोट भणीजै। जैसलमेर रौ धणी रावळ मूळराज अर रतनसी तेरहसै इकावने रै साल फीरोजसाह सूं भिड़ साकौ कियौ। केसर रा रंग में गरकाब, रजपूती री आब, पातसाही फतै रा सुपना नै धूळ में मेळ अखेलौ खेल खेलियौ-

साह पीरोज जलाल, मूळ रतन जैसाणगढ़।
साकी कीध कराळ, तेरहसै ईकावनै।।


तेरहसै रा सईका में इज फेर बादसाह अलाऊदीन रौ सेनादळ जैसलमेर ढूकियौ। गांवां नै उजाड़तौ रहवासा मिंदरां नै पाड़तौ, जैसलमेर आयौ। रावळ दुरजणसाल, तिलोकसी पातसाही दळ सूं विढ़ पड़िया। धरती धूजी। गोम गाजियौ। नारियां सत आंगमियौ। जौहर ज्वाळा में जळी। रजवट फळी। धड़ पड़िया धाराळी चली। भूतावळ जागी। सूरज थंभियौ। अचंभ कर भ्रमियौ। दूदौ तिलोकसी काम आया। अमर लोक पाया-

खिलजी अलावदीन, दुरजणसाल तिलोकसी।
साकौ भारी कीन, तेरहसै अड़सट्ट में।।


अेक साकौ अजै बाकी नै आधौ साकौ रावळ मालदेव रा जुद्ध रौ गिणीजै। पण, जौहर नै साकां में आगीवाण जैसलमेर रा लोग कळा, कारीगरी, मोज रीझ अर सुन्दरता रा पारखी भी कम नीं। जठै प्रक्रति उणां नै कितरा इज अभाव में राळिया उठै कितरा इज गुण नै सुख भी दिया। जैसलमेर री सूखी भौम रंग रूप में किंणी सूं भी कम नीं। उठां री नारियां समझ-स्याणप, चात्रगता अर घर ग्रहस्थी री संभाळ में टणकी बाजै। पाव नै सावा सेर कर बरताणै में घणी चात्रग बाजै। जैसाण री नारी रौ अेक काव्य चित्राम है-

जिकी परी इंदरी, जिकी चंदरी कळासी।
जिकी आभ बीजळी, जिकी होळका झळासी।।
जिकी रूप री बेल, जिकी पीवह वस करणी।
जिकी गुण रीझणी जिकी ओगुण परहरणी।।
जाणणी जिकी राजस कळा, थिर वयणां जस खट्टणी।
भळहळत कंवळ गुण गागरी, भळी सुरंगी भट्टणी।।


भाटीपा री नारियां जठै जौहर साकों में पुरसां रै आगै आप री कंचन-सी निरमळ, गंगी-सी प्रवीत, पहपसी महकती काया नै जौहर कुंडां में होमवी। उणा रै धकै इं दर री अपसरा, चंदर री कळा, आभा री बीज, होली री झळ भी समता में नीं चढ़ै। रूप री बेल, गुण री गागर, समझ री सागर, राजरीत प्रवीण, जस खाटणी नै गुणां पर रीझणी गिणीजै।

प्रेमिकावां री सिरमौड़ मूमळ जैसलमेर देस री इज रूप बाड़ी रौ फूल हौ। विदवांन पिंडतां री अकल चरणी काव्य-बरसाबा वाळी सोढी नाथी जैसाणा री इज भगति गंगा ही। महाकवि महाराज प्रथीराज री परणेता चंपादेवी जैसाण री इज ऊपनी नारी रतन ही। ढोला मारू री चौपाई प्रेम कथा रौ रचना रौ नै पिंगळ सिरोमणी रौ लिखारौ कुसळलाभ जैन जैसलमेर रावळ हरराज रौ मानीतौ कविसूरि हौ। राजस्थानी रौ मोटौ व्यंगकार रंगरेळौ वीठू चारण, ईसर रतनू डूंगरसी रतनू भाटीपा रा मोटा कवि हा।

जैनध्रम नै आसरौ देय बढावण में भी जैसलमेर नै आछी नांववरी पाई। जैनियां रा पारसनाथ, संभवनाथ, सीतळनाथ, आद ठाढ़ा आठ मिंदर जैसलमेर में है। उठां रा जैन श्रावकां रा तळभंवरां में इतिहास, घ्रम, नीत इत्याद रा घणा अमोलक ग्रंथ सुणीजै है। जैसलमेर रा मिनखां री मजबूती अर उठां रा पसुवां री हींमत पर घणौ बरणन मिलै। जैसलमेर पर कहणगत है-

घोड़ा होवै काठरा, पिण्ड हुदै पाखांण।
बगतर होवै लोह रा, तो जइयौ जैसाण।।


पाखांण पिण्ड रा धणी दुसमणां री अणी सूं झगड़बा नै हमेस ऊंतावळा सा बावळ सा रैया। कमालुदीन रा जैसलमेर धावा रौ बरणन त्रिकूटगढ़ रा रुखाळा री जोमरदी रै साथ सुणीजै-
‘‘तुरकां तूं गढ़ लगाव दो। कांगुरै हाथ घाततां तांई कोई तीर गोळी मत चलावो। सु गढ़रोहो व्है छै। नींसरणियां लागै छै। गढ़ रै ठठरियां ओट जूंझार जाय लागा छै। हाथी पंदरा किवाड़ भांजण तूं आगै किया छै।’’ पछै ढील कठै ! जंग जोधार कंदोई कड़ाव में पापड़, भुजिया तळै ज्यूं दुसमण नै तळ नै पकवान बणा दिया-

