सामी गांव का इतिहास History of Sami Kheda Village

Gyan Darpan
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सीकर जिला मुख्यालय से लगभग 27 किलोमीटर दूर सामी गांव अपनी कई विशेषताओं के चलते प्रसिद्ध है | इस गांव से रणवा जाट, गौड़ और शेखावत राजपूतों का इतिहास जुड़ा है | यह गांव मूल रूप से कब बसा इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है पर ये बात पक्की है कि जब इस वर्तमान गांव को बसाने वाले आये थे तब उन्हें पूर्व में बसे गांव के उजड़े हुए अवशेष मिले थे | पहाड़ी की तलहटी में बसे इस गांव की पहाड़ी पर दो मंदिर और एक झुझारजी का देवरा है | इन मंदिरों में एक शिव मंदिर था जिसमें आज ठाकुर जी की पूजा अर्चना होती है, दूसरे मंदिर में देवी की प्रतिमा स्थापित है | ये दोनों मंदिर प्राचीन है | गांव बसने के बारे में गांव बुजुर्ग सज्जन सिंह जी शेखावत ने हमें बताया कि – वि. सं. 1111 माह सुदी पंचमी को मलसी जाट ने यह गांव बसाया था, मलसी जाट के वंशज  रणवा जाट कहलाते हैं | मलसी जाट का नागौर क्षेत्र के दहिया राजपरिवार से सम्बन्ध था | मलसी जाट ने यहाँ की पहाड़ी पर शिव मंदिर बनवाया और यहाँ रहने लगा | उससे पहले भी यहाँ गांव था पर वह उजड़ चुका था जिसके अवशेष मलसी जाट को मिले थे |

रणवा गोत्र के जाटों के समय यह क्षेत्र दहिया राजपूतों के राज्य का हिस्सा था, जब दहिया राजवंश कमजोर हुआ और गौडों का प्रताप बढ़ा तब यह क्षेत्र को गौड़ राजपूतों के अधीन हो गया | सामी गांव पर गौड़ राजपूतों का अधिपत्य हो गया | गांव में गौड़ काल की जानकारी देते गांव के युवा सरपंच सुरेन्द्रसिंह शेखावत ने बताया कि – पहाड़ी पर आज भी गौड़ों की सैनिक चौकी रूपी किले के अवशेष हैं और पहाड़ी पर देवी का मंदिर है | ज्ञात हो गौड़ क्षत्रिय काली के उपासक रहे हैं |

गौड़ शक्ति को राव शेखाजी द्वारा परास्त कर क्षेत्र से भगा देने के बाद सामी गांव भी राव शेखाजी के वंशज जो शेखावत नाम से जाने जाते है के अधीन हो गया | खंडेला के राजा वरसिंहदेव के पुत्र अमरसिंह को जागीर  में मिले गांवों में सामी ग्राम भी था | ज्ञात हो अमरसिंह जी राजस्थान के प्रसिद्ध  दांता ठिकाने के संस्थापक थे | दांता के शानदार महल पर बना वीडियो हमारे चैनल पर उपलब्ध है | अमरसिंह के पुत्र इन्द्रसिंह जी को सामी गांव मिला और जोरावर सिंह जी को सेसम गांव | कुछ वर्ष बाद जोरावरसिंह जी भी सामी आकर रहने लगे | आज सामी में इन दोनों भाइयों के वंशज निवास करते हैं | सामी में शेखावतों की एक शाखा परसराम जी का शेखावतों के भी परिवार है |

इन्द्रसिंह जी, जोरावरसिंह जी व उनके पुत्रों ने अपने आवास के लिए छोटी छोटी गढ़ियों का निर्माण कराया, जिनके द्वार आज भी विद्यमान है व अंदरूनी रहवास के हिस्से खंडहर हो गये | गांव के युवाओं ने ग्राम पंचायत के युवा सरपंच सुरेन्द्रसिंह के नेतृत्व में पांचों प्राचीन दरवाजों व सार्वजनिक स्थानों को गुलाबी रंग से रंग दिया जिसे देखने के बाद यह गांव “गुलाबी गांव, यानी पिंक विलेज” लगता है, गांव का युवा सरपंच चाहता है कि गुलाबी गांव यानी पिंक विलेज के रूप में सामी गांव को देश विदेश में जाना जाये |

एक बार इस गांव से एक मुस्लिम सैनिक टुकड़ी गुजर रही थी, गांव के पास इस टुकड़ी ने डेरा डाला और एक गाय या बैल को खाने के लिए काट लिया | इसी मुद्दे पर गांवों वालों व सैन्य टुकड़ी के मध्य लड़ाई हुई | ग्रामीणों ने सैनिकों को काट काट कर कुँए में डाल दिया और जो जान बचा सके वे भाग खड़े हुए, इस लड़ाई में कई ग्रामीण घायल हुए और एक परसरामजी का शेखावत शहीद हुआ, जिनका स्मारक रूपी देवरा पहाड़ी पर बना है और ग्रामीण उन्हें झुझार जी लोकदेवता के रूप में पूजते हैं, खासकर जब वर्षा नहीं होती तो सभी ग्रामीण झुझार जी महाराज की पूजा आराधना करते हैं |

अंग्रेजी राज में भी द्वितीय विश्वयुद्ध में  इस गांव के कई योधाओं ने भाग लिया | गांव के कई सैनिक विश्वयुद्ध लड़ने विदेशों में गये थे जो आठ वर्ष बाद घर लौटे थे | गांव में आज भी सैनिकों व पूर्व सैनिकों की अच्छी खासी जनसख्या है | पूर्व सैनिक युवाओं को सेना में भर्ती होने प्रेरित तो करते हैं, गांव में एक मैदान भी बना रखा है जहाँ युवाओं को मुफ्त में सैन्य परीक्षा पास करने की कोचिंग दी जाती है | सेना के तीनों अंगों के साथ ही गांव के युवा निजी कम्पनियों में भी बहुतायत से है और व्यापार में भी पीछे नहीं है |

गांव में गिरधर दासोत व परसराम जी का शेखावत शाखा के शेखावत परिवार के साथ जाट, कुम्हार, जांगिड़, ब्राह्मण, पुरोहित, अग्रवाल, नाई, मेघवाल, बाल्मीकि आदि कई जातियां निवास करती है | जाटों में रणवा, महला, चौपड़ा, जाखड़, स्योर, कटेवा, खाचारया, ताखर, भींचर आदि गोत्र के परिवार बसते हैं |

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