जिन अख़बारों को सामाजिक सरोकार नहीं उनका बहिष्कार करे

Gyan Darpan
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कांग्रेस के चिंतन शिविर में जबरदस्ती घुसकर अपनी मांगों को लेकर सोनिया गाँधी से सीधे बात करने की करणी सेना के नेता लोकेन्द्र सिंह कालवी जो कांग्रेस नेता भी है द्वारा धमकी के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने लोकेन्द्र सिंह कालवी की करणी सेना के सैनिकों द्वारा चिंतन शिविर में किसी भी तरह की अव्यवस्था फैलाने को रोकने के लिए जहाँ एहतियात के तौर पर करणी सेना के कई नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया वहीं परदे के पीछे लोकेन्द्र सिंह कालवी से अपना आंदोलन रोकने या स्थगित करने व शिविर में किसी भी तरह का व्यवधान रोकने के लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सद्भावना चर्चा की व आज इसमें कामयाब भी हुए जब लोकेन्द्र सिंह कालवी ने अपना आंदोलन स्थगित करने की घोषणा की ताकि आगे उनकी मांगों पर वार्ता हो सके|

ज्ञात हो श्री राजपूत करणी सेना आर्थिक आधार पर स्वर्ण जातियों को आरक्षण में समानता देने, जोधपुर में स्थापित हो रहे एम्स का नाम वापस मीरां के नाम पर करने, प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में हुई राजपूत युवकों की हत्या व उन पर हुए हमलों की सीबीआई जाँच करवाने, दिल्ली के कश्मीरी गेट पर स्थापित महाराणा प्रताप की प्रतिमा जो मेट्रो द्वारा हटा दी गई को वापस ससम्मान स्थापित करने की मांग कर रही है|

पर प्रदेश सरकार द्वारा करणी सेना के आंदोलन को दबाने हेतु जिस तरह कालवी को नजरबन्द किया या भूमिगत किया व करणी सेना के कई अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया उसके बाद करणी सेना के प्रदेशभर के सैनिकों में रोष व्याप्त हो गया और प्रदेश भर में सरकार के इस कदम के विरोध में करणी सेना कार्यकर्ताओं ने धरने प्रदर्शन किये व ज्ञापन देकर अपना रोष प्रकट किया| कल भी सोशियल मीडिया पर प्रदेश के बहुत से नगरों में करणी सैनिकों के रोष व्यक्त करते हुए तस्वीरें व समाचार देखे गये| पर आज सुबह जोधपुर में जब प्रदेश के दो बड़े अख़बारों राजस्थान पत्रिका व दैनिक भास्कर को देखा तो उनमें करणी सैनिकों द्वारा कल विभिन्न नगरों में किये विरोध प्रदर्शनों की एक लाइन भी पढ़ने को नहीं मिली|

इससे पहले भी करणी सेना द्वारा जयपुर में १३ जनवरी को आयोजित राजपूत स्वाभिमान सम्मलेन जिसमें पचास हजार से ज्यादा भीड़ थी को भी राजस्थान के इन दोनों बड़े अख़बारों ने वो कवरेज नहीं दी जो एक विशाल सम्मलेन को मिलनी चाहिए थी| एक टी.वी. चैनल ने तो प्रदेश भर से बसों में भर कर आई इतनी बड़ी भीड़ को अपनी खबर में भी दिखाना उचित नहीं समझा जबकि यही चैनल कहीं दो चार हजार लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाए तो उनको दिखाने के लिए उनके आगे पीछे पगलाया रहता है|

चिंतन शिविर में कोई अव्यवस्था ना हो इसके लिए सत्तारूढ़ दल द्वारा अपनाया व्यवहार तो समझ आता है, कोई भी दल अपने आयोजन को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना चाहता है इसलिए सरकार ने एक और जहाँ कुछ गिरफ्तारियां की वहीं करणी सेना नेता के साथ सद्भावना वार्ता भी जारी रख उन्हें आंदोलन स्थगित करने के लिए मनाया पर सामाजिक सरोकारों का दम भरने वाले इन बड़े अख़बारों द्वारा करणी सैनिकों के विरोध को नजरअंदाज कर न छापना शक पैदा करता है कि – “क्या ये बड़े अखबार भी सामाजिक सरोकार छोड़कर सरकारों के हाथों मैनेज तो नहीं होने लगे ?

