रानी पद्मावती की कहानी के पात्रों का सच इतिहास की नजर में

Gyan Darpan
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रानी पद्मावती फिल्म पर विवाद के बाद वामपंथी इतिहासकार व इसी सोच वाली पत्रकार टीवी चैनलों पर बहस छेड़े है कि रानी पद्मावती, रावत रत्नसिंह, गोरा बादल, राघव चेतन काल्पनिक किरदार है, जायसी के दिमाग की उपज है| इसमें इन तत्वों को दो फायदे है, एक भंसाली से मोटा पैसा मिल जायेगा, दूसरा भारतीय संस्कृति पर चोट करने का इन्हें मौका मिल गया, जिसे वे कथित कैसे छोड़ सकते है? ये कथित गैंग कितना भी चिल्लाये कि रानी पद्मिनी कहानी के किरदार काल्पनिक है पर इतिहास व स्थानीय ऐतिहासिक स्त्रोत चीख चीख कर बताते है कि- यह नग्न सत्य है कि अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में चितौड़ पर आक्रमण किया था और आठ माह के विकट संघर्ष के पश्चात् उसे अपने अधिकार में कर लिया| वीर राजपूत यौद्धा आक्रान्ता से युद्ध करते हुए रणखेत रहे और वीर राजपूत स्त्रियां अपनी पवित्रता बचाने के लिए जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी| जौहर में कूद पड़ने वाली स्त्रियों में चितौड़ के तत्कालीन शासक रावत रतनसिंह की रानी भी थी, जिसे रूप व गुणों के आधार पर पद्मावती, पद्मिनी के नाम से जाना जाता है|

  • रावत रत्नसिंह

दरीबे के लेख के अनुसार रावत अमरसिंह के बाद रावत रत्नसिंह वि. सं. 1359, माघ सुदी 5, बुधवार को चितौड़ की राजगद्दी पर बैठे| जैन ग्रन्थ नाभिनंदन-जीणोद्धार-प्रबंध में भी रत्नसिंह का नाम शासक के रूप में दर्ज है| इसी तरह अमर-काव्य वंशावली में रत्नसिंह शासक के रूप में वर्णित है| इन साधनों से रत्नसिंह के अस्तित्व पर संदेह कर अलाउद्दीन के आक्रमण का सम्बन्ध पद्मावती से जोड़ने में आपत्ति उठाना ठीक नहीं है| (राजस्थान थ्रू दी एजेज, पृ.664-65 ) सोमानी, वीर भूमि चितौड़, पृष्ट-30-35| इन ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत यदि कोई इतिहासकार रत्नसिंह के अस्तित्व पर सवाल उठाये तो वह वामपंथी प्रलाप के सिवा कुछ नहीं|

  • गोरा बादल

गोरा बादल पर संदेह करने वाले भी पहले चित्तौड़ किले में उनसे सम्बन्धित महल व उनके स्मारक रूपी छतरियां देख आये|  डा. हुकमसिंह भाटी द्वारा लिखित “सोनगरा सांचोरा चौहानों का इतिहास’, पृष्ठ 45, के अनुसार गोरा और बादल जालौर के सोनगरा चौहान थे । गोरा, बादल के चाचा थे । चितौड़ आने से पहले यह गुजरात के शासक, वीसलदेव सोलंकी के प्रधान थे । पद्मावती का विवाह होने के बाद ये चितौड़ आ गए , गोरा रानी पद्मिनी के मामा व बादल ममेरा भाई था।

  • रानी पद्मिनी

रानी पद्मिनी को लेकर बेशक जायसी ने कल्पना की उड़ान भरी और उसे सिलोन की बता दिया जबकि उस काल ना तो जायसी के बताये नाम का कोई सिलोन का राजा था, ना रत्नसिंह के पास इतना समय था कि वह आठ साल का समय व्यतीत कर सिलोन ब्याह करने जाते| गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार रानी पद्मावती चितौड़ के आस-पास के किसी छोटे राज्य की राजकुमारी थी| ओझा ने चितौड़ से 40 किलोमीटर दूर सिंगोली को रानी का जन्म स्थान होने का अनुमान लगाया है| कुछ इतिहासकारों का दावा है कि पद्मिनी भाटियों की पुत्री थी वे जैसलमेर के भाटियों की ख्यातों व ऐतिहासिक स्त्रोतों के आधार पर रानी पद्मिनी को पूंगल के स्वामी पूनपालजी की पुत्री बताते है, जिसका जन्म 1285 ई. व विवाह 1300 ई. में होना माना गया है|   रावल पूनपालजी की रानी जामकेंवर देवड़ी सिंहलवाडा के राजा हमीरसिंह देवड़ा की पुत्री थी|

  • राघव चेतन

वि. सं. 1422 में सम्यकत्वकौमुदी की निवृति में, जिसे गणेश्वर सुरि के शिष्य तिलक सुरि ने लिखी थी, में राघव चेतन का सुल्तान द्वारा सम्मानित किये जाने का उल्लेख है| इस घटना की पुष्टि कांगड़ा के राजा संसारचन्द्र की एक प्रशस्ति से होती है| बुद्धिविलास आदि ग्रन्थों में भी राघव चेतन का सन्दर्भ मिलता है| इन सभी आधारों से राघव चेतन का ऐतिहासिक व्यक्ति होना प्रमाणित होता है| इसका आरम्भ में चितौड़ रहना और पीछे दिल्ली दरबार में आश्रय पाना अनहोनी घटना नहीं दिखती (सोमानी, वीर भूमि चितौड़)| इन तथ्यों के विपरीत राघव चेतन को जायसी के दिमाग की उपज मानने की जिद करने वालों की मानसिकता आप समझ सकते है|

उपरोक्त ऐतिहासिक तथ्यों के झुठलाकर यदि कोई टीवी पर रानी पद्मावती और उससे जुड़े किरदारों को जायसी के मन की उपज बताकर बहस कर रहा है तो समझिये उसे इतिहास से कोई मतलब नहीं, उसे मतलब है सिर्फ सिर्फ भंसाली के डाले टुकड़ों की कीमत चुकाने से|

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