इसलिए आज भी स्थानीय लोगों द्वारा पूजे जाते हैं सामंत अलखाजी

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अलखाजी रियासती काल में शेखावाटी के एक छोटे से जमींदार थे | उनके अधीन महज कुछ गांव ही थे, पर उन्होंने ऐसा क्या किया कि लोग आज भी जगह जगह उनके पगलिये यानी पैरों के निशानों की पूजा करते हैं | इस लेख में आज हम अलखा जी के बारे में जानकारी देंगे और साथ ही इस बात की जानकारी भी देंगे कि आज भी स्थानीय निवासी उनकी पूजा क्यों करते हैं ?

अलखा जी राव शेखाजी के बड़े पुत्र दुर्गाजी के वंशज थे और बादशाह जहाँगीर के समय शेखावाटी के बारवा व खिरोड़ आदि गांवों पर उनका अधिकार था | अलखाजी अपनी राजनैतिक, प्रशासनिक क़ाबलियत के बलबूते खंडेला के राजा गिरधरदास और उनके पुत्र द्वारकादास के सलाहकार रहे | अलखा जी ने फतेहपुर के नबाब दौलतखान का युद्धभूमि में सामना किया था| अलखाजी एक साहसी योद्धा होने के साथ धर्मपरायण व जनहित कार्यों में रूचि लेने वाले व्यक्ति थे | जब खिरोड़ आदि कुछ गांव उनके अधिकार से निकल गये तो वे वि.संवत 1679 -80 के आस-पास खोह चले आये | वर्तमान में खोह को रघुनाथगढ़ के नाम से जाना जाता है |

खोह में शुरू में आप पहाड़ों की कंदराओं में बनी गुफा में ही रहे बाद में रहने के लिए महल बनवाया | लेकिन अपना वह महल उसी काल शिक्षा के प्रसार हेतु विद्यालय को देकर वे फिर पहाड़ों की खोह में ही रहकर भक्ति करने लगे | अलखाजी के राज के बारे किसी कवि द्वारा कहा गया ये दोहा प्रसिद्ध है –  खोह खंडेला सारसौ, गुंगारो ग्वालेर, अलखा थारै राज में पिपराली आमेर |

आर्थात हे अलखा जी आपके राज्य में खंडेला जैसा खोह, ग्वालेर जैसा गुंगारा और आमेर जैसी पिपराली है | वृद्धावस्था में अलखा जी ने भक्ति करते हुए संत जीवन व्यतीत किया और भजन-पूजन में लीन रहे, उनका अंतिम समय रघुनाथगढ़ में ही बीता जहाँ वे स्नान करते थे, आज उसी कुण्ड पर उनका मंदिर भी बना है अन्य कई जगह उनके पगलिये यानी पैरों के निशान पूजे जाते हैं|

स्थानीय निवासी अपने नवजात बच्चों का अलखाजी के स्थान पर आकर मुंडन करवाते हैं, वहीँ नवविवाहित जोड़े अलखा जी को धोक लगाकर अपने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद लेते है तो जिन लोगों को अपना कोई काम बनवाना है वह अपने कार्य की सफलता के लिए अलखाजी के यहाँ आकर मन्नत मांगते हैं |

अलखाजी के मंदिर तक पहुँचने के लिए सीकर से सड़क मार्ग द्वारा पिपराली व रघुनाथगढ़ पहुंचा जा सकता है| पिपराली गांव में कुँए के पास अलखाजी का छोटा सा मंदिर बना है, तो रघुनाथगढ़ में सरकारी स्कूल के मुख्य द्वार पर एक छोटा सा स्थान बना है व पहाड़ी की तलहटी में अलखाजी के कुण्ड के पास भी उनका मंदिर बना है जहाँ उनकी चरण पादुकाएँ रखी है|

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