कथित सेकुलर इतिहासकार, पत्रकार भंसाली के पक्ष में रानी पद्मिनी के इतिहास को काल्पनिक बताने के लिए भले कितनेही चिल्लाये पर पर यह नग्न सत्य है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ कर आक्रमण किया था| चित्तौड़ लेने की उसकी मंशा बेशक आर्थिक, राजनैतिक, कुटनीतिक थी| पर राघव चेतन द्वारा भड़काये जाने पर खिलजी की राजनैतिक महत्वाकांक्षा के साथ पाशविक पिपासा का पुट भी लग गया था, ऐसा इतिहास पढने पर आभास होता है| खिजली की चित्तौड़ आक्रमण के लिए सजी धजी सेना के साथ एक ऐसा व्यक्ति भी था, जो इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी था| इस व्यक्ति ने अपनी लेखनी के माध्यम से इतिहासकारों को कतिपय ऐतिहासिक सूत्र उपलब्ध कराएँ है, वो बात अलग है कि अलाउद्दीन खिलजी के डर से वह सब कुछ सीधा सीधा व सच नहीं लिख पाया और कथित सेकुलर गैंग उसकी इसी कमी को दरकिनार कर, उसके द्वारा इशारा किये तथ्यों को नजरअंदाज कर, रानी की कहानी को काल्पनिक प्रचारित करने का कुकृत्य कर रहे है|
जी हाँ ! हम बात कर रहे है खिलजी की सेना के साथ रहे प्रसिद्ध कवि व इतिहासकार अमीर खुसरो की| डा. गोपीनाथ शर्मा अपनी पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” में इलियट, हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, भाग-3, पृ-76-77 का हवाला देते हुए लिखते है- “उसकी विद्यमानता में हमें आक्रमण की घटना के कतिपय सूत्र उपलब्ध होते है| वह लिखता है कि सुलतान ने गंभीरी और बेडच नदी के मध्य अपने शिविर की स्थापना की| इसके पश्चात् सेना के दाएं और बाएं पार्श्व से किले को दोनों ओर से घेर लिया| ऐसा करने से तलहटी की बस्ती भी घिर गई| स्वयं सुलतान ने अपना ध्वज चितौड़ नामक एक छोटी पहाड़ी पर गाड़ दिया और वहीं वह अपना दरबार लगता और घेरे के सम्बन्ध में दैनिक निर्देश देता था|”
डा. शर्मा अपनी शोध के बाद आगे लिखते है- “घेरा लम्बी अवधि तक चला| राजपूतों ने किले के फाटक बंद कर लिए और परकोटों से मोर्चा बनाकर शत्रु-दल का मुकाबला करते रहे| सुलतान की सेना ने मजनिकों से किले की चट्टानों को तोड़ने का आठ माह तक प्रयास किया| जब चारों ओर से सर्वनाश के चिन्ह दिखाई दे रहे थे, शत्रुओं से बचने का कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा था और किसी कीमत पर दुर्ग को बचाया नहीं जा सकता था|” हार की स्थिति में स्त्रियों के साथ भीषण व्याभिचार होना तय था| तब स्त्रियों व बच्चों को जौहर की धधकती अग्नि में अर्पण कर दिया गया| इस कार्य के बाद किले के फाटक खोल दिए गए और बचे हुए वीर शत्रु की सेना पर टूट पड़े और वीर गति को प्राप्त हुए|
डा. गोपीनाथ शर्मा की शोध पुस्तक में रानी पद्मिनी व खिलजी के आक्रमण पर जुटाए ऐतिहासिक तथ्य इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकारों के मुंह पर तमाचा है| पर इन बेशर्मों का एक ध्येय है किसी तरह भारतीय संस्कृति व स्वाभिमान पर चोट के लिए इतिहास का बिगाड़ा करो| रानी पद्मावती पर भंसाली का फिल्म निर्माण भी धन कमाने के साथ इसी वामपंथी एजेन्डे को आगे बढ़ाना है| यही कारण है कि देश का तथाकथित प्रगतिशील लेखक समुदाय, पत्रकार इस मुद्दे पर भंसाली के साथ खड़े है|