देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना का सारा दोष जयचंद के माथे थोप दिया गया| जबकि इतिहास में कहीं भी इसका जिक्र का नहीं कि जयचंद ने गौरी को बुलाया था| जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डाक्टर आनन्द शर्मा ने भी अपने शोध के बाद लिखा कि इतिहास की किसी किताब व पृथ्वीराज रासो में भी उन्हें जयचंद द्वारा गौरी को बुलाने के सबूत नहीं मिले| बावजूद जयचंद को गद्दार का पर्यायवाची बना दिया गया| उन्हें गद्दार क्यों प्रचारित किया, इस पर चर्चा अगले किसी लेख में करेंगे, बहरहाल इस लेख में उन गद्दारों के नाम उजागर कर रहे है जिनके नाम गौरी को बुलाने वालों के रूप में इतिहास में दर्ज है-
पृथ्वीराज रासो के उदयपुर संस्करण में गौरी को ख़ुफ़िया सूचनाएं देकर बुलाने वाले गद्दारों के नाम थे- नियानंद खत्री, प्रतापसिंह जैन, माधोभट्ट तथा धर्मयान कायस्थ जो तंवरों के कवि व अधिकारी थे| इतिहासकार देवीसिंह, मंडवा ने प्रतापसिंह को पुष्करणा ब्राह्मण लिखा है| पंडित चंद्रशेखर पाठक अपनी पुस्तक “पृथ्वीराज” में माधोभट्ट व धर्मयान आदि को गौरी के भेजे जासूस बताया है जो किसी तरह पृथ्वीराज के दरबार में घुस गए थे और वहां से दिल्ली की सभी गोपनीय ख़बरें गौरी तक भिजवाते थे|
जब संयोगिता हरण के समय पृथ्वीराज के ज्यादातर शक्तिशाली सामंत जयचंद की सेना से पृथ्वीराज को बचाने हेतु युद्ध करते हुए मारे गए जिससे उसकी क्षीण शक्ति की सूचना इन गद्दारों ने गौरी तक भिजवा कर उसे बुलावा भेजा| पर गौरी को इनकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ सो उसनें फकीरों के भेष में अपने जासूस भेजकर सूचनाओं की पुष्टि कराई| भरोसा होने पर पृथ्वीराज पर आक्रमण किया|
जम्मू के राजा विजयराज जिसका कई इतिहासकारों ने हाहुलिराय व नरसिंहदेव नाम भी लिखा है, हम्मीर महाकाव्य के अनुसार “घटैक” राज्य के राजा ने गौरी की युद्ध में सहायता की| घटैक राज्य जम्मू को कहा गया है| पृथ्वीराज रासो में भी जम्मू के राजा का गौरी के पक्ष में युद्ध में आना लिखा है, रासो में इसका नाम हाहुलिराय लिखा है जो युद्ध में चामुण्डराय के हाथों मारा गया था| तबकाते नासिरी के अनुसार- कश्मीर की हिन्दू सेना गौरी के साथ युद्ध में पृथ्वीराज के खिलाफ लड़ी थी|
इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज का सेनापति स्कन्ध भी पृथ्वीराज से असंतुष्ट था जब गौरी ने पृथ्वीराज को मारने के बाद अजमेर का राज्य पृथ्वीराज के बेटे गोविन्दराज को देकर अपने अधीन राजा बना दिया था तब स्कन्ध ने पृथ्वीराज के भाई हरिराज को लेकर अजमेर पर आक्रमण किया और उसके बाद जब गोविन्दराज रणथम्भोर चला गया तब भी स्कन्ध ने हरिराज के साथ मिलकर उसका पीछा किया तब पृथ्वीराज के बेटे गोविन्दराज की कुतुबुद्दीन ऐबक ने सहायता की थी| अत: सेनापति स्कन्ध का असंतुष्ट होना भी पृथ्वीराज की हार का कारण हो सकता है और उसका नाम भी गद्दारों की सूची में होना चाहिये था|
History of Jaichand in Hindi, kya jaichand gaddar tha? ghori ko bulane wale gaddar kaun the ?