Boraj Fort Histry बोराज गढ़ पर मराठा आक्रमण

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Boraj Fort, Jaipur
Boraj Fort बोराज गढ़ के सामने बना है एक ऐसे योद्धा का स्मारक जिसने महादजी सिंधियां की सेना को नाकों चने चबा दिए थे | बोराज खंगारोत कछवाह राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना है, जो जयपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर जोबनेर और महलां के मध्य स्थित है | बोराज का यह गढ़ कभी आल्हगणोत कछवाहों के अधीन था, लेकिन वि.सं. 1606 में राव खंगार और उनके पिता जगमाल कछवाह ने एक भीषण युद्ध कर इसे अपने अधीन कर लिया | राव खंगार ने वि.सं. 1640 में मांडल युद्ध में वीरगति पाई, उनकी मृत्यु के बाद उनकी चार रानियाँ सती हुई |

इस घटना को दर्शाने वाला एक शिलालेख बोराज गढ़ में आज भी मौजूद है जो एक गोल चबूतरे पर स्थापित है जिसमें एक योद्धा के सामने चार स्त्रियाँ खड़ी है | इस तरह के स्मारकों को देवली कहा जाता है, देवली में योद्धा के आगे जितनी महिलाऐं खड़ी होती है, वे उन महिलाओं की स्मृति में होती है जो योद्धा के साथ सती हुई थी |

“राजस्थान के खंगारोत कछवाहों का इतिहास” नामक पुस्तक में प्रदेश के जाने माने इतिहासकार डॉ. राघवेन्द्रसिंह मनोहर लिखते है –“सकतसिंह के शासनकाल में बोराज में एक भीषण युद्ध लड़ा गया | यह युद्ध माह बदि 14 वि.सं. 1843 में तूंगा की प्रसिद्ध लड़ाई से छ: माह पूर्व हुआ जब बोराज गढ़ पर मराठों ने हमला किया | मराठों के इस आक्रमण का नेता महादजी सिंधिया का सेनानायक रायजी पटेल था, जिसका बोराज और निकटवर्ती खंगारोत शासकों ने जबरदस्त प्रतिरोध किया | इस युद्ध के नायक ठाकुर सगतसिंहजी के छोटे भाई स्योदानसिंहजी के पुत्र जवानसिंहजी थे, जिन्होंने इस युद्ध में मराठा सेना का भीषण संहार करते हुए अप्रितम वीरता प्रदर्शित की तथा अनेक खंगारोत कछवाह योद्धाओं के साथ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की |

बोराज गढ़ के सामने जहाँ वह युद्ध लड़ा गया था, उसी स्थल पर एक बड़े चबूतरे पर सफ़ेद संगमरमर की शिला पर एक लेख उत्कीर्ण है | शिलालेख पर वीरवर जवानसिंहजी सहित वीरगति को प्राप्त हुए योद्धाओं की प्रतिमाएं बनी है |

डॉ. राघवेन्द्रसिंह मनोहर के अनुसार इस युद्ध में जवानसिंह द्वारा प्रदर्शित अद्भुत वीरता और पराक्रम पर डिंगल में एक महत्त्वपूर्ण काव्य जवानरासो की रचना हुई है | जिसमें युद्ध की प्रमुख घटनाओं, व लड़ाई में भाग लेने वाले कछवाह, राठौड़, पंवार, धाभाई, गौड़ और अन्य योद्धाओं व सेनानायक रायजी पटेल की गतिविधियों पर प्रकाश डाला गया है |

इस युद्ध को लेकर एक और रोचक कहानी जुड़ी है, बोराज के पूर्व जागीरदार परिवार के सदस्य ठाकुर कुलदीपसिंहजी ने हमें बताया कि “मराठा यानि पेशवाओं की सेना जयपुर से वसूली करने आई थी, बोराज को भी जयपुर का बकाया देना था, जयपुर से सन्देश आया कि बकाया भेजो ताकि पेशवा को दिया जा सके | तब बोराज वालों ने जबाब दिया कि पेशवा को कहिये, बोराज आकर रकम ले जाए | तब रायजी पटेल के नेतृत्व में पेशवा सेना आई और यह भीषण युद्ध हुआ | बोराज के योद्धाओं ने जवानसिंह जी के नेतृत्व में पेशवा सेना पर ऐसा कहर ढाया कि मराठों को अपना सैनिक असलाह छोड़ भागना पड़ा |

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