राजपूत युवाओं के लिए छोटे चुनाव लड़ना जरुरी क्यों ?

Gyan Darpan
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राजपूत युवाओं के लिए छोटे चुनाव लड़ना जरुरी क्यों ? : सीकर भाजपा द्वारा जिला परिषद चुनावों में राजपूत समाज के नेताओं को कम टिकट देने की हमारी खबर पर कई प्रतिक्रियाएं आई | राजपूत युवाओं द्वारा व्यक्त इन प्रतिक्रियाओं में खास थी कि “बड़ा युद्ध जीतने के लिए छोटे हारना कोई बुरा नहीं |” यह टिप्पणी करने वाले का मतलब था कि सीकर जिला परिषद चुनावों में एक बड़े नेता की नजर प्रमुख पद पर है और उसे पाने के लिए यदि समाज के अन्य छोटे भाजपा नेताओं के टिकट कट गये या नहीं दिए गये तो कोई बुरी बात नहीं, हमें प्रमुख पद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|

हो सकता है यह रणनीति हो पर एक बड़े नेता के लिए समाज के अन्य युवा नेताओं को मौका नहीं देना कहाँ तक ठीक है | हम मानते हैं कि जिला परिषद व पंचायत समितियों के सदस्यों की चुनाव बाद कोई ज्यादा अहमियत नहीं रहती, पर यदि समाज के युवा यह सोचकर इन चुनावों से विमुख होते रहे तो उन्हें सीधे विधायक, सांसद कौन पार्टी बनायेगी ? ये छोटे चुनाव ही बड़े चुनावों की तैयारी होते हैं | इन्हीं चुनावों से ही सही मायने में काबिल नेतृत्व निकलता है | उदाहरण के लिए राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविन्दसिंह डोटासरा को देखा जा सकता है, उन्होंने भी स्थानीय निकाय से राजनीति शुरू की थी और आज प्रदेश सरकार में मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष है |

यदि डोटासरा जी स्थानीय निकायों के माध्यम से राजनीति में नहीं आते तो उनकी राजनैतिक प्रतिभा वकालत तले ही दबी रह जाती | ठीक इसी तरह राजपूत समाज के युवाओं को भी जिन्हें राजनीति में रूचि है, स्थानीय निकायों के चुनावों में बढ़ चढ़ भाग लेना चाहिये | जिसमें नेतृत्व क्षमता होगी, पार्टियाँ उन्हें स्वत: विधायक, सांसद के टिकट देगी या संगठन में पदाधिकारी बनायेगी | पर यदि समाज के नेता स्थानीय निकायों को छोटा समझकर उनसे दूर रहेंगे तो जनता व राजनैतिक दलों को उनकी नेतृत्व क्षमता का कैसे पता चलेगा |

रही बात बड़े नेता के लिए छोटे नेताओं के बलिदान की, तो कथित बड़े नेता का कद व व्यापार इतना बड़ा है कि कुछ दिन किसी पद पर नहीं भी रहेंगे तब भी उनका कुछ भी नहीं बिगड़ना, पर यदि उनके लिए हम छोटे नेताओं का बलिदान सहते रहेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब राजनीतिक दलों को टिकट देने के लिए राजपूत समाज से कोई दावेदार ही नहीं मिलेगा |

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