राजस्थान रा इतिहास रौ वेदव्यास-नैणसी

Gyan Darpan
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ठाकुर सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से............

राजस्थान री धरती सूरां वीरां री कर्तव्य भौम, प्रेम रा पुजारियां री रंग-थळी, साध-संतां री साधना स्थळी नै जती-मुनियाँ री भ्रमण भौम रैयी है। जुद्ध अनै प्रेम, हिंसा नै अहिंसा, भौतिक नै आध्यात्मिक कमाँ रौ अैड़ौ अेक-दूजा सूं मेळ किणी बीजा भूखण्ड में नीं मिलै। मरुथळ रै नांव सूं ओळखीजण वाळी आ धरती भांत-भांत रा विस्मयां रौ अखूट आगार, अणतोल भण्डार रैयो है। अठै अेक सूं अेक बधता जोधार-जूंझार, अेक सूं अेक बधता उदार-दातार, अेक सूं अेक बधता सम्रथ साध नै अेक सूं अेक बधता साहित-इतिहास रा सिरजणवाळा निपजिया है। अैड़ी नरां री खाण, प्रतंग्या री पाळगर, म्रजादा रै खातर मौत सूं गळबाथ घाळणियां सूरमां भौम में मुहणोत कुळ रौ सिरमौड़। आंटीला पण रौ आंक। निडरता रौ नाहर। साहस रौ सेर नै टेक रौ अेकल गिड़ बाराह नैणसी निपजियौ।


राजस्थानी इतिहास, साहित नै संस्क्रति रा, इण नंुवा वेद व्यास रौ जलम आज सूं साढे तीन सौ साल पैली ओसवाळ महाजनां रै मुहणोत गोत्र में १६६७ रै मंगसर मास रै चानणै पखवाडै री चोथ सुकरवार रै दिन हुवौ। नैणसी री माता रौ नाँव सरूपदे नै पिता रौ नांव जैमल्ल हौ। सरूपदे री कूख सूं नैणसी, सुन्दरदास, आसकरण अर निरसिंघदास चार भायां रौ जळम हुयौ। जैमल्ल री बीजी जोड़ायत सुहागदे सूं जगमाल नांव रौ अेक डीकरौ निपजियौ। इण भांत जैमल्ल रै पाण्डव जैड़ा पांच पुरसारथी बेटा हुवा पण उणां पाँचों में सगळा सूं सम्रथ, सबळा, कुळ री करत रा कळस, मरदांनगी रा मुगट, जग चावा, नांव कमावा, नैणसी नै सुन्दरदास हुवा। अेक सूरज तौ बीजौ चांद, अेक पारथ तौ दूजौ भींम। साहित रा सौदागर। जस रा ग्राहक। खळ-खेटां रा खेतरपाळ। कलम क्रपाण रा करामाती। सैणां रा साथी नै अणभावतां अण सुहावतां रा जड़ मूळ ऊपाड़। राड़ रा रसिया। खगाटां रै धकै अणभै धसिया। अैड़ा दो भाई नैणसी नै सुन्दरसी। पौरस रा पौरसा। सामध्रम रा सांपरत काळा गोरा भैरव।

ओसवाळां री मुहणोत साखा रौ निकास नौकोटि मुरधरा रा धणी राठौड़ां सू मानीजै। राठौड़ां रै आद पुरख राव सिया (सं. १३००-१३३०) रै पड़पोतै राव रायपाल रै चौथै सुत मोहण सूं मुहणोत गोत्र रौ चलण कहीजै। कहणगत है कै मोहणजी सिकार में अेक हिरणी मारी। बा हिरणी भारी पेट हुंती। मरती वेळ अेक बचियौ हुवौ। बचियौ पांखा बाहर होतौ इज दूध रै खातर हिरणी रा थणां नै थबोड़बा ढूकौ नै हिरणी रौ हंसली उड गयौ। माटी हुई लास धरती माथै जाय पड़ी। इण चकाबा नै देख मोहणजी रौ हियौ उझळ पड़ियौ। दया रौ दरियाव ज्वार भाटा रौ रूप ले लियौ। बाळमीक रै कराँकुळ पंखेरुवा री मौत रै समान मोहणजी पिछताबा लागा नै उठै इज आप रौ सिकार रौ सराजाम नांख नै अहिंसा भाव धार लियौ। पछै जैनाचारज जती सिवसेन रै संग नै उपदेस सूं प्रभावित व्हैनै १३५१ री साल जैन धर्म अंगेजलियौ। जद सूं राठौड़ मोहणजी रामपालोत री ओलाद मुहणोत ओसवाळ बाजबा लागी।

