ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर ने लिखा है कि पहले दहिया राजवंश वाले पंजाब में सतलज नदी पर थे। ऐसा माना जाता है कि उस समय ये गणराज्य के रूप में थे। वहाँ से ये सतलज नदी के पश्चिम में भी फैले। यह माना जाता है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय ये वहीं थे। वहाँ इन्होंने एक किला बनवाया, जिसका नाम शाहिल था। जिसके कारण इनकी एक शाखा “शाहिल’ कहलाई। मानते हैं कि सिकन्दर के समय में ये द्राहिक व दाभि नाम से प्रसिद्ध थे, फिर वहाँ से ये दक्षिण में गए, जैसे मालवगण, अर्जुनायनगण और यौधेयगण आदि सिकन्दर के समय के पश्चात् पंजाब से दक्षिण में आए थे।
दहिया राजवंश का पुराना निवास नासिक त्रिबंक के पास में बहने वाली गोदावरी नदी के निकट थालनेरगढ़ था। मुहणोत नैणसी ने दहिया राजवंश की वंशावली दी है- विमलराज, सिवर था), चूहड़ मंडलीक, गुणरंग मंडलीक, देवराज-राणा, भरहराणा, रोहराणा, कीरतसिंह राणा। (वि.सं. 1056 वैशाख सुदि 3 ई. 999) के किनसरिया गाँव से मिले राणा चच के लेख में कीरतसिंह राणा का नाम मेघनाद दिया है। शिलालेख और वंशावली में इसके पुत्र का नाम वैरसिंह राणा दिया है। उसकी पत्नी दूदा से चच्च उत्पन्न हुआ। चच्च चौहान राजा सिंहराज के पुत्र दुर्लभराज का सामंत था। ऊपर वर्णित शिलालेख में अंकित तिथि को चच्च ने किनसरिया ग्राम में भवानी का मन्दिर बनवाया। (ए.इ.जि. 12 पृ. 59-61) चच्च का पुत्र उद्धरण, पर्वतसर और मारोठ का स्वामी हुआ। उसके आगे 17 नाम और दिए हैं। (नैणसी की ख्यात, पृ. 29)दूसरा शिलालेख मारोठ के मंगलाणी ग्राम में वि.सं. 1272 (ई. 1215) जेठ बदि 11 का है। उस वंश के महामंडलेश्वर कदुवराज के पुत्र पदमसिंह के बेटे महाराज पुत्र जयन्त का है। उस समय रणथम्भौर का राजा चौहान बाल्हणदेव था। (ए.इ.जि.41 पृ. 87) |
चच के पुत्र उद्धरण के दो पुत्र टारपिंड राणा और विल्हण । विल्हण बड़ा वीर और प्रभावशाली था। यह मारोठ का स्वामी हुआ। परबतसर के टारपिंड का पुत्र जगन्धर तथा उसका दुर्जनसाल और माली, राणा की बजाय रावत कहलाया तथा मारोठ के विल्हण के वंशज राणा कहलाने लगे। परबतसर के मालो का पुत्र रावल कीर्ति और उसका रावत मांडो हुआ।किनसरिया मन्दिर के पास के स्मारक स्तम्भ पर लेख है कि वि.सं. 1300 (ई. 1243) जेष्ठ सुदि 13 सोमवार के दिन दहिया राणा करतसिंह का पुत्र राणा विक्रम रानी नाइल देवी सहित स्वर्ग को गया। उस राणा के पुत्र जगधर ने माता-पिता के निमित यह स्मारक बनवाया |
मारवाड़ में जयमल दहिया की पत्नी उछरंगदे अपने पति से नाराज होकर खेड़ के राव आस्थान राठौड़ के पास चली गई थी। उसे आस्थान ने अपनी रानी बना लिया था। उसके साथ उसका पुत्र, जो जयमल दहिया से उत्पन्न हुआ था, वह भी था। उसका पालन-पोषण खेड़ में ही राठौड़ों के संरक्षण में हुआ। जब शत्रु ने राव आस्थान को मारा तब इसी लड़के ने आस्थान की मौत का बदला लिया। तबसे वह राठौड़ माना जाने लगा तथा राठौड़ों की तेरह साख मानी जाने लगी। वह लड़का राठौड़ों का तिलक माना गया। (बांकीदास की ख्यात)
नैणवा-बूंदी इलाके में दहियों का राज्य था। वहाँ का शासक भीम दहिया था, जिसका “वंश भास्कर में वर्णन दिया है। उसका पोता बल्लन बड़ा योद्धा था। वह बूंदी में हाड़ा राज्य के संस्थापक देवाजी से युद्ध करते समय मारा गया था।
जालौर का किला दहियों ने बनवाया था। दहिया राजवंश से जालौर का यह किला आबू के परमारों ने छीन लिया था। पृथ्वीराज चौहान द्वितीय की रानी अजयादेवी दहियाणी ने जांगलू को समृद्धिशाली बनाया। बाद में दहियों से सांखला (पंवार) रायसी ने जांगलू को छीन लिया। यह षड्यन्त्र रायसी तथा दहियों के पुरोहित की मिलीभगत से सफल हुआ। पहले सांचोर भी, जो मारवाड़ में जालौर जिले में है- दहियों का था। वहाँ के अन्तिम दहिया शासक विजयराव से नाडोल (मारवाड़) के चौहान शासक ने सांचोर विजय कर लिया था। अजमेर जिले में सावर और घटियाली तथा मारवाड़ के हरसौर में दहियों का शासन था|
राज्यों के विलय के समय सिरोही (राजस्थान) राज्य के केर का ठिकाना तथा ग्वालियर राज्य में कनवास का ठिकाना दहिया राजवंश का था तथा जालौर (राजस्थान) जिले में 48 गाँव, जो दहियावाटी कहलाते हैं, यह भू-भाग दहियों का था।
लेखक : देवीसिंह मंडावा
History of Dahiya Rajput Rajvansh in Hindi
Dahiya Kshatriya History in Hindi
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Mai shrikant Daiya sriganganagar se hu..apne purvaj or itihas k bare me jaan na chahta hu. Please guide me.
My name is Dilrajrajput dahiya me Satna MP. Se hu purvaj or itihas k bare me janna chata hu
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Satna m kaise aaye Dahiya
एमपी में हाल बुरा है जो सम्मान मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा।और तो कुछ लोग नेताओ के चक्कर में आकर के और नीचे गिर रहे है।एमपी में कुछ करे
Hkm koi bolta he ki gora or kala dahiya rajputo ki do khanpe he Kya yah sahi he ya galat
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