रानी के पद्मिनी के अस्तित्व पर सवाल इसलिए उठा रहे है कथित इतिहासकार व चैनल

Gyan Darpan
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भंसाली द्वारा रानी पद्मिनी पर फिल्म के बावजूद देश के कथित सेकूलर इतिहासकार और कुछ टीवी चैनलों ने रानी पद्मिनी को काल्पनिक साबित करने का अभियान छेड़ रखा है| भंसाली के टुकड़ों पर अभियान चलाने वालों का एक ही मकसद है किसी तरह भारत के गौरवशाली इतिहास पर चोट कर भारतीय जनमानस को भ्रमित किया जाय ताकि वह अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व ना कर सके और इन कथित वैचारिक गैंग का मानसिक गुलाम बना रहे|

यदि रानी ऐतिहासिक पात्र नहीं है तो फिर उस फिल्म बनाने के क्या आवश्यकता ? मनोरंजन के लिए फिल्म बनानी भी थी तो उसे चितौड़ से जोड़ने की क्या आवश्यकता ? एक तरफ ये गैंग रानी पद्मिनी को काल्पनिक बता रही है दूसरी और फिल्म में ऐतिहासिक नामों व मेवाड़ की ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़कर लोगों की भावनाओं का दोहन कर धन भी कमाना चाहती है| मतलब साफ़ है हमारे ही ऊपर चोट की मजदूरी हमसे ही वसूल करने का हथकंडा है यह|

आज इस गैंग के इतिहासकार कह रहे है कि- जायसी की पद्मावत से पहले की किसी किताब में रानी का जिक्र नहीं है| यह जायसी की कल्पना है| इस गैंग से पूछा जाय कि क्या जायसी की किताब उस काल में देश के हर व्यक्ति की पहुँच में थी, जो उसका लिखा इतना प्रचलित हो गया? राजस्थान के पहले इतिहासकार मुंहता नैणसी ने ख्यात लिखी थी, उसमें रानी पद्मिनी का जिक्र करते हुए लिखा कि खिलजी ने पद्मिनी मामले में चितौड़ पर आक्रमण किया| हालाँकि नैणसी ने अपनी ख्यात जायसी के बाद लिखी, पर प्रश्न आता कि क्या उस काल जायसी के उपन्यास की इतनी उपलब्धता थी कि वह हर किसी को मिल जाती और वह उसके आधार रानी की कहानी लिख देता| उस वक्त लिखे साहित्य की उपलब्धता आप इस उदाहरण से समझ सकते है-

कर्नल टॉड ने राजस्थान पर इतिहास लिखा| उसने पूरे राजस्थान में घूम घूमकर इतिहास एकत्र किया| राजस्थान में मेवाड़ व जोधपुर के राजाओं ने उसे ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध कराने में भरपूर सहयोग दिया| पर उसे नैणसी की ख्यात कभी नहीं मिली| जबकि नैणसी जोधपुर का दीवान था| जोधपुर राज्य के इतिहास में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान था और कर्नल टॉड के समय जोधपुर के महाराजा मानसिंह खुद साहित्य में बढ़ चढ़कर रूचि रखते थे, उन्होंने उस काल में पुस्तकालय की स्थापना की थी, पर नैणसी की ख्यात जो जोधपुर के किले में प्रधान पद रहते हुए नैणसी द्वारा लिखी गई वह भी राजा मानसिंह कर्नल टॉड को उपलब्ध नहीं करा सके तो आप अनुमान लगाईये कि जायसी का पद्मावत उस काल कितने लोगों की पहुँच में था, जो किसी काल्पनिक पात्र को लोगों के जेहन में बैठा सके|

अब बात करते है प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री पर इस गैंग के विश्वास की| जोधा अकबर सीरियल पर करणी सेना साथ वार्ता में अभिनेता जितेन्द्र के साथ उनके लेखक ने जोधा नाम साबित करने के लिए कुछ पुस्तकें प्रस्तुत की, जो मुगले आजम फिल्म के बाद उससे प्रेरित होकर लिखी हुई थी| राजपूत इतिहासकारों ने अकबरनामा, जहाँगीरनामा पुस्तकों का हवाला देते हुए जितेन्द्र को बताया कि आप जोधा का नाम जिनसे जोड़ रहे है, उन्होंने खुद जोधा का कहीं नाम नहीं लिखा| प्राचीन इतिहास किताबों में कहीं इस नाम का जिक्र नहीं| इस पर जितेन्द्र ने बात को घुमाते हुए कहा कि इसका मतलब यह तो नहीं कि इन प्राचीन किताबों को एंटिक समझ हम मान लें और नई किताबों को ठुकरा दें| मतलब उसने बेशर्मी से उन प्राचीन किताबों के सबूत ठुकरा दिए|

इस गैंग को आप कितने ही प्राचीन सबूत दिखा दीजिये, इन्हें वही सबूत सबूत लगते है, जो इन्हें धन कमाने व भारतीय जनमानस के स्वाभिमान पर चोट करने का सही औजार लगे|

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