कैवाय माता दहिया वंश की कुलदेवी

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कैवाय माता दहिया वंश की कुलदेवी : आदि काल से शक्ति के उपासक क्षत्रियों के विभिन्न वंशों ने शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा की विभिन्न नामों से उपासना, आराधना की। भारतीय संस्कृति की संजीवनी रहे इसी शक्तिधर्म की परम्परा का निर्वाह करते हुए क्षत्रियों के 36 राजवंशों में शुमार दहिया क्षत्रिय राजवंश ने शक्तिरूपा माँ कैवाय माता को कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया और माँ की कैवाय माता के रूप में पूजा-अर्चना, उपासना की।

दहिया क्षत्रिय राजवंश के बारे माना जाता है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय पंजाब में सतलज नदी के पास इस वंश का गणराज्य मौजूद था। इतिहासकार देवीसिंह मंडावा के अनुसार “वहां इन्होंने एक किला बनवाया, जिसका नाम शाहिल था। जिसके कारण इनकी एक शाखा ‘शाहिल” कहलाई। मानते है कि सिकन्दर के समय ये द्राहिक व द्राभि नाम से प्रसिद्ध थे, फिर वहां से ये दक्षिण गये।”

दक्षिण के अलावा राजस्थान में भी परबतसर, मारोठ, नैणवा-बूंदी इलाके, जालौर, सांचोर, नाडोल, अजमेर जिले में सावर, घटियाली, मारवाड़ में हरसौर आदि कई क्षेत्रों में दहियाओं का राज्य था।

राजस्थान के नागौर जिले की वर्तमान परबतसर तहसील जिस पर कभी दहिया राजवंश का शासन था। इसी परबतसर कस्बे से छः किलोमीटर दूर किनसरिया नामक गांव की पहाड़ी पर, परबतसर के दहिया वंश के शासक राणा चच्च ने वि.सं. 1056 (999 ई.) के लगभग अपनी कुलदेवी कैवाय माता की प्रतिमा स्थापित कर देवालय बनवाया था। दधीचिक वंश के शासक चच्चदेव सॉभर के चौहान राजा दुर्लभराज (सिंहराज का पुत्र) का सामंत था। “वि.सं. किनसरिया गांव में 1056 बैसाख सुदि 3 (999 ई.) का राणा चच्च का एक शिलालेख मिला है जिस पर किनसरिया गांव में इस भवानी मंदिर के निर्माण का उल्लेख है।

ऊँची पहाड़ी पर बना कैवाय माता का देवालय सदियों से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने व जन-आस्था का केंद्र है। देवालय के खड़ी पहाड़ी पर होने के चलते दुष्कर चढाई से श्रद्धालुओं को निजात दिलवाने के लिए पक्की सीढ़िया बनवाई है। सर्पिलाकार मार्ग पर बनी 1141 सीढियों का प्रयोग कर भक्तगण अपनी आराध्य देवी के दर्शन करने आसानी से ऊँची पहाड़ी पर चढ़ कर दर्शन लाभ लेते है। प्राकृतिक सौन्दर्य की भव्यता लिये मंदिर के निमित्त छः हजार बीघा भूमि पर ओरण (अभ्यारण्य) छोड़ा हुआ है, जो एक और माता की और से पशुओं के लिये अपनी क्षुधा मिटाने के साथ स्वतंत्र रूप से विचरण करने हेतु चारागाह रूपी सौगात है, वहीं वर्षा ऋतु में छाने वाली हरियाली माता के दर्शन करने आने वाले भक्तगणों को नयनाभिराम मनोरम दृश्य उपलब्ध कराती है।

मुख्य देवालय में उत्तराभिमुख श्वेत संगमरमर से निर्मित कैवाय माता (ब्राह्माणी) की भव्य कलात्मक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। उसके समीप वाम पार्श्व में माता भवानी (रुद्राणी) की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की स्थापना के 713 वर्ष पश्चात अर्थात् वि.सं. 1768 (1712 ई.) में जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह द्वारा माँ भवानी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई। स्थापत्य की परिपक्व शैली में चतुर्भुज योजनान्तर्गत बने मंदिर की छत दो भागों में विभक्त है। चार सुदृढ़ खंभों पर 8 फूट ऊँचा गर्भगृह बना है। जहाँ पुजारी सहित भक्तगण पूजा अर्चना करते है। मंदिर के बाहर काला एवं गोरा भैरव की प्रतिमाएं भी लगी है।
दहिया क्षत्रियों द्वारा निर्मित यह देवी मंदिर सभी जाति व समुदायों के लोगों की आस्था का केंद्र है। विभिन्न जातियों के लोग कैवाय माता की अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा-उपासना कर अपने कल्याण की कामना रखते है। कैवाय माता को अपनी इष्टदेवी मानने वाले श्रद्धालुओं के परिवार में वंश वृद्धि के समय नवजात शिशु को माता के चरणों में लेटा कर उसकी दीर्घायु की कामना करते हुए जडु़ला उतराने की रस्म अदा करते है। यही नहीं नवविवाहित जोड़े भी माता के मंदिर फेरी (परिक्रमा) लगाकर पूजा-अर्चना कर सुखी दाम्पत्य जीवन की मन्नत मांगने आते है।

मंदिर को लेकर कई लोकमान्यताएं भी प्रचलित है। इन्हीं मान्यताओं के अनुसार मंदिर परिसर में सफेद कबूतर का दिखना शुभ माना जाता है। जिस श्रद्धालु को मंदिर परिसर में सफेद कबूतर नजर आ जाता है वह अपने आपको धन्य समझता है। नवरात्रा के समय मंदिर प्रांगण से आकाश में सात तारों का एक ही सीध में दिखना भी लाभदायक माना जाता है। इन्हीं मान्यताओं में एक मान्यता है कि मंदिर का जलता हुआ दीपक रात्री में मंदिर से निकलकर आस-पास की पहाड़ियों में परिक्रमा लगाकर पुनः मंदिर में आता है। भक्तों की मान्यता है कि दीपक को परिक्रमा करते देखना साक्षात देवी के दर्शन करना है।

डा. विक्रमसिंह भाटी के अनुसार (राजस्थान की कुलदेवियांय पृ. 95)- पुरातत्व की दृष्टि से किनसरिया धाम का अलग महत्व रहा है। 10 वीं से 16 वीं शताब्दी तक के महत्त्वपूर्ण शिलालेखों का यहाँ मिलना इतिहास की धारा को गतिमय बनाने में सहायक सिद्ध होगा। किनसरिया धाम की शिलाएँ लंबे समय से मौसम की हर मार सहते और उत्कीर्ण लेखों पर छेड़छाड़ होने के बावजूद मूक रूप से खड़ी है और लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर, अपना इतिहास दर्शन शिला पर उत्कीर्ण लेख के माध्यम से बतला रही है। शिलाओं पर उत्कीर्ण लेख लम्बे समय तक सुरक्षित रह पाना देवी का चमत्कार ही कहा जा सकता है।’’.

माता के दर्शन करने हेतु सड़क व रेल मार्ग से परबतसर होते हुए किनसरिया पहुंचा जा सकता है।

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