Rao Duda Mertia मेड़ता का शासक राव दूदा : मेघा सींधल का वध : Part-2

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 भाग -१ से आगे। .......

दूदा द्वारा मेघा सींधल का वध-

राज्य आश्रित चारण कवि राजाओं को पुरानी ऐतिहासिक बातें सुनाया करते थे जिससे न केवल मनोरंजन होता था अपितु राजाओं को अपने पूर्वजों के इतिहास की भी जानकारी प्राप्त होती थी। एक दिन ऐसे ही चारण बातपोश ने राव जोधा को अवगत कराया कि राठौड़ों एवं भाटियों में वैर बहुत पुराना था परन्तु भाटियों ने अपनी पुत्री राव रणमल को प्रदान कर वैर समाप्त किया और उसी भटियानी माता कोड़मदे से आपका जन्म हुआ। लेकिन सींधल राठौड़ों से अपना वैमनस्य अब भी बना हुआ है क्योंकि जैतारण के स्वामी मेघा के पिता नरसिंह ने राठौड़ आसकरण सतावत का वध किया था । राव जोधा ने दूदा की परीक्षा लेने हेतु उसे मेघा पर जाने का आदेश दिया। पिता की आज्ञा प्राप्त कर दूदा ने जैतारण पर चढ़ाई कर दी। सींधल राठौड़ उस समय मेघा के पुत्र की बरात में गये हुए थे लेकिन मेघा वहीं उपस्थित था। उसने दूदा से अनुरोध किया कि मेरे सरदार बरात से लौटें तब तक आप युद्ध न करें। किन्तु दूदा ने बड़े धैर्य से उत्तर दिया कि हम व्यर्थ में अन्य लोगों को क्यों मरवावें । वैर अपने बीच है अत: हम परस्पर लड़ लें। इस पर दोनों पक्ष के योद्धा दर्शक के रूप में खड़े रहे। वीरवर दूदा ने पहले अपने शत्रु मेधा को वार करने का मौका दिया । मेघा ने बड़े वेग से दूदा पर तलवार चलाई लेकिन रणचातुर्य के बल पर दूदा ने अपनी ढाल से उसे रोक लिया। पाबूजी का नाम स्मरण कर दूदा ने तलावर के एक ही झटके से मेघे का सिर तन से जुदा कर दिया । दूदा की इस असाधारण वीरता से राव जोधा बहुत खुश हुए और उन्होंने दूदा को घोड़ा तथा सिरोपाव आदि उपहार प्रदान कर उसे सम्मानित किया । राव जोधा के पुत्रों में इस प्रकार का सम्मान पाने का सौभाग्य दूदा को प्राप्त हुआ।

यह घटना कब घटी इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। ठाकुर गोपालसिंह ने इस घटना का समय ई.सं. 1487 दिया है।  रेउ ने इसका प्रतिपादन किया है।  1487 ई. में दूदा की आयु करीब 47 वर्ष की थी । किन्तु डॉ. श्रीकृष्णलाल ने दूदा की छोटी अवस्था में सींधल मेघा का वध करने का उल्लेख किया है । डॉ. श्रीकृष्णलाल का तथ्य ठीक प्रतीत होता है क्योंकि 'मारवाड़ रा परगनां री विगत' के अनुसार 1462 ई. में दूदा ने मेड़ता की पुन: स्थापना की और कुछ समय बाद वह मेड़ता का परित्याग कर जांगलू बीका के पास रहा। वह 1493 ई. तक बीकानेर में रहा। अर्थात् 1462 ई. के बाद दूदा जोधपुर में नहीं रहा । नैणसी ने दूदा के जोधपुर में रहते हुए वहां से प्रस्थान कर सींधल मेघा को खत्म करने का उल्लेख किया है जो राजस्थानी भाषा में इस प्रकार है-

“प्रभाते दरबार बैठा छै तितरे कुंवर दूदे मुजरो कियो आयने । सुं दूदे सुं रावजी कमाय करता ताहरां कह्यो दूदा ! मेघो सींधल मारियो जोइजे”। अर्थात् सुबह दरबार जुड़ा हुआ था इतने में राजकुंवर दूदा ने जोधा के समक्ष मुजरा किया। जोधा दूदा से नाराज थे। तब रावजी ने कहा कि दूदा ! मेघा सींधल मारा जाना चाहिये । ” इस प्रकार यह कहना अनुचित नहीं होगा कि मेड़ता की स्थापना के पूर्व (1462 ई.) ही दूदा ने सींधल मेघा का वध किया था ।

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