पृथ्वीराज चौहान व राजा अनंगपाल तोमर के रिश्ते का सच

Gyan Darpan
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पृथ्वीराज चौहान व राजा अनंगपाल तोमर के सम्बन्धों के बारे में आम धारणा है कि दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर पृथ्वीराज चौहान के नाना थे और उनके कोई संतान ना होने के कारण पृथ्वीराज को दिल्ली की गद्दी मिली| यही नहीं कन्नौज नरेश जयचंद को अनंगपाल तोमर का दोहित माना जाता है और दिल्ली की गद्दी पृथवीराज को मिलने की बात पर दोनों के मध्य दुश्मनी की बात की जाती है| पृथ्वीराज रासो व उसके बाद की कई इतिहास किताबें भी इसी धारणा का समर्थन करती है| लेकिन दिल्ली के तोमर इतिहास पर नजर डाली जाय तो उक्त सम्बन्धों की धारणा निर्मूल नजर आती है और लगता है कि सुनी सुनाई बातों को इतिहासकारों ने बिना शोध किये अपनी किताबों में शामिल कर, इस बारे में भ्रम फैला दिया| आज हम चर्चा करते है पृथ्वीराज चौहान व अनंगपाल तोमर के काल पर, जो हमें इन दोनों के मध्य के रिश्ते को समझने में सहायक होगा|

दिल्ली के इतिहास में दो अनंगपाल नाम के राजाओं का जिक्र मिलता है| एक अनंगपाल वे जिन्होंने दिल्ली में तोमर राज्य की स्थापना की, जिन्हें अनंगपाल प्रथम के नाम से जाना जाता है| तब उनकी राजधानी का नाम अनंगपुर था| दूसरे अनंगपाल “अनंगपाल द्वितीय”  के नाम से जाने जाते है| इन्होंने तोमर राजधानी अनंगपुर से हटाकर योगिनिपुर और महिपालपुर के मध्य ढिल्लीकापुरी में स्थापित की| जो बाद में दिल्ली के नाम से जानी गई|  इन्हीं अनंगपाल द्वितीय को पृथ्वीराज का नाना लिखा जाता है|

हरिहर द्विवेदी द्वारा लिखित “दिल्ली के तोमर” व डा. महेंद्रसिंह तंवर खेतासर द्वारा लिखित “तंवर राजवंश का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास” के अनुसार अनंगपाल द्वितीय दिल्ली के राजसिंहासन पर 1051 ई. में बैठे थे| महरौली के लौह स्तम्भ पर लगे लेख में लिखा गया है कि 1052 ई. में अनंगपाल ने अपनी राजधानी अनंगपुर से हटाकर योगिनिपुर और महिपालपुर के मध्य ढिल्लीकापुरी में स्थापित की|  तोमरों के इतिहास अनुसार अनंगपाल द्वितीय ने 29 वर्ष 6 माह राज्य किया और उनकी मृत्यु 1081 ई. में हुई| इस तरह अनंगपाल द्वितीय का दिल्ली पर 1051 ई. से 1081 ई. तक शासन रहा| उनके बाद क्रमश: तेजपाल प्रथम (1081-1105 ई.), महिपाल (1105-1130 ई.), विजयपाल (1130-1151 ई.), मदनपाल देव (1151-1167 ई.), पृथ्वीराज तोमर (1167-1189 ई.), चाहड़पाल तोमर (1189-1192 ई.)| चाहड़पाल तोमर का तबकाते-नासिरी आदि मुस्लिम इतिहासकारों की पुस्तक में कन्द गोयन्द, गोयन्दह, गवन्द और गोविन्द के रूप में नाम दर्ज है| इसी चाहड़पाल उर्फ़ गोविन्दराय का तराइन के युद्धों में गौरी से आमना-सामना हुआ था| डा. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित “अजमेर का वृहद् इतिहास” के अनुसार “तराइन के प्रथम युद्ध में गौरी का सामना दिल्ली के राजा गोविन्दराय से हुआ| गौरी के भाले के वार से गोविन्दराय के दांत बाहर निकल आये थे| गोविन्दराय ने भी प्रत्युतर में गौरी पर भाला फैंककर वार किया और गौरी बुरी तरह घयाल हो गया|” डा. गुप्ता के कथन की पुष्टि तबकाते नसीरी आदि किताबें भी करती है| तराइन के दूसरे युद्ध में चाहड़पाल (गोविन्दराय) वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए मारे गए थे| गौरी ने उनकी पहचान उनके टूटे दांतों से की थी|

अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान अजमेर की गद्दी पर 1179 ई. में बैठे थे| जबकि उनके पिता को अजमेर की राजगद्दी 1169 ई. में प्राप्त हुई थी| जबकि दिल्ली पर राजा अनंगपाल तोमर का शासनकाल 1051 ई. से 1081 ई. तक रहा| ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि अनंगपाल तोमर के समय तो पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर का जन्म ही नहीं हुआ था तो वे उनकी बेटी के साथ विवाह कैसे करते ? और कैसे अनंगपाल सम्राट पृथ्वीराज के नाना हो सकते थे ? ये सारी भ्रान्ति पृथ्वीराज रासो में चारण-भाटों द्वारा समय समय पर जोड़-तोड़ के कारण बनी, इसलिए लगभग इतिहासकार रासो की ऐतिहासिक प्रमाणिकता पर सन्देह करते है|

नोट : हमारा मकसद किसी जाति वंश को ऊँचा-नीचा दिखाने का नहीं, सिर्फ ऐतिहासिक तथ्य आपके सामने प्रस्तुत करने का है| निष्कर्ष आप स्वयं निकाले| हो सकता है आप इन तथ्यों से अलग धारणा रखतें हों, यदि आपके पास रासो के अलावा कोई ठोस प्रमाण है तो उपलब्ध कराएँ, इस हेतु आपका स्वागत है|

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