“तुम्हारा तो भगवान भी भला नहीं कर सकता” यह डायलोग आपने कई जगह सुना होगा| अक्सर में घर-परिवार के किसी सदस्य या मित्र द्वारा शुभचिंतकों के बार बार समझाने के बाद वो ही गलतियाँ करने पर यह डायलोग प्रयोग किया जाता है| बहुत से लोग ऐसे ही होते है उनके शुभचिंतक उन्हें कितना समझाएं वे गलती किये बिना रह ही नहीं सकते, क्योंकि वे आचरण ही कुछ वैसा ही बन चूका होता है| यदि हम राजपूत समाज की वर्तमान युवा पीढ़ी की बात करें तो उसमें ज्यादा प्रतिशत ऐसे ही युवाओं का मिलेगा, जिन पर किसी का कोई असर नहीं पड़ता, वे अपने आपको ही सबसे बड़ा समझदार समझते हैं, हर बात में वे बारीक से बारीक कमियां निकालकर काम करने वाले टांग खींचते हैं और दोष भी सामने वाले के मत्थे पर|
अभी चुनावी माहौल है, राजपूत कांग्रेस से नफरत करते हैं, भाजपा से अपनी उपेक्षा को लेकर नाराज है, समाज के कुछ संगठन स्वाभिमानी मोर्चा बनाकर दोनों दलों को चुनौती देने के लिए प्रयासरत हैं| समाज के कुछ लोग कांग्रेस-भाजपा में रहकर समाज का हित करना चाहते हैं, पर इन सबकी अड़चन बाहरी नहीं, अंदरूनी ही सबसे ज्यादा है यानी उनकी सबसे बड़ी बाधा हर बात पर बिना सोचे समझे त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले राजपूत युवा ही है| ये युवा सोशियल मीडिया में अपना झाड़ने के चक्कर में सामाजिक संगठनों व समाज नेताओं द्वारा किये जाने वाले किसी भी प्रयास की लोगों की नजर में अपनी उल जुलूल टिप्पणियों के माध्यम से गंभीरता ख़त्म कर देते हैं| यदि कहा जाय कि राजपूत सामाजिक संगठनों द्वारा राजनैतिक मोर्चा बनाने में कोई सबसे बाधक तत्व है तो वे राजपूत युवा ही हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी|
पिछले लोक सभा चुनाव में 95 प्रतिशत राजपूतों ने भाजपा को वोट दिए, लेकिन करणी सेना संस्थापक लोकेन्द्रसिंह कालवी की भाजपा में वापसी राजपूत युवाओं को पची नहीं| आज भी राजपूत युवा हिन्दुत्त्व व राष्ट्रवाद के नाम पर मोदी के परमभक्त है पर पद्मावत फिल्म मुद्दे पर भाजपा से अपना पद छोड़कर आये सूरजपाल अम्मू का वापस भाजपा में जाना बर्दास्त नहीं| समाज की उपेक्षा से नाराज कोई नेता भाजपा को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस या किसी दल से हाथ मिलाता है तो वो राजपूत युवाओं को बर्दास्त नहीं| यदि भाजपा पर नाराजगी का प्रेशर बनाकर कोई नेता समाज को कुछ दिलवाता है तो उसे तुरंत बिकाऊ का सर्टिफिकेट भी राजपूत युवा ही जारी करते हैं| सोशियल मीडिया में सैंकड़ों किलोमीटर दूर बैठकर ऐसे ऐसे राजनैतिक विश्लेषण करेंगे कि मानों देश में उनसे बड़ा कोई राजनैतिक विश्लेषक होगा ही नहीं| कुल मिलाकर राजपूत युवाओं की मानसिकता, उनका व्यवहार, सोशियल मीडिया में उनकी टिप्पणियाँ, विश्लेषण, बहस देखकर पता ही नहीं चलता कि वे चाहते क्या हैं ?
फेसबुक, वाट्सएप जैसी सोशियल साइट्स पर राजपूत युवाओं की राजनैतिक टिप्पणियाँ, विश्लेषण, समाज के नेताओं के खिलाफ टिप्पणियाँ देखते हुए यदि हम कहें कि राजनैतिक तौर पर राजपूत समाज के युवाओं का भगवान भी भला नहीं कर सकता तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी|