मोदी जी के SC/ST एक्ट ने ये इतने सारे सवाल खड़े कर दिये !

Gyan Darpan
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SC/ST एक्ट संविधान की मूल अवधारणा के विरुद्ध है। जो संविधान के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़े करता है इसलिए इसे असंवैधानिक ठहराने और निरस्त करने के निम्न विवेक संगत आधार हैं- (१) जाति के आधार पर आपराधिक विधि बनाकर दण्ड का निर्धारण करना। अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण है। अनुच्छेद 14 की आरक्षण पहले ही हत्या कर चुका है। अब SC/ST एक्ट के द्वारा समानता का दफन कर अंतिम संस्कार कर दिया गया है। जब समानता नहीं तो सम+विधान= संविधान की अवधारणा ही खत्म हो जाती है।

(२) जब सरकार जाति का प्रमाणपत्र जारी करती है तब जाति सूचक शब्द का उच्चारण अपराध कैसे हो जाता है? या तो फिर संविधान में लिखी हर बात का उच्चारण अपराध होना चाहिए| यदि नहीं तो अनुसूची में वर्णित जातियों का ही क्यों? और यदि ये शब्द इतने ही आपत्ति जनक हैं तो इन्हें संविधान में सम्मिलित ही क्यों किया गया?

(3) SC/ST एक्ट 3 (1)(v) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करती है। कालेज के प्रोफेसर या पत्रकार किसी दलित चिंतक की समालोचना नहीं कर सकते। यह अज्ञान व तानाशाही का पोषक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने वाला एक्ट है। यह दलित आतंक और तानाशाही है जिसका शिकार कालेज प्रोफेसरों को बनाया जा रहा है।

(४) भारतीय समाज में दण्ड की परम्परा पहले सामाजिक बहिष्कार के रूप में थी। चूंकि लम्बी गुलामी, विदेशी आक्रमणकारी मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय परम्परागत न्याय पँचायतें कानूनन खत्म की गयी जिस कारण समाज के उस वर्ग की सजा समाज व्यवस्था के अनुसार उन्मोचित नहीं हो पायी। और इस संदर्भ में बदली हुई न्यायिक व प्रशासनिक व्यवस्था में मुगलों और अंग्रेजों के द्वारा हिन्दुओं के इन वर्गों को ही इनके मूल समाज के विरुद्ध प्रश्रय दिया गया और इनके पक्ष में दण्डात्मक प्राविधान किये गये। लेकिन अब देश में विभेद के मूल आधार अश्पृश्यता का अपवाद को छोड़कर पूर्ण उन्मूलन हो चुका है तब Sc/St एक्ट की क्या जरूरत है। यदि अस्पृश्यता ही आधार है तो सरकार बताये कि छुआछुत के कितने मुकदमें lPC में दर्ज हुए और उनको कितनी सजा हुई?

(५) सवाल यह भी है कि जाति के आधार पर दण्डित करने की विधि बनाने की संविधान इजाजत देता है क्या? (६) इस एक्ट का धर्मान्तरित लोग सर्वाधिक लाभ उठा रहे हैं। क्योंकि जाति व्यवस्था या कथित विभेद सिर्फ हिन्दुओं में है तब ईसाई अथवा मुसलमान बन चुका व्यक्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित कैसे कहला सकता है? जबकि वर्तमान में धर्मान्तरित व्यक्ति ही हिन्दू सवर्णों के खिलाफ मिशनरियों और जेहादियों के बहकावे में सर्वाधिक फर्जी मुकदमें कर निर्दोष ब्राह्मणों और सवर्णों का उत्पीड़न कर रहे हैं! क्योंकि हिन्दू धर्म नष्ट करना उनका लक्ष्य है।

(७) वर्तमान में SC/ST एक्ट सवर्णों और ब्राह्मणों को पीड़ित करने का एक प्रबल हथियार बन गया है जिसका हिन्दू धर्म विरोधी शक्तियां खासकर जेहादी और ईसाई मिशनरियां कथित दलितों को दुष्प्रेरित कर रही हैं।