करणी सेना के इस आंदोलन को प्रदेश के बड़े अख़बारों व प्रदेश के एक टी.वी.चैनल द्वारा तरजीह न देना भले ही सरकार द्वारा मैनेज हो या इन मीडिया घरानों की राजपूत समाज के प्रति उदासीनता | दोनों ही परिस्थितियां चिंताजनक है और यदि आगे भी इन मीडिया घरानों का ऐसा ही व्यवहार रहता है तो समाज द्वारा इन मीडिया घरानों का बहिष्कार करना चाहिए|

मीडिया और बड़े अख़बारों की इस उदासीनता के खिलाफ समाज के लोगों में काफी रोष है फेसबुक सहित अन्य सोशियल मीडिया में समाज के कई प्रबुद्ध जनों द्वारा मीडिया द्वारा राजपूत समाज के प्रति किये गये इस तरह के पक्षपाती व्यवहार पर रोष व्यक्त किया है|साथ ही अपनी आवाज बुलंद करने के लिए समाज के लोगों द्वारा अपने अखबार शुरू करने की आवश्यकता पर भी जताई है|

जो टी.वी चैनल हमारी आवाज नहीं बन सकता वह हमारे घरों के टेलीविजन में खुलना ही नहीं चाहिए और जो अखबार हमारी आवाज नहीं बन सकते, हमारे कार्यक्रमों की सूचना आम जन तक नहीं पहुंचा सकते, हमारा रोष सरकार के कानों तक नहीं पहुंचा सकते, जो अपने सामाजिक सरोकार को निभाने के कर्तव्य को नहीं निभा सकते उन्हें हमें अपने घरों में आने से एकदम बंद कर देना चाहिए|

ज्ञान दर्पण.कॉम के माध्यम से मेरी समाज के लोगों से अपील है कि आगे भी समाज द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की ख़बरों को कौन कौन अखबार व मीडिया हाउस तरजीह देता है या नहीं उस पर पैनी नजर रखें व तरजीह न देने वाले अखबार व टी.वी. चैनल का सामूहिक बहिष्कार करें| साथ ही समाज के सभी कार्यक्रमों की सूचनाएँ जन जन तक पहुँचाने के लिए ब्लॉगस व सोशियल मीडिया का उपयोग कर इस कमी की भरपाई करने के साथ ही इन मीडिया घरानों की समाज के प्रति उदासीनता उजागर करें|

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15टिप्पणियाँ

  1. सामाजिक सरोकार न रखने वालो का बहिस्कार होना ही चाहिए,,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  2. अखबार, टीवी सब सरकार के सेट किये हुये रहते हैं. आपने उपाय तो सही सुझाया है, बस अम्ल में लाने की जरूरत है.

    रामराम.

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  3. मीडिया जिसे चाहता है, उसी को उठाता है. अब चाहता किसलिये है, ये पता चल जायेगा उनकी मालिकान की जानकारी से.

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  4. आप से सहमत.
    ऐसे चेनल्स और समाचार पत्रों का बहिष्कार होना ही चाहिए.

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  5. समाज को स्थान मिले समाचारों में..

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  6. ख़बरों को बिना किसी भेदभाव जनता तक पहुँचाया जाना चहिये......... यह मीडिया की जिम्मेदारी है और आमजन का अधिकार ........

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  7. मीडिया के ऐसे गैर जिम्मेदार रवैये से आम जन की आवाज कुंद होने लगी है ।निश्चित ही बहिस्कार करना चाहिए ।

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  8. अख़बार और टीवी वालो को कांग्रेस के गुणगान से ही फुर्सत नहीं .

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  9. सूजो टी.वी चैनल हमारी आवाज नहीं बन सकता वह हमारे घरों के टेलीविजन में खुलना ही नहीं चाहिए और जो अखबार हमारी आवाज नहीं बन सकते, हमारे कार्यक्रमों की सूचना आम जन तक नहीं पहुंचा सकते, हमारा रोष सरकार के कानों तक नहीं पहुंचा सकते, जो अपने सामाजिक सरोकार को निभाने के कर्तव्य को नहीं निभा सकते उन्हें हमें अपने घरों में आने से एकदम बंद कर देना चाहिए|

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  10. .
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    सही है सा.. आपने बहुत अच्छे विषय को लेकर सही प्रतुतिकरण किया है ..
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    राजनीति और आर्थिक व्यवस्था सहयोगी मात्र है इनको प्राथमिकता देना, सामाजिक व्यवस्था का पतन करना करवाना है.. इन दोनों पर सामाजिक इकाई की प्रबलता से ही राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति को मजबूती की ओर बढाया जा सकता है.. प्रत्येक क्षेत्र में हमें यही आंकलन लेकर आगे बढना हितकर होगा..
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