मोहणजी रै सुभटसेण हुवौ। सुभटसेण जदपि महाजन जात में जनमिया पण उणां रा संस्कार नै प्रक्रत राजसी हुंती। बै विणज, व्योपार रै कारबार री ठौड़ आपरै नैड़ै रा सासक भाई राव कन्नपाल राठौड़ महेवा (खेड़) रा धणी री प्रधानगी रौ काम संभाळियौ। सुभटसेण संवत १३७१ रै लगै ढगै देही त्यागी। पछै क्रमवार महेस, देवीचन्द, सादूळ, नगराज अर सूजौ हुवा। मोहणोतां री इणां दस चार पीढ़ियां री घणी विगत, हाल चाल नीं मिलै । इणरी छाण-बीण इतिहासां-ख्यातां रा पंडितां -पांगियां नै करणौ जोग है। पण, ख्यातां में मेघराज री विगत में ओ मिळे है कै राठौड़ मंडोर री ठोड़ जोधपुर नै आप रौ रायथान थरपियौ जद मेघराज संवत १५२६ रै सईकै जोधपुर कोट री तळेटी में आपरै रहवास री हेली बणाई ।

सूजा रौ जायौ अचळौ हुवौ। अचळौ आपरी रहणी-करणी, सामधम, हिम्मत दिलेरी नै समझै सयणप में टणकौ कहीजियौ। जोधपुर रा रावचन्द्रसैण ओगै घणौ मानीजियौ। रावजी री मूंछ रौ बाळ नै आघमान रौ धणी हुवौ। चन्द्रसेन रा विखा में डील साथै छांवळीं री रीत साथ रैयौ। विपत्त में कदै छेह नी दियौ। आपत सूं अळसायौ नीं। कष्टां सूं कुमळायो नीं। धकचाळा सूं घबड़ायौ नीं। सेल अणी री भांत सदा ऊंचौ होसलौ राखियौ। अन्त में १६३५ री सांवण बद ईग्यारस रै दिन सोजत रै पाखती सवराड़ गांव रै झगड़े में राव चन्द्रसेण री हिमायत करतौ थकौ जैमल नैतसियोत उहड़ समेत अकबर रै सेनानायक सैयद हासिम नै सैयद कासिम री फौज सूं जूंझ नै काम आयौ। अचळा री वीर मौत रौ बरणन कविसरां घणौ कियौ है। अठै साख रूप में जूनी दो ओळियां बांचीजै

नेस तजै चन्द्रसैण नीसरे, देस मरण छळ दीठो।
अचळ प्रसाद पडंतै अचळो, नांखे खयंग नतीठो।।

इण तरै अचळो इण संसार में आपरी कोरत नै अचळ-अडग बणाय नै जसनामो कियौ।

अचळा रौ बेटौ जैसौ हुयौ। जैसौ आरण-अखाड़ां रौ सांप्रत मल्ल इज हुवौ। घणी झगड़ायती ठोड़ां री देखरेख किवी। जैसा रौ बेटौ जैमल्ल हुवौ। जैमल्ल रौ जळम ३१ जनवरी, १५८२ ई. रै साल हुवौ। बादसाह जहांगीर रै समै जोधपुर रा धणी सूरसिंध री तरफ सूं जैमल्ल सन् १६०६ री साल पट्टण सरकार रै बड़नगर री हाकमी किवी। १६१५ ई. तांई जैमल्ल उठा रौ हाकम रैयौ। पछै राजा सूरसिंध रै फलोधी पट्टे हुई तद सूरसिंघ जैमल्ल नै फलोधी री हाकमी दिवी। जठा पछै राजा गजसिंघ रै समै जालौर रौ आखो भर-भार जैमल्ल नै सौंपीजियौ। जैमल्ल जैड़ौ जबरौ इन्तजामी मांटी हुवौ उणी बरौबर लड़ैतौ जोध भी हुवौ। साहजहां रै समै नवाब महावतखां रै उपद्रव रै कारण भेजियोड़ी सेना रौ सेनापत जैमल्ल इज बणायौ गयौ। पछै सूराचन्द, पोकरण, राड़घरा, महेवा माथै फौज कसी करनै उणां सूं डंड लेय अर जोधपुर हेटै घालिया। जठां पछै सिंघवी सिरैमल अर जैमल नै देस दीवाण रौ पद दियौ गयौ। उण रै पछै जैमल्ल राव अमरसिंघ नागौर री दिवाणगी पांच साल तांई किवी। जैमल्ल घणा मिन्दरां री मरम्मत कराई नै उणाँ में प्रतिमावां री थापना किवी। गिरनार, आबू सेत्रुजा तीरथां री जात्रावां किवी। इण भांत लोक हितां रा घणा लूंठा काम करिया। जैमल्ल रै देवलोक हुवां पछै उणां नै चितारतां थका कह्यौ है-

