Rao Duda Mertia मेड़ता का शासक राव दूदा : बीका के पास जांगलू जाना Part-4

Gyan Darpan
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भाग 3 से आगे। .......

दूदा का रायण अनन्तर बीका के पास जांगलू जाना-

दोनों भाइयों के पारस्परिक सहयोग तथा परिश्रम से सम्पूर्ण मेड़ता परगना आबाद हो गया। चूंकि मेड़ता के आसपास के क्षेत्रों का एकीकरण कर उसे एक सूत्र में बांधने का श्रेय दूदा को ही था, फिर युद्धों में भाग लेकर विजय प्राप्त करने में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही थी । इसलिये प्रसिद्धि की ओर अग्रसर होने वाली दूदा की यह गतिविधियाँ संभवतः वरसिंह को रुचिकर नहीं लगी होंगी क्योंकि उसे यह भ्रम था कि कहीं दूदा मेड़ता का शासक न बन बैठे। अतः उसने भावी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दूदा को अलग रांयण की जागीर प्रदान कर दी । अतएव दूदा सपरिवार रायण जाकर बसा । दूदा बड़ा उदार प्रकृति का व्यक्ति था । अतः रांयण जैसे छोटे ठिकाने में उसका निर्वाह होना कठिन हो गया । इसलिये कुछ समय बाद वह अपने भाई राव बीका के पास जांगलू जा कर रहा और काफी लम्बे समय तक वह वहीं रहा । दूदा ने अपने पिता राव जोधा के पास जोधपुर जाना संभवतः इसलिये उचित नहीं समझा क्योंकि राव जोधा द्वारा पहले से ही दूदा को वरसिंह के साथ मेड़ता प्राप्त हो चुका था, फिर अलग से जागीर की याचना करना उसने उचित नहीं समझा होगा।

ख्यात ग्रन्थों में वरसिंह एवं दूदा के बीच वैमनस्य होने का उल्लेख हुआ है किन्तु मनमुटाव का क्या कारण था इस पर प्रकाश नहीं पड़ता। जयमल वंश प्रकाश में लिखा है कि राव बीका द्वारा आमंत्रित किए जाने पर दूदा बीकानेर गया । परन्तु विश्नोई कवि हरिनन्द के कवित्त में प्रकट होता है कि वरसिंह द्वारा निकाले जाने पर दूदा बीकानेर गया ।

दूदा और जाम्भोजी-


विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक जाम्भोजी के साहित्य से प्रतीत होता है कि दूदा की जांगलू (बीकानेर) जाते समय पींपासर ग्राम में एक सिद्ध पुरुष से भेंट हुई। दूदा उसके चमत्कारों से बहुत प्रभावित हुए और दूदा ने उसका नाम जाम्भेश्वर रखा। यद्यपि उस समय जाम्भोजी ने दूदा को मेड़ता प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया था। लेकिन वह अपने भाई वरसिंह से मेड़ता हस्तगत करने के लिये पुन: मेड़ता नहीं गया और उसने जांगलू जाना हो उचित समझा। डॉ. हीरालाल माहेश्वरी ने जाम्भोजी सम्प्रदाय एवं स्वामी ब्रह्मानन्द के मतानुसार इस घटना का समय ई. सं. 1462 (वि.सं. 1519) स्वीकार किया है। जो ठीक प्रतीत नहीं होता क्योंकि विगत के अनुसार वि.सं. 1518 चैत्र सुदि 6 (1519 चैत्रादि) (ई.सं. 1462) में वरसिंह एवं दूदा ने मेड़ता में गढ़ की नींव दी । उसके बाद 2-3 वर्ष उन्हें मेड़ता आबाद करने में लगा होगा । फिर जब वरसिंह तथा दूदा में मनमुटाव हो गया तो फिर दूदा मेड़ता परित्याग कर रायण ग्राम में रहने लगा। वहां पर जब उसका जीवन निर्वाह नहीं हुआ तब बीका के पास जांगलू जा कर रहा। जांगलू जाते समय पींपासर ग्राम में उसकी भेंट जाम्भोजी से हुई। इन सब घटनाओं को घटने में 3-4 वर्ष का समय तो लगा होगा। अतएव वि.सं. 1523 (ई.सं. 1466) के पूर्व दूदा का जाम्भोजी से मिलना उचित जान नहीं पड़ता ।

बीकानेर की स्थापना और दूदा द्वारा कांधल की मृत्यु का प्रतिशोध-

राव बीका ने अपने चाचा कांधल आदि योद्धाओं की मदद से जांगलू पर अधिकार कर ई. सं. 1488 (वि.सं. 1545) में बीकानेर नामक नवीन राजधानी स्थापित की। दूदा की भी इसमें भागीदारी रही। कांधल ने एक बार हिसार में अत्यधिक लूटमार की जिससे वहां के सूबेदार ने उस पर आक्रमण कर दिया । यद्यपि कांधल ने बड़ी वीरता से शत्रु सेना का मुकाबला किया लेकिन अन्त में वह मारा गया। राव जोधा, बीका एवं दूदा ने कांधल की मृत्यु का प्रतिशोध लेने हेतु सारंगखां पर ससैन्य चढ़ाई कर दी। झांसला ग्राम के निकट दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमें सारंगखां मारा गया और उसकी सेना परास्त होकर भाग गई। इस संग्राम में दूदा ने अद्भुत वीरता का परिचय दिया । यह घटना वि.सं. 1546 में घटी होगी ।

क्रमशः। ..................................


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