स्वतंत्रता आन्दोलन के पुरोधा कुंवर मदन सिंह राजावत : जिस राजा की गोद में खेले उसी कि रियासत में किया स्वतंत्रता आन्दोलन का शंखनाद
आज हम स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी एक ऐसी रोचक घटना की बात करेंगे जिस पर आप सहज विश्वास ही नहीं कर पायेंगे | स्वतंत्रता आन्दोलन के एक ऐसे पुरोधा की जानकारी प्रस्तुत कर रहे है जो किसी झोपड़ी में पैदा नहीं हुआ बल्कि रियासत के महलों में पैदा हुआ, वह राजा की गोद में खेला और पला बढ़ा फिर भी आजादी के उस दीवाने में उसी राजा कि रियासत में स्वतंत्रता आन्दोलन की चिंगारी सुलगाई और राजसत्ता को चुनौती दी, स्वतंत्रता आन्दोलन का शंखनाद किया |
हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा कुंवर मदनसिंह राजावत की | कुंवर मदनसिंह के पिता चिमन सिंह राजावत सवाईमाधोपुर जिले के सोयल गांव के साधारण राजपूत थे | उनका विवाह करौली में हुआ और वे करौली आकर रहने लगे | चिमनसिंह ने करौली के तत्कालीन नरेश भंवरपाल के दरबार में एक छोटी सी नौकरी शुरू की और अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर वे रियासत के दीवान पद पर पहुंचे | नरेश भंवरपाल से उनका अभिन्न रिश्ता बन गया था और यही बात रियासत के अन्य अधिकारीयों व नरेश के परिजनों को पसंद नहीं थी | अत: इसी विरोधी गुट की शिकायतों पर अंग्रेजी सरकार ने नरेश की आपत्ति के बावजूद चिमनसिंह को करौली से निष्कासित कर दिया |
कुंवर मदनसिंह से भी नरेश का आत्मीय रिश्ता था वे करौली नरेश की गोद में खेले व पले बढे थे | उनकी शिक्षा भी राजसी ढंग से हुई थी | पिता के निर्वासन के बाद मदनसिंह ने देशाटन किया और गौसेवा के साथ ही देश के कई प्रबुद्ध व्यक्तियों से उनका सम्पर्क हुआ | करौली में शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने एक एक पुस्तालय की स्थापना की जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम की चेतना का संचार करने के प्रमुख केंद्र बना | इसी वजह से यह पुस्तकालय और यहाँ की गतिविधियों पर प्रशासन की कड़ी नजर रही | मदनसिंह तिलक की विचारधारा से प्रभावित थे | आपने विदेशी कपड़ों का त्याग कर खादी का उपयोग किया | आपने पत्रकारिता भी की और अख़बारों में स्वतंत्रता आन्दोलन से सम्बन्धित ख़बरें प्रकाशित करने के साथ आप जनचेतना हेतु लेख लिखते | उनके लेखों व ख़बरों पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु और पटेल जैसे नेता अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर उनका उत्साहवर्धन किया करते थे | कर्तव्य, वर्तमान, राजस्थान तथा तरुण राजस्थान अख़बारों में आपके लेख छपते थे |
करौली रियासत में सूअर जैसे हिंसक जानवरों के शिकार पर रोक लगी थी और इन हिंसक जानवरों से किसान परेशान थे अत: कुंवर मदनसिंह ने श्यामपुर और लांगरा गांव में सूअरों को बंदूक की गोली से उड़ाकर राज्य का कानून भंग किया | चूँकि मदनसिंह के प्रति करौली नरेश के मन सहानुभूति थी साथ ही कानून भंग की स्थिति को पुलिस भी अपनी नाकामी मान रही थी जिसे छिपाने के लिए क़ानूनी कार्यवाही नहीं की गई | चिमनसिंह के निर्वासन के समय मदनसिंह को करौली में रोकने के लिए नरेश ने उन्हें तीन लाख रूपये देने का वायदा किया था | उन तीन लाख के बदले मदनसिंह ने नरेश से तीन मांगे की – 1. प्रजा से बेगार लेना बंद करें, 2. हिंदी को राजभाषा बनाना, 3. हिंसक जानवर मारने की आज्ञा देना |
इन मांगों को लेकर उन्होंने करौली नरेश को पत्र लिखा जिसमें कई बातें लिखी और मांगे ना मानने के विरोध में नदी दरवाजे के बाहर गोपालसिंह की छतरी पर पत्नी के साथ आमरण अनशन किया | इस अनशन और उनके अखबारी आन्दोलन से करौली शासन की नींव हिल गई, प्रदेश के कई स्वतंत्रता सेनानी उनके पक्ष में लामबंद हो गये आखिर उनकी मांगे मानने का वायदा किया गया और उनका अनशन तुड़वाया गया | इस अनशन से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा, वे कमजोर हो गये और इसी कमजोरी में स्वास्थ्य की परवाह किये बिना आन्दोलन के कार्य में लगे रहने की वजह से उन्हें हैजा हो गया | बीमारी जोर पकड़ गई और पर्याप्त ईलाज ना होने के कारण मात्र 41 वर्ष की आयु में 24 अगस्त 1927 को उनका देहांत हो गया |
उनके देहांत पर वाराणसी से प्रकाशित दैनिक “आज” अख़बार ने 27 अगस्त 1927 को लिखा – “कुंवर मदनसिंह राजपूताने के एक नेता, निर्भीक आलोचक, सच्चे देशभक्त, पक्के कार्यकर्त्ता, आदर्श त्यागी और यादववाटी हितवर्धक सभा के संस्थापक तथा संरक्षक थे | कुंवर साहब का अचानक वियोग हृदय को विदीर्ण कर रहा है | आप समाज के सच्चे हितैषी और मातृभाषा हिंदी के सेवक थे|”
सन्दर्भ पुस्तक : “राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा कुंवर मदनसिंह” लेखक : वेणुगोपाल शर्मा; प्रकाशक : राजस्थान स्वर्ण जयंती समारोह समिति, जयपुर