जब दो राजा घोड़ों पर अपने बिस्तर बांधे गांव से गुजरे

Gyan Darpan
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आजादी के कुछ वर्ष पहले की बात है| उस समय राजा महाराजाओं का राज था| जब कभी राजा महाराजा किसी गांव के पास से निकलते तो प्रजाजन उनके दर्शन करने व नजराना (भेंट) देने आते और राजा के दर्शन लाभ लेने के बाद अपने सामर्थ्यनुसार नजराना भेंट कर खुश होते तथा इसे अपना अहोभाग्य समझते| राजाओं के गांवों से होकर निकलने की घटना की बातों में लोगों के उत्साह और राजाओं के प्रति प्यार और आदर का वर्णन साबित करता है कि यहाँ की प्रजा अपने राजाओं को असीम प्यार करती थी और ऐसा प्यार व आदर किसी शासक को तभी मिल सकता है जब वह प्रजाहित का कार्य करे|

उन्हीं दिनों जयपुर के महाराजा व सीकर के राव राजा का फतेहपुर आने का कार्यक्रम बना| गांवों में उनके आने के समाचार पहुंचे तो गांव के लोगों ने राजाओं को नजराना देने व दर्शन करने के लिए फतेहपुर जाने की तैयारियां शुरू कर दी| ठिठावता गांव के एक राजपूत परिवार के बच्चे को पता चला कि उसके पिताजी व बाबोसा आज राजाओं के दर्शन करने फतेहपुर गए है| बच्चे ने राजाओं के बारे में सुनी कहानियों के आधार पर राजाओं के सम्बन्ध में कल्पना कर रखी थी कि – वे घोड़े की सवारी करते होंगे| उनके साथ कई और लोग होते होंगे| उनके साथ कुछ सामान भी होता होगा आदि आदि|

गांवों में विद्यालय समय के बाद बच्चे अक्सर मंदिर के बाहर बने चबूतरे या गांव के चौपाल जिसे गुवाड़ कहा जाता है, में खेलते है और आते जाते राहगीरों को भी देखते रहते है| उस दिन वह बच्चा भी गुवाड़ के चबूतरे पर बैठा था| तभी फतेहपुर वाले रास्ते से घोड़े पर सवार दो लोग निकले, जिनके पीछे एक-एक कपड़े से बंधा गट्ठर था| साथ में कुछ महिलाएं व बकरियां भी| बच्चे की कल्पना अनुसार इन घुड़सवारों के लक्षण राजा महाराजाओं से मिल रहे थे| बच्चा बड़ा प्रसन्न होकर घर सूचना देने दौड़ा कि जिन राजाओं को देखने पिताजी, बाबोसा फतेहपुर तीन कोस पैदल चलकर गए है, उनको उसने गांव में ही देख लिया|

बच्चे ने घर जाकर माँ को यह सारा दृश्य बताते हुए कहा कि पिताजी बाबोसा फ़ालतू ही फतेहपुर गए, यही देख लेते| माँ ने अपने लाल के भोलेपन का हंसकर स्वाद लिया| सांयकाल बच्चे के पिताजी व बाबोसा आये और उन्होंने घर पर बताया कि जयपुर व सीकर के महाराजा दोनों ही नहीं आ पाए| तब पास ही खड़े होकर सुन रहे बच्चे ने तपाक से बताया कि- वे तो दोनों अपना बोरिया बिस्तर लादे इधर से गए थे| मैंने तो देख लिया| आपको कहाँ मिलते, वे तो इधर आ गए थे|

तब बच्चे के बाबोसा ने हँसते हुए प्रेम से समझाया कि बेटा, वे तो नट थे| राजा-महाराजा ऐसे थोड़े हो होते है| और बाबोसा ने राजा-महाराजों के बारे में बच्चे का ज्ञानवर्धन किया|

यह बच्चा और कोई नहीं, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी, शिक्षाविद व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विभाग संघ चालक मोतीसिंह जी राठौड़ थे, जिन्होंने इस घटना का जिक्र अपनी पुस्तक “मेरी जीवन यात्रा” में अपने बचपन के संस्मरणों के रूप में किया है|

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