क्ेसर मिलक सराजदी, वे मूलू हत्यांह।
जाण कंदोई उथळै, खाजौ मंझ कड़ाह।।


बात पर अड़णौ, बचन पर मरणौ माडेचा रौ पण। नर इज नीं माड री नारियां भी घणी आंटीली। राजस्थान में जैसलमेर री नारियां री घणी सराहणा हवै।
जग चावौ कथन सांभळीजै-

मारवाड़ नर नीपजै, नारी जैसलमेर।
सिंधां तुरी सांतरा, करहा बीकानेर ।।
जैसलमेर री राजकंवरी उमादेवी भटियाणी ख्यातां में रूठीराणी रै नांव सुं ओळखीजै है। उमादे नवकोटी मारवाड़ रा जोमराड़ धणी राव मालदेव राठौड़ ने परणाई ही। उमादे अर राव मालदेव रै सुहागरात रै समै इज अमेळ व्है गयौ। मान री धणियाणी मारवाड़ रा धणी, आप रा पति मालदेव सूं अबोळ रौ प्रण झाल लियौ। सुहागरात रा सपना, मीठी कल्पनावां सैंग समेट आधी फेंकी। अर जीवण भर रावजी री नीं सेज माथै पग दियौ नीं बोली। रावण सौ रढ़, हमीर सौ हठ झाल उमादे रूठी राणी बाजी। मारवाड़ रा प्रतापीक राव मालदेव रै आगै नीं नमी सौ नीं इज नमी। आखी उमर रूठी रैयी अर जद राव मालदेव री काया रौ पात हुवौ झट सहगमण करबा नै चिता रा अंगारां में जा बैसी। उमादे रै धकै असत्यां रा मुंहड़ा काळूट नै लीयाळा सा तेजहीण व्है गया। जूनां भारतीय साहित में आदर्स नारियां मंदोदरी, कौसल्या, कुंता सगळी सती ध्रम नै पांतरी अर पति रै साथै नी बळी, पण जैसलमेरी उमादे आपरी
काया नै पति री चिता रै भेंट किवी-

मंदोदर मेलियौ, राण हेकलौ रावण।
कुंती पाण्डु नरिंद रही, बोळाय विचक्खण।।
कान्ह मरण गोपियां, करग थम्भौ नह दीधौ।
कोसल्या दसरथ, काठ चढ़ साथ न कीधौ।।
पांतरी इति सह वड परब, सनमुख झाळां कुंण सहै।
पांतरूं केम मोटौ परब, कथन अेम ऊमा कहै।।


कुळ कीरत माथै सरबस होमण तांई इज राव हमीर रणतभंवर माथै, रावळ पत्तौ पावागढ़ माथै, राव चूंडौ, नागौर माथै, कान्हड़दे चौवाण जालौर माथै अर रावळ दूदौ जैसलमेर माथै साकौ कियौ जद फेर लाज री जहाज, म्रजादा री मिंदर उमादे कींकर जुग ध्रम व्रत नै बिसारती ?

जेण लाज हम्मीर, मुदौ जूझे रिणथंभर।
जेण लाज पातल्ल, मुदौ पावागढ़ ऊपर।।
जेण लाज चुंडराव, मुवो नागौर तणै सिर।
कान्हड़दे जालौर, अनै दूदौ जैसलगिर।।
वड घरां लाज राखण वडी, करण सधू खत्रवट करै।
सो लाज काज ऊमां सती, मालराव कारण मरै।।


लाज री पाज ऊमादे सत धारण कर जैसलमेर नै जोधपुर, पीहर अर सासरा रै सोना रौ कळस चढ़ाय कीरत पायी। भाटीपा री उण विचक्खण साहसी रूठी
राणी रा रुसणा माथै भाटीपा नै गुमेज है-

ऊमां सतव्रत आंगमे, भई सती भटियाणि।
ऊमै दुरंग उजवाळिया, जोधाणै जैसाणि।।


इण भांत भारत में जैसलमेर रौ दुरंग नै माड री धरती महान कहावै। कीरत पावै। अर भाटीपा रा सूरमां सपूत उतरोध रा किंवाड़, सीमाड़ा रा रुखाळा रौ बिड़द पावै-

भड़ किंवाड़ उत्तर धरा, भाटी झेलण भार।।
वचन रखा विजराव रा, समहर बांधै सार।।


रावळ विजैराव उमरकोट परणबा गयौ जद सासू तोरण आरती कर नै आसीस दियौ- भड़ किंवाड़ उतराध रौ’ बणज्यै सौ भाटियां उण बचन नै पीढीयां तांई पाळियौ।
इतिहास, ख्यात, बात री भांत इज जैसलमेर री कमठांण कळा भी राजस्थान में अजोड़ सिरमौड़ गिणीजै। जाळी झरोखां री कोरणी री छिब देस परदेस में अनुपम भणीजै। पटवां री हवेलियां इन्द्रलोक रै कारीगरां री कारीगरी री हौड साजै। कळा पारखियां रौ मन मोहै।
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