Rati Ghati Yuddh : इतिहास के पन्नों में दबा भारत का गौरव "राती घाटी युद्ध"

Gyan Darpan
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राती घाटी का युद्ध भारत के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक होने के साथ ही यहाँ के वीरों के अदम्य साहस और रणनीति का परिचायक है | यह युद्ध भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बीकानेर में 26 अक्टूबर 1534 को लड़ा गया था, यह युद्ध बीकानेर राज्य की स्थापना के मात्र 45 वर्ष पश्चात् हुआ। इस युद्ध में बीकानेर के शासक राव जैतसी एवं ग़ज़नी और लाहौर के शासक तथा मुगल सम्राट बाबर के पुत्र कामरान के मध्य हुआ था जिसमें कामरान निर्णायक रूप से पराजित हुआ और बीकानेर की जीत हुई । 

यह युद्ध भारतीय प्रतिरोध के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है पर अफ़सोस इतिहास में यह अल्पज्ञात ही रहा | कारण इस युद्ध में मुगलों की निर्णायक हार हुई, बाकी आप समझ ही गए होंगे | 

डॉ. चक्रवर्ती जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार "राव जैतसी एक महान योद्धा और रणनीतिकार राव जैतसी ने अपने पिता के साथ अनेक युद्धों में भाग लिया था और वे अपने उत्कृष्ट सैन्य कौशल एवं रणनीति के लिए प्रसिद्ध थे। वे एक दयालु शासक थे और राष्ट्रीय घटनाओं पर उनकी गहरी दृष्टि रहती थी। उनके

शासनकाल को बीकानेर का स्वर्ण युग माना जाता है। मरुस्थलीय प्रदेश में भीषण अकालों के बावजूद उन्होंने पर्यावरण संरक्षण एवं जलस्रोत निर्माण पर विशेष ध्यान दिया। यद्यपि बीकानेर राज्य सुरक्षित था, फिर भी बाबर के मुगल साम्राज्य से खतरा बना हुआ था, जिसकी सीमाएँ अब बीकानेर तक आ पहुँची थीं।

खानवा का युद्ध और उसका प्रभाव 1527 में राणा सांगा और बाबर के मध्य लड़े गए खानवा के युद्ध ने राती घाटी के युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की। इस युद्ध में राव जैतसी ने अपने पुत्र कल्याणमल को 3000 घुड़सवारों सहित राणा सांगा की सहायता के लिए भेजा था। वे सेना के बाएँ मोर्चे पर तैनात थे और बाबर की तोपखाने पर नियंत्रण में सहायक सिद्ध हुए। इससे बाबर क्रुद्ध हुआ और उसने अपने पुत्रों को राव जैतसी को दंडित करने का आदेश दिया।

राती घाटी का युद्ध - एक भीषण संघर्ष 26 अक्टूबर 1534 को कामरान 25,000 प्रशिक्षित सैनिकों, सशक्त तोपखाने और 1,000 विशिष्ट अधिकारियों सहित लाहौर से चला और भटनेर पर आक्रमण किया। उसकी मारक क्षमता इतनी प्रबल थी कि कवि विठू सूजा ने लिखा कि भटनेर का किला बिजली से गिद्ध पक्षी के घोंसले की भाँति नष्ट हो गया। खेतसी काँधलोत और उनके 1,000 वीरों ने साका और जौहर किया। इसके पश्चात् कामरान ने बीकानेर के सौभागदीप (वर्तमान श्रीलक्ष्मीनाथजी मंदिर परिसर) दुर्ग को घेर लिया, जहाँ भोजराज जी रूपावत तथा 2,500 वीरों ने दिनभर वीरतापूर्वक प्रतिरोध किया। किन्तु रात्रि तक कामरान ने किले में प्रवेश कर विजय उत्सव मनाना प्रारंभ किया। राव जैतसी की रात्रिकालीन विजय राजपूतों ने पहली बार छापामार युद्धनीति अपनाई। कामरान की सेना के प्रवेश से पूर्व राव जैतसी ने समस्त नगर को खाली करा लिया। कामरान को एक सूना बीकानेर मिला। इस बीच राव जैतसी अपनी मुख्य सेना सहित गुप्त स्थान पर जाकर पलटवार की तैयारी करने लगे।

उन्होंने अपनी सेना को 108 दलों में बाँटा, जिनमें 54 राठौड़ सेनापति थे। उनके साथ मारवाड़, झाबुआ, ईडर और राजपुताना के अन्य क्षेत्रों के वीर सम्मिलित हुए। संख्या में कम होते हुए भी राव जैतसी की सेना में खानवा युद्ध के अनुभवी योद्धा सम्मिलित थे। उनका युद्धघोष 'राम- राम' था, जो बाबर द्वारा राम मंदिर के अपमान व विध्वंस के प्रत्युत्तर में दिया गया।

नई रणनीति- प्रतिचक्र व्यूह रचना राव जैतसी ने एक नई युद्धनीति अपनाई प्रतिचक्र व्यूह। उन्होंने रात्रिकालीन आक्रमण के लिए 13 से 17 वर्ष के युवाओं को, जयमल (जो आगे चलकर चित्तौड़गढ़ के युद्ध के नायक बने ) तथा अपने पुत्र कान्त के नेतृत्व में, कामरान की सेना में भेजा। इस अप्रत्याशित आक्रमण से मुगल सेना विचलित हो उठी। भयंकर युद्ध छिड़ गया। राव जैतसी की सेना ने मुगल पंक्तियों को भेदते हुए कामरान के शिविर तक पहुँच बनाई। मुगल सेनानायक आफताब ने कामरान को बचाने हेतु अपना बलिदान दिया। आलम चालम बेग की सलाह पर कामरान रणक्षेत्र से भाग निकला, किन्तु जाते-जाते चिंतामणि पाश्र्वनाथ मंदिर को तोपों से ध्वस्त कर दिया। मनोवैज्ञानिक युद्धनीति राव जैतसी ने मनोवैज्ञानिक युद्धनीति का भी उपयोग किया। उन्होंने आदेश दिया कि ग्रामीण अपने बैलों के सींगों पर मशालें बाँध दें। इससे दूर से ऐसा प्रतीत होता था मानो विशाल सेना आ रही हो। ऊँटों पर तीन-तीन मशालें बाँधी गई और ढोल-नगाड़े बजाए गए। यह दृश्य देखकर मुगल सेना भयभीत होकर भाग खड़ी हुई। परिणाम और विरासत इस निर्णायक विजय के पश्चात् राव जैतसी सौभागदीप दुर्ग लौटे और बंदी बनाई गई महिलाओं व पशुओं को मुक्त कराया। 

राज्यभर में कई दिनों तक उत्सव मनाया गया। किंतु राती घाटी के इस गौरवशाली युद्ध को इतिहास में वह स्थान नहीं मिल सका जिसका वह अधिकारी था। कवि विठू सूजा ने इस युद्ध पर 401 पदों की डिंगल रचना की थी, जिसे 1919 में डॉ. एल.पी. टेसीटोरी ने अंग्रेजी में अनूदित किया। 1990-91 में राती घाटी अनुसंधान एवं विकास समिति ने विस्तृत अनुसंधान प्रारंभ किया, जिसके परिणामस्वरूप इस युद्ध को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई। 2012 एवं 2017 में इसे राजस्थान के विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया । राती घाटी का युद्ध भारत की अदम्य भावना, साहस और राष्ट्रीय गौरव का अमर प्रतीक बना हुआ है।"


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