परालब्ध पलट्या परा, दीजै किण नै दोख।
जैमल्ल जलेबी ले गयो, साधां करो संतोख।।
जैमल्ल रै पछै नैणसी अर सुन्दरदास पांच भाई हुवा। अेक छप्पै में मुहणोतां री पीढ़िया इण भांत बखाणी मिळे-
धुर धूहड़ रायपाळ तास मोहण बळ रक्खण।
सुभटसैण माहेस वळे देवीचन्द विचक्खण।।
सादूळ देवीदास खेत अमरो मेहराजण।
सूरचन्द अर भोज काळ बखतो मोहण।।
सांवता नगौ सूजौ सगह अचळौ जस-खाटण अचड़।
तिण वंस तिलक जैमाल तण, नैणसी सुन्दर निवड़।।

नैणसी आप रा जुग रौ धाड़-फाड़ पुरख हुवौ। जठै उण जुद्धां में घणा प्रवाड़ा खाटिया उठै मारवाड़ री विगत नै नैणसी री ख्यात जैड़ा दोय महताऊ ग्रन्थ लिखिया। ख्यात में राजस्थान रा सीमाड़ाँ नै बीजा राजपूत वंसा रौ इतिहास नै रैयत री राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक हालत रौ आछौ ओपतौ वरतांत लिखियौ। नैणसी राजवंसां रा इतिहास रौ बोईज काम कियौ जिकौ रघुवंस रै इतिहास खातर वालमीक नै कवि किरीट कालीदास कियौ नै द्वापर में महाभारत रचनै वेदव्यास कियौ। पातसाह अकबर रै इतिहास तांई अबुलफजल कियौ। मारवाड़ रा पड़गना री विगत तौ नैणसी री कीरत रौ अखैबड़ इज गिणीजण जोग है। मारवाड़ इज नीं ढूंढाड़, माड, मेवाड़, बागड़. हाड़ौती किणी भी ठोड़ नैणसी री जोड़ रौ नर रतन नीं जळमियौ। बणियाणी जाया तो कांई राणी जायां में भी नैणसी जोड़ नै कोई नीं पूगै-सांच मानौ-‘राणियां रा जायोड़ां सूं बणिया विशेष है।’ नैणसी माथै सवा सोळा आना सही उतरै है। जद इज तौ कविसरां कहयौ है-

बीजौ नको वीकपुर बूंदी, ढाल उथाळ नको ढूंढाड़।
जैमल रा सारीखां जोड़ा, मारू नको नको मेवाड़।।

ख्यात अर विगत रै पछै नैणसी रौ खास काम तौ जोधपुर राज री सेवा चाकरी रौ हौ। उण समै उणाँ री नामवरी नै मानतान रौ कारण राज री सैवा रौ काम ही इज हौ। नैणसी महाराजा जसवंतसिंघ रै बखत दिलजान सूं जीव झोक नै राज री पैदास री बधोतरी रौ काम कियौ। राज सेवा में नैणसी रौ पैलापहल नांव महाराजा गजसिंघ रै समै १६८६ में मगरा रा मेरां रा गौधमधाड़ नै भेटण रै रूप में मिळे। नैणसी मेरां पर चढ़ाई कर नै मारिया-कूटिया नै उंणा नै ठिकाणै लगाया। पछै १६६४-६५ री साल फळोधी पर बलोचां री खेड़ पर धावौ मारनै उणां पर विजै पायी। बळोचां नै सर करणै सूं नैणसी री भली ख्याति हुई। उणरै पछै तो नैणसी रा नांव सूं मारवाड़ में हिरण खोड़ा हुवण लागा। जिका ठिकाणा मातै फौजकसी करी जीत इज हुई। संवत १७०० में राड़धड़ा रा धणी रावळ महेसदास महेचा पर चढ़ाई करनै उणनै पराजित कियौ नै उण री ठौड़ रावळ जगमाल तेजसिंघोत नै राड़धरा माथै थापियौ। इण भांत मालाणी रा सरजोर आपी-थापी सावंतां री ताकत तोड़नै उणांनै दरबार रै पगां लगाया।

नैणसी नै सुंदरदास नै संवत १७०५ विक्रम में सौजत रै गांव कूकड़ा, कराणा नै मांकड़ पर धावां मारनै उठै कूकड़ा बुलाय दिया। उठारा रावत नारायणदास नै हराय नै उठा सूं बारै काढ़ियौ। इण भांत मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ खूंटा सा रुपियोड़ा, राज सूं बारोठिया बैवण वाळा जागीरदारां रा खूट-बूंठ ऊपाड़ नै राज जमायौ।
संवत १७०६ में साही हुकम सूं महाराजा जसवंतसिंघ री तरफ सूं मारवाड़ री फौज जैसलमेर माथै गई नै रावळ सबळसिंघ नै जैसलमेर माथै बैठाणियौ। इण चढाई में रियां रौ धणी गोपाळदास मेड़तियौ, पाली रौ ठाकर विठळदास चांपावत, मुंहणोत नैणसी नै आसीप रौ सरदार नाहरखांन फौज रा आगीवांण हा। पछै पौकरण विजै पर जसवंतसिंघजी नैणसी नै सिरोपाव देय नै पौकरण री थाणादारी सौंपी।
कविराज बांकीदास री ख्यात रै कहणै माफक पतौ चालै कै नैणसी बाड़मेर नै फतै करनै उठां री पोळ रा किंवाड़ जालौर लेगयौ। नैणसी देवड़ा रै राज सिरोही नै विजै करणै रौ भी अेक छप्पै में बरणन मिलै है-

थह सूतो भर घोर करतो सादूळो।
उनींदो ऊठियो वडा रावतां सझूळो।।
पोहतौ तीजी फाळ त्रिजड़ हाथळ तोलंती।
मेछ दळां मूगळां घात सीकार रमंतो।।
मारियो सिरोही मुगल मिळ, खड़ग डसण धड़छै खळै।
गड़ड़ियौ सिंध जैमाल रौ, नैणसी भरियौ नळे।।

छपै में नैणसी रौ सिंघ रै साथ ओपतौ रूपक बांधियौ है। सिरोही में मुसलमानां नै मारणै रौ औ बरणन इतिहासां में नी हुवौ है।
पातसाह साहजहां रै सायजादां रै बनारस, उजीण नै धोलपुर रा झगड़ां पछै महाराजा जसवंतसिंघ मियां फरासत नै राजकाज सूं हटाय नै नैणसी नै दीवाणगी दिवी नै सुंदरदास नै आपरौ तन दीवाण बणायौ। जुवराज प्रिथीसिंघ री भणाई पढ़ाई रौ भार भी नैणसी रा कंधां माथै सौंपिजियौ। नैणसी आप री चात्रगता, अकल हुसियारी सूं मारवाड़ रौ आछौ इंतजाम बांधियौ। कुबधी-कुपैड़ी मिनखां री चालां मेटी। राज री आमद में बधौतरी किवी। भौम-लगाण, रेख-चाकरियां आद रा कायदां रौ पालण करायौ। इण सूं राज रा ठगां, चोरां नै छळ छेतरगारां री चालां रै ताळा जड़ीजग्या। नैणसी रै कारण जिणां लोगां री सूक, रिसबत नै ठगाई बंद व्हैगी ही बै सगळा नैणसी सुंदरदास नै कद चावता । चोर नै कदै चानणौ भावै ? नीं राजा रै तो कान हुवै आंख नीं हुवै सौ जिणां लोगां री खजणोटी बंद व्हैगी ही बै लोग मिळ नै लौटे लूण गाळियौ। महाराजा जसवंतसिंघ रा कान भरणै लागा। कान भरणियां जबरा हुवै है। जियां लहराता फूलां री बाड़ी रा सौरम बिखेरता फूलां नै वायकंुड उडाय नै धूळघाणी कर नांखै उणी रीत चुगली-चाडी चाट-चमचा लोग आपरी वाणी री करामात सूं सतपुरसां रा मनां में भरम रौ जुरड़ौ घाल देवै। सावचेत मिनखां नै भी भ्रम री चकरी चढाय देवै। सौ महाराजा जसवंतसिंघ रा कान लगा मिनखां उणां रै चित में नैणसी सुंदरदास रै बाबत कूड़-कपट करनै लोभ री लाय लगाय दी। फळ औ निकळियौ कै जसवंतसिंघजी १७२३ रै संवत में नैणसी सुंदरदास नै दखिण रै औरंगाबाद तेड़ नै अेक लाख रुपया रौ डंड घाल दियौ। पछै इयांही हांम सांच चालती रैयी। आखर चाडीगारां रा चकर में आयोड़ा आखता हुवा दोनों भाई १७२७ रै भादवा में अपघात करनै काम आया। नैणसी सुंदरदास री इण अणायी मौत रौ समझदारां घणौ दुख कियौ। महाराजा नै खुलौ ओळंमो दियौ।
पण कबाण सूं तीर छूटियां पछै कांई हुवै। तांबौ दैण तलाक री प्रत्यंगा रा धणी दोनूं भाई मारवाड़ सूं कोसां अळगा जीव त्याग नै परा गया। महाराजा जसवंतसिंघ री इण सूं बड़ी अपकीरत हुई। नैणसी सुंदरदास री सामध्रमी नै सांच माथै घणा गीत कवित मिलै। उण री निरदोषता अेक गीत में सुणीजै-

महाराज जैसा इसा क्यूं मारिजै, सूरवर आभरण नैणसी सूर।।

नैणसी रा दो ब्याह हुवा। पैलौ भंडारी नारायणदास री बेटी संू नै दूजौ मेहता भींवराज री सुता सूं। भींवराज री बेटी री कूख सूं करमसी, वैरसी नै समरसी तीन बेटा हुवा। करमसी भी आपरा पिता रै जैड़ौ इज वीर हुवौ। उजीण रै जुध में करमसी घावां पड़नै ऊबरियौ। करमसी रै भगवतसी नै उण रै सूरतराम हुवा। सूरतराम राजाधिराज बखतसिंघ रै समै राज रा फौजबक्षी हुवौ। दोय पीढ़ियां रै पछै मुंहणोतां रा दिन पाछा बावड़ नै घरै आया। विपदा रा काळा बादळ फंटिया। मारवाड़ रा अेक मानैता घराणा री जिकी रापटरोळ हुई इतिहासकारां सूं छांनी नीं हैं। ‘‘घर रौ दाझ्यौ बन गयौ, बन में लागी लाय’’ सो नागौर में भी नैणसी रै कुटम्ब कबीला में बीती जिसी तो किणी इज में नी बीतै। लाख रौ घर खाक में मिळग्यौ। करमसी नै भी लार पड़ियौ काळ-केड़ौ खाय नै लार छोड़ी। दिन करै जैड़ी दुसमण भी न कर सकै।
सूरतराम कठैई जाय नै पछै पाछा थागड़ा हुवा। आपो संभाळियौ। राजाधिराज बखतसिंघ री क्रपा हुई। सूरतराम पाछा जोधपुर आय नै आपरी बेटियां रौ ब्याव जोधपुर में कियौ। बीजा नैणसी इज बाजिया। राजदरबारां में चावा हुया। कवेसरां रा कंठां में गायीजिया। ‘सूरतराम रूपक’ कायब में कह्यौ है-

जैमल सुत गुणजाण, ब्रमै मंत्री नैणागर।
दळथंभ सुंदरदास, सकज खागां बुधसागर।।
नैणा सुतन नरनाह, सबळ करमैत प्रथीसर।
सत दत कोट संग्राम, मही सिंणगार मित्रैसर।।
भगवंतसिंघ ओठंभ भड़ां सत भाखण बुध सक्खरां।
जोधाण सहर चाढ़ण सुजळ सूरतराम मित्रेसरां।।


ओसवाळां में मोहणोत पिरवार वडौ सामघ्रमी, बचनवीर पुरसारथी अर करतब धणी हुवौ। बात री पकड़ अर सांच पर अकड़ इण खानदान रौ गुण रैयौ है। विखमी वेळां में नेही सनेहियां री मदत अर पर पीड़ में साथ देवणौ मिनखपणा रा गुण नैणसी री औलाद में चालै।
इण भांत मुंहणोत कुळ जोधपुर रौ अेक नामाजादिक कुळ रैयौ है। राजकाज रै साथै-साथै विधा, कळा, साहित, इतिहास नै पनपावण में सगळा रौ मेढ़ीं कह्यौ जा सकै है। नैणसी नै सुंदरदास तौ आप रै जुग में भी अजोड़ मिनख बाजिया। कलम नै क्रपाण रा धणी-लेखण नै खड़ग रा करामाती बेहूं भायां नै लाख-लाख घन। क्रीड़-कोड़ रंग।

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