(८) SC/ST एक्ट कथित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में पृथकतावादी विचारों का सृजन व पोषण कर रहा है जो सामाजिक एकता के लिए जहर बन गया है और समाज इस एक्ट से लगातार विषाक्त होता जा रहा है। यह एक्ट अपराधियों के हाथ का हथियार और उनका सुरक्षा कवच बन गया है जिससे आये दिन निर्दोषों का शिकार हो रहा है और दोषियों की उदण्डता बढ़ती जा रही है, जिस कारण बहुसंख्यक वर्ग का जीना दुश्वार हो गया है।

(९) यह एक्ट अपराधियों का सुरक्षित पनाहगार बन गया है। इस एक्ट की आड़ में बन्द, धरना, तोड़ फोड़, आगजनी, वसूली, उठाई गिरी और ब्लैकमेलिंग हो रही है। (१०) झूठी शिकायत होने पर भी इस एक्ट के अंतर्गत शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में भारी रकम दी जाती है जो कि टैक्सपेयर के पैसे का दुरुपयोग और भारी वित्तीय अनियमितता है।

(११) यह एक्ट बलात्कार के अपराध में भी विभेद करता है। कथित दलित महिला को मेडिकल से छूट होने के कारण अगर कोई महिला शाजिसन किसी समान्यवर्ग के व्यक्ति पर आरोप लगा दे तो वह व्यक्ति निर्दोष होते हुए भी दण्डित हो जायेगा। यह एक्ट न्याय के मौलिक सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय के विपरीत है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में प्रिविलेज का क्या नैतिक और वैधानिक आधार है?

(१२) आपराधिक दण्ड में केवल SCST के व्यक्ति को मुआवजे का आधार क्या है? क्या यह संविधान के अनुकूल है! सरकार टैक्सपेयर के पैसे का विभेदकारी उपयोग या दुरुपयोग कैसे कर सकती है? जबकि मुआवजे का सर्वाधिक लाभ धर्मान्तरित और उच्च आयवर्ग वाले ऐसे लोग उठा रहे हैं। जिन्हें अन्यथा मुआवजे की जरूरत ही नहीं है और यह एक्ट उनकी कमाई का साधन बन गया है।

(१३) यह एक्ट प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करवाने पर ही मुआवजे की व्यवस्था करता है, इसलिए धन के लोभ में न केवल अवैध कमाई का साधन बन गया है बल्कि इससे झूठे मुकदमों की बाढ़ आगयी है और कमाई के लिए कथित दलित जबरदस्ती मुकदमें दर्ज करवाने के लिए थानों में डेरा डालना, धरना देना, चक्का जाम करना, मीडिया में प्रोपेगैंडा और तमाशा कर रोजमर्रा के जनजीवन को बंधक बना दे रहे हैं।

(१३) इस एक्ट का अपवाद को छोड़कर शिकार सिर्फ निर्दोष सवर्ण हिन्दू बन रहा है। और प्रकारान्त से सनातनधर्म और सवर्ण को नष्ट करना इस एक्ट का लक्ष्य बन गया है। जनमानस की यह अवधारणा न्याय पर आस्था और विश्वास की मौलिक अवधारणा के विपरीत है। ऐसे विभेदकारी कानून होंगे तो लोगों का न्याय व न्यायालय से विश्वास खत्म होगा जैसा कि पूर्व में बिहार के भूमिहारों ने भीषण नर संहार कर के ऐसे विभेदकारी कानूनों का विरोध किया था।

(१४) SC/ST एक्ट को एक हथियार के रूप में प्रयोग कर कथित दलित दबंग संवैधानिक संस्थाओं और मर्यादाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं। जिसको रोक पाने में सारे कानून विफल हो गये हैं। (१५) SC/ST एक्ट की आड़ में मनुस्मृति जलाना, समान्यवर्ग के विरुद्ध विष बमन, मान मर्दन, झूठ एवं समाज में फूट, विद्वेष एवं प्रपंचपूर्ण साहित्य का प्रकाशन के साथ सनातनधर्म को अपमानित करने के लिए महिषासुर पूजन आदि समाज विरोधी जबरदस्ती भड़काने वाले कार्य करना। सवर्णों की बहू बेटियों को उठाना, छेड़ना, मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ना, भगवान राम व कृष्ण के चित्रों पर जूते मारने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर उत्सवों का आयोजन करना। ब्राह्मणों को हर तरह से बेईज्जत कर उनका मान मर्दन करने का कार्य हो रहा